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मंगलवार, 12 जून 2018

मेरी चारधाम यात्रा ---भाग चार----- डा श्याम गुप्त---

                             कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



मेरी चारधाम यात्रा ---भाग चार-----
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पांचवां दिन --- २१-५-१८ उत्तरकाशी से गंगोत्री से उत्तरकाशी--
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(१०० किमी, ऊन्चाई ३०४८ M-)-
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---२१-५-१८--- प्रातः तड़के ही होटल से पैक नाश्ता लेकर हम लोग गंगोत्री के लिए निकल लिए | रास्ते में गंगनानी में गरम पानी के कुंड हैं | हम सुन्दर मनोहारी हर्षिल घाटी होते हुए सीधे गंगोत्री की और बढ़ गए |
हरसिल घाटी ----
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------गंगोत्री मार्ग पर स्थित हरसिल घाटी आर्श्ययजनक व सम्मोहक है समुद्र तल से 7860 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। पूरी घाटी में नदी-नालों और जल प्रपातों की भरमार है। हर कहीं दूधिया जल धाराएं इस घाटी का मौन तोडने में डटी हैं। नदी झरनों के सौंदर्य के साथ-साथ इस घाटी के सघन देवदार के वन मनमोहक हैं। इसे हरिप्रयाग भी कहा जाता है|
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******ऋग्वेद में प्रकृति के मनोरम दृश्यों एवं प्रार्थनाओं के मन्त्र रूप में जो सार्वकालीन सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक कृतियाँ हैं वे शायद यहीं रचे गए होंगे ********
-----------ऋग्वेद में वैदिक कालीन एक प्रातः का वर्णन कितना सुन्दर व सजीव है ---
“विचेदुच्छंत्यश्विना उपासः प्र वां ब्रह्माणि कारवो भरन्ते |
उर्ध्व भानुं सविता देवो अश्रेद वृहदग्नयः समिधा जरन्ते ||”
----हे अश्वनी द्वय ! उषा द्वारा अन्धकार हटाने पर स्तोता आपकी प्रार्थना करते हैं (स्वाध्याय, व्यायाम, योग आदि स्वास्थ्य वर्धक कृत्य की दैनिक चर्या )| सूर्या देवता ऊर्ध गामी होते हुए तेजस्विता धारण कर रहे हैं | यज्ञ में समिधाओं द्वारा अग्नि प्रज्वलित हो रही है | ...
तथा –
“एषा शुभ्रा न तन्वो विदार्नोहर्वेयस्नातो दृश्ये नो अस्थातु
अथ द्वेषो बाधमाना तमो स्युषा दिवो दुहिता ज्योतिषागात |
एषा प्रतीचि दुहिता दिवोन्हन पोषेव प्रदानिणते अणतः
व्युणतन्तो दाशुषे वार्याणि पुनः ज्योतिर्युवति पूर्वः पाक: ||”
----प्राची दिशा में उषा इस प्रकार आकर खड़ी होगई है जैसे सद्यस्नाता हो | वह अपने आंगिक सौन्दर्य से अनभिज्ञ है तथा उस सौन्दर्य के दर्शन हमें कराना चाहती है | संसार के समस्त द्वेष-अहंकार को दूर करती हुई दिवस-पुत्री यह उषा प्रकाश साथ लाई है, नतमस्तक होकर कल्याणी रमणी के सदृश्य पूर्व दिशि-पुत्री उषा मनुष्यों के सम्मुख खडी है | धार्मिक प्रवृत्ति के पुरुषों को ऐश्वर्य देती है | दिन का प्रकाश इसने पुनः सम्पूर्ण विश्व में फैला दिया है |
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-------यह भागीरथी नदी के किनारे, जलनधारी गढ़ के संगम पर एक घाटी में अवस्थित है।
-------मातृ एवं कैलाश पर्वत के अलावा उसकी दाहिनी तरफ श्रीकंठ चोटी है, जिसके पीछे केदारनाथ तथा सबसे पीछे बदंरपूंछ आता है।
-------यह वन्य बस्ती अपने प्राकृतिक सौंदर्य एवं मीठे सेब के लिये मशहूर है। हर्षिल के आकर्षण में हवादार एवं छाया युक्त सड़क, लंबे कगार, ऊंचे पर्वत, कोलाहली भागीरथी, सेबों के बागान, झरनें, सुनहले तथा हरे चारागाह आदि शामिल हैं।
--------हरसिल की सुन्दरता को राम तेरी गंगा मैली फिल्म में भी दिखाया जा चुका है। यहीं के एक झरने में फिल्म की नायिका मंदाकिनी को नहाते हुए दिखाया गया है।

