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मंगलवार, 12 जून 2018

मेरी चारधाम यात्रा --भाग तीन----उत्तरकाशी—डा श्याम गुप्त ---

कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



मेरी चारधाम यात्रा --भाग तीन----उत्तरकाशी
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चौथा दिन---- २०-५-१८ प्रातः - बारकोट से उत्तरकाशी—
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----१०० किमी -- १३५२ मी ऊंचाई --- २० -५-१८ को प्रातः बारकोट से उत्तरकाशी ४ घंटे का रास्ता --- होटल रिवर व्यू रिसोर्ट –भागीरथी तट---
उत्तरकाशी भ्रमण –२०-५-१८ ..
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उत्तरकाशी जिले में यमुना व गंगा दोनों नदियों का उद्गम स्थल है | उत्तरकाशी कस्बा भागीरथी नदी के तट पर स्थित है |
-------यह महाभारत काल का वारणावत ग्राम है जो वरुणावत पर्वत पर यह देवाधिदेव भगवान चंद्रमौलि शंकर का मूल निवास माना जाता है और यह कहा जाता है कि उन्होंने इस स्थान पर गोपी का रूप धारण करके तप किया था। जिस जगह उन्होंने तपस्या की, वह स्थान आज भी 'गोपेश्वर महादेव' के नाम से प्रसिद्ध है।
-------उत्तरकाशी में ही राजा भागीरथ ने तपस्या की थी और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि भगवान शिव धरती पर आ रही गंगा को धारण कर लेंगे ।
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प्राचीन समय में इसे विश्वनाथ की नगरी कहा जाता था। कालांतर में इसे उत्तरकाशी कहा जाने लगा। केदारखंड और पुराणों में उत्तरकाशी के लिए 'बाडाहाट' शब्द का प्रयोग किया गया है। पुराणों में इसे 'सौम्य काशी' भी कहा गया है। हिमालय की सुरम्य घाटी में उत्तरकाशी गंगोत्री मार्ग पर भागीरथी के दाएं तट पर स्थित है | चारों धामों के प्राचीन मार्ग यहीं से हैं|
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हिमालय के प्रसिद्द राज्य ब्रह्मपुर की राजधानी एवं भारत –तिब्बत के मध्य व्यापार का पारंपरिक स्थल रहा है जहां विदेशी व्यापारी नमक व रत्नों के व्यापार के लिए पहुँचते थे |
-------पारासर ऋषि की तप स्थली गंगनानी, सुखदेव मुनि की स्थली सुक्खी, रावण के हाथ से छूटा हुआ शिवलिंग स्थल लंका तथा बालखिल्य, एरावत, वरुणावत, इन्द्रकील व महेंद्र पर्वत आदि से घिरा हुआ देवों की क्रीड़ास्थली रहा है बाड़हाट |
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इसकी तुलना वास्तविक काशी (वाराणसी) से की जाती है। पवित्र स्थान उत्तरकाशी दो नदियों स्यालमगाड व कालीगाड के बीच में स्थित है, जिन्हें क्रमश: वरूणा एवं असी के नाम से भी जाना जाता है। ठीक इसी तरह वास्तविक काशी (वाराणसी) भी दो नदियों वरूणा व असी के मध्य स्थित है। दोनों ही स्थानों में सबसे पवित्र घाट मणिकर्णिकाघाट स्थित है तथा दोनों ही स्थान विश्वनाथ मदिंर को समर्पित हैं।
------- पौराणिक संदर्भ में उत्तरकाशी का अलग ही महत्व रहा है, प्राचीन काल में इसे बाड़ाहाट के नाम से भी जाना जाता था। इसे 'पंचकाशी' भी कहा जाता है। यही वस्तुतः मूल प्राचीन काशी है |
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यह भी कहा जाता है कि उत्तरकाशी के चामला की चौड़ी में परशुराम ने तप किया था। भगवान विष्णु के 24वें अवतार परशुराम को अस्त्र का देवता एवं परशु धारण करने के कारण योद्धा संत के रूप में भी जाना जाता है। वे सात मुनियों में से एक हैं जो चिरंजीवी हैं।
---------परशुराम ने अपने पिता जमदग्नि मुनि के आदेश पर अपनी माता रेणुका का सिर काट दिया था। उनकी आज्ञाकारिता से प्रसन्न होकर जमदग्नि मुनि ने उन्हें एक वरदान दिया। परशुराम ने अपनी माता के लिये पुनर्जीवन मांगा एवं वे जीवित हो गयीं। फिर भी वे मातृहत्या के दोषी थे एवं पिता ने उन्हें उत्तरकाशी जाकर प्रायश्चित करने को कहा। तब से उत्तरकाशी उनकी तपोस्थली बना।
--------कठोर तप को शांत करके सौम्य रूप धारण करने के कारण इसे 'सौम्य काशी' कहा गया |
काशी विश्वनाथ मंदिर--- ---------------------------------
--इस मंदिर की स्‍थापना परशुराम जी द्वारा की गई थी| यह वास्तव में मूल प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर है | शिव का मूल धाम | मंदिर के समीप अच्छा बाज़ार है जहां हींग व कस्तूरी आदि भी बेची जारही थी |