गंगोत्री ----
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----गंगा नदी ( भागीरथी ) का उद्गम स्थान है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है।
------भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी।
------देवी भागीरथी ने इसी स्थान पर धरती का स्पर्श किया। पांडवो ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गये अपने परिजनो की आत्मिक शांति के निमित इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ का अनुष्ठान
किया था।
------ शिवलिंग के रूप में एक नैसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न है। पौराणिक आख्यानो के अनुसार, भगवान शिव इस स्थान पर अपनी जटाओं को फैला कर बैठ गए और उन्होने गंगा माता को अपनी घुंघराली जटाओ में लपेट लिया। शीतकाल के आरंभ में जब गंगा का स्तर काफी अधिक नीचे चला जाता है तब उस अवसर पर ही उक्त पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते है।
--------भागीरथी, घाटी के बाहर निकलकर केदारगंगा तथा भागीरथी के कोलाहल को छोड़कर जड़ गंगा से मिल जाती है, इस सुंदर घाटी के अंत में गंगा जी का मंदिर है।
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गंगाजी का मंदिर, ----
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समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश अत्यंत आकर्षक एवं मनोहारी है। पवित्र एवं उत्कृष्ठ मंदिर सफेद ग्रेनाइट के चमकदार 20 फीट ऊंचे पत्थरों से निर्मित है। दर्शक मंदिर की भव्यता एवं शुचिता देखकर सम्मोहित हुए बिना नही रहते।
--------मंदिर में लम्बी लाइन को पार करके गंगा माँ के दर्शन किये व प्रसाद लेकर फोटो आदि खींचे एवं एक वर्तन में गंगाजल लेकर तथा कुछ बाज़ार करने के बाद हम लोग वापस उत्तरकाशी के होटल में रात्रि २१-५-१८ विश्राम हेतु लौट गए |
गौमुख----
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गंगोत्री से 19 किलोमीटर दूर 3,892 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गौमुख गंगोत्री ग्लेशियर का मुहाना तथा भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है। गंगोत्री से यहां तक की दूरी पैदल या फिर ट्ट्टुओं पर सवार होकर पूरी की जाती है।
भैरों घाटी -----
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--- गंगोत्री से 9 किलोमीटर पर स्थित भैरों घाटी जड़ गंगा, जाह्नवी गंगा तथा भागीरथी के संगम पर स्थित है।
-------1985 से पहले जब जड़ गंगा पर संसार के सर्वोच्च झूला पुल सहित गंगोत्री तक मोटर गाड़ियों के लिये सड़क का निर्माण नहीं हुआ था, तीर्थयात्री लंका से भैरों घाटी तक घने देवदारों के बीच पैदल आते थे और फिर गंगोत्री जाते थे।
-------भैरों घाटी हिमालय का एक मनोरम दर्शन कराता है, जहां से आप भृगु पर्वत श्रृंखला, सुदर्शन, मातृ तथा चीड़वासा चोटियों के दर्शन कर सकते हैं।
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(----इस जड़गंगा के झूलापुल पर एक बार मेरी पोस्टिंग हुई थी, रेलवे ने यह पुल बनवाया था और हिमपात होने के कारण इंजी.सामान छूट गया था | गर्मियों में हिम पिघलने पर किसी ने शैतानी पूर्ण कृत्य द्वारा मेरी पोस्टिंग वहां करादी | परन्तु हमने एक फार्मासिस्ट को फर्स्ट एड की पोस्ट सहित वहां पोस्ट करा दिया था स्टाफ के लिए जो बचा हुआ सामान वापस लाने हेतु भेजा गया था | )
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नंदनवन तपोवन---
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गंगोत्री से 25 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर के ऊपर एक कठिन ट्रेक नंदनवन ले जाती है । यहां से शिवलिंग चोटी का मनोरम दृश्य दिखता है। गंगोत्री नदी के मुहाने के पार तपोवन है जो अपने सुंदर यहां चारगाह के लिये मशहूर है तथा शिवलिंग चोटी के चारों तरफ फैला है।
भोजबासा----
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गंगोत्री से 14 किलोमीटर दूर है। यह जड़ गंगा तथा भागीरथी नदी के संगम पर है।
------ भोजपत्र पेड़ों की अधिकता के कारण इसे भोजबासा का नाम मिला | गौमुख जाते हुए इसका उपयोग पड़ाव की तरह होता है। रास्ते में आप किंवदन्त धार्मिक फूल ===ब्रह्मकमल देख सकते है जो ब्रह्मा का आसन है।====
केदारताल----
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गंगोत्री से 14 किलोमीटर दूर यह मनोरम झील समुद्र तल से 15,000 फीट ऊंचाई पर है | केदार ग्लेशियर के पिघलते बर्फ से बनी यह झील भागीरथी की सहायक केदारगंगा का उद्गम स्थल है, जिसे भगवान शिव द्वारा भागीदारी को दान मानते हैं।
-------समीप ही केदार खंड से सटा है मार्कण्डेयपुरी जहां मार्कण्डेय मुनि के तप किया तथा उन्हें भगवान विष्णु द्वारा सृष्टि के विनाश का दर्शन कराया गया। इसी प्रकार से मातंग ऋषि ने वर्षों तक बिना कुछ खाये-पीये यहां तप किया।
गंगा---
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---गंगोत्री में भागीरथी-गौमुख ग्लेशियर से...---केदारनाथ में मंदाकिनी -शतपथ ग्लेशियर व बद्रीनाथ में अलकनंदा भागीरथ खड़क ग्लेशियर से --- उत्तरकाशी स्थित पंचप्रयागों में अंतिम प्रयाग देवप्रयाग में अलकनंदा व भागीरथी के संगम के उपरांत ही इसे गंगा का नाम मिलता है |
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ऋगवेद में गंगा का वर्णन कहीं-कहीं ही मिलता है पर पुराणों में गंगा से संबंधित कहानियां वर्णित हैं| कहा जाता है कि एक प्रफुल्लित सुंदरी युवती का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ। इस खास जन्म के बारे में दो विचार हैं।
----- एक की मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु का चरण धोया और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया।
------ दूसरे का संबंध भगवान शिव से है जिन्होंने संगीत के दुरूपयोग से पीड़ित राग-रागिनी का उद्धार किया। जब भगवान शिव ने नारद मुनि ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा जो ब्रह्मा ने उसे अपने कमंडल में भर लिया। इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ और वह ब्रह्मा के संरक्षण में स्वर्ग में रहने लगी।

क्रमश-----शेष भाग पांच----आगे ------
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चित्र-हर्षिल घाटी----५ ..भागीरथी , झरने , हर्षिल घाटी ,पर्वतीय नदी, उषा व सूर्योदय बाराकोट ...
चित्र-१९-गंगोत्री की राह पर दूर से गौमुख
चित्र-२०-गंगोत्री मंदिर की राह पर
चित्र- २१-भागीरथ शिला व गंगा निकालने का स्थान ---
चित्र- २२-भागीरथी के किनारे –गंगोत्री पर
चित्र- २३-गंगोत्री मंदिर से गंगा का उद्गम गौमुख ग्लेशियर ..
चित्र—२४-गंगा जी का मुख्य-मंदिर प्रांगण में ...गंगोत्री
चित्र- २५-गौमुख ग्लेशियर गंगा का उद्गम ---













क्रमश ----भाग पांच ..आगे----

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