 



शक्ति मंदिर --एवं विशालकाय त्रिशूल---
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-------एक ही परिसर में विश्वनाथ मंदिर के ठीक विपरित शक्ति मंदिर देवी पार्वती के अवतार में, शक्ति की देवी को समर्पित है।
-------- इस मंदिर के गौरव स्थल पर, 8 मीटर ऊंचा एक त्रिशूल है जो 1 मीटर व्यास का है जिसे शक्ति स्तंभ भी कहते हैं। त्रिशुल का प्रत्येक कांटा 2 मीटर लंबा है।
--------उत्तराखण्ड में यह सबसे पुराना अवशेष है।इस त्रिशूल का ऊपरी भाग लो‍हे का तथा निचला भाग तांबे का है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी दुर्गा ने इसी त्रिशूल से दानवों को मारा था। बाद में इन्‍हीं के नाम पर यहां इस मंदिर की स्‍थापना की गई।
--------एक मतानुसार जब देवों तथा असुरों में युद्ध छिड़ा तो इस त्रिशूल को स्वर्ग से असूरों की हत्या के लिये भेजा गया। तब से यह पाताल में शेषनाग के मस्तक पर संतुलित है। यही कारण है कि छूने पर हिलता-डुलता है क्योंकि यह भूमि पर स्थिर नहीं है।
--------एक अन्य किंवदन्ती यह है भगवान शिव ने विशाल त्रिशूल से वक्रासुर राक्षस का बध किया था और
---------एक अन्य मतानुसार त्रिशूल पर खुदे संस्कृत लेखानुसार यह मंदिर राजा गोपेश्वर ने निर्मित कराया और उनके पुत्र महान योद्धा गुह ने त्रिशूल को बनवाया।
-------- ऐसा भी विश्वास है कि उत्तरकाशी का पूर्व नाम बड़ाहाट शक्ति स्तंभ से आया है, जिसमें बारह शक्तियों का समावेश है। बड़ाहाट बारह शब्द का बिगड़ा रूप है।
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स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में इस स्थान का वर्णन सौम्यकाशी के नाम से किया गया है। मान्यता है कि द्वापर युग के महाभारत काल में ---------भगवान शिव ने किरात का रूप धारण करके यहीं पर अर्जुन से युद्ध किया था। महाभारत के उपायन पर्व में उत्तरकाशी के मूलवासियों जैसे किरातों, उत्तर कुरूओं, खासों, टंगनासों, कुनिनदासों एवं प्रतंगनासों का वर्णन है।
-------यहीं दुर्योधन ने पाण्डवों को मारने के लिये लाक्षागृह का निर्माण किया था।

नचिकेता ताल--
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-उत्तरकाशी के रास्ते में नचिकेता ताल का पट्ट दिखाई देता है, हरियाली से घिरे ताल के तट पर एक छोटा सा मंदिर भी है।
---------कहा जाता है कि कठोपनिषद के नायक बालक नचिकेता जो ऋषि उद्दालक के पुत्र थे जिन्हें स्वयं यम ने मृत्यु के रहस्य के बारे में बताया था, यमलोक जाते समय वे यहाँ ठहरे थे | यमलोक जाते समय वे यहाँ ठहरे थे |
---------------क्रमश-----शेष भाग चार--आगे---
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चित्र-१३- होटल रिवर व्यू रिसोर्ट –भागीरथी तट-पर
चित्र १४ काशी विश्नाथ मंदिर.....
.चित्र १५—उत्तरकाशी के इतिहास के बारे में सूचनापट
चित्र १६---शिव का विशाल त्रिशूल
चित्र-१७-भागीरथी के तटपर उत्तरकाशी
चित्र १८-उत्तरकाशी पर्वतीय वनों में लगी हुई आग ...


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