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गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल --

कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

       ग़ज़ल- आपने क्या किया 


दिए जलने लगे आपने क्या किया ,
दिल मचलने लगे आपने क्या किया |

अपनी मासूम दुनिया में खोये थे हम,
ख्याल में आगये आपने क्या किया |


अपनी राहों में  थे हम  चले जा रहे ,
आप क्यों मिल गए आपने क्या किया |


खुद की चाहत में दिल अपना आबाद था,
आस बन आ बसे आपने क्या किया |


जब खिलाये थे वे  पुष्प चाहत के तो,
फेर रुख चलदिये आपने क्या किया |


साथ चलते हुए आप क्यों  रुक गए,
क्यों कदम थम  गए आपने क्या किया |


श्याम' अब कौन चाहत का सिजदा करे,
नाखुदा बन गए आपने क्या किया






मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

सखि कैसे - डा श्याम गुप्त की कविता .....

कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित-------
                सखि कैसे !

सखि री तेरी कटि छीन ,पयोधर भार भला धरती हो कैसे ?
बोली सखी मुसुकाइ, हिये, उर भार तिहारो धरतीं हैं जैसे |


भोंहें बनाई कमान भला , हैं तीर कहाँ पै ,निशाना हो कैसे ?
नैनन  के  तूरीण में बाण ,  धरे उर ,पैनी कटार   के जैसे   |


कौन यहाँ मृग-बाघ धरे , कहो बाणन वार शिकार हो कैसे ?
तुम्हरो हियो मृग भांति  पिया,जब मारै कुलांच,शिकार हो जैसे |

प्रीति तेरी  मनमीत प्रिया ,उलझाए ये मन उलझी लट,जैसे |
लट सुलझाय तौ तुम ही गए,प्रिय मन उलझाय गए कहो कैसे ?


ओठ तेरे विम्बा फल भांति, किये रचि लाल , अंगार के जैसे |
नैन तेरे प्रिय प्रेमी चकोर ,रखें मन जोरि अंगार से जैसे |


अनहद नाद को गीत बजै,संगीत प्रिया अंगडाई लिए  से   |
कंचन काया के ताल-मृदंग पै, थाप तिहारी कलाई दिए ते |


प्रीति भरे रस-बैन तेरे,कहो कोकिल कंठ भरे रस कैसे ?
प्रीति की बंसी तेरे उर की ,पिय देती सुनाई मेरे उर में से |


पंकज नाल सी बाहें प्रिया ,उर बीच धरे  क्यों, अँखियाँ मीचे ?
मत्त-मतंग  की नाल सी बाहें ,भरें उर बीच रखें मन सींचे ||




गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

( गीत कविता वस्तुतः मन की गहराई से निस्रत होते हैं , जीवन एक गीत ही है , जीवन आयु के विभिन्न सोपानों परउठते हुए विभिन्न भावों को सहेज़ते हुएमन के भाव- गीतों के विभिन्न रूप भाव निसृत होते हैं उसी के भावानुसार ही गीतनिसृत होते हैं, इन गीत भावों को प्रत्येक मन , मानव ,व्यक्तित्व अपने जीवन में अनुभव करता है, जीता है , बस कवि उन्हेंमानस की मसि में डुबो कर कागज़ पर उतार देता है ; देखिये कैसे --)
गीत बन गए
दर्द बहुत थे ,भुला दिए सब ,
भूल पाये ,वे बह निकले -
कविता बनकर ,प्रीति बन गए |

दर्द जो गहरे ,नहीं बह सके ;
उठे भाव बन ,गहराई से,
वे दिल की अनुभूति बन गए |

दर्द मेरे मन मीत बन गए ,
यूँ मेरे नव-गीत बन गए ||

भावुक मन की विविधाओं से,
बन सुगंध वे छंद बने फ़िर-
सुर लय बन कर गीत बन गए |
भूली-बिसरी यादों के उन,
मंद समीरण की थपकी से
ताल बने संगीत बन गए |---दर्द मेरे....||

सुख के पल छिन जो भी आए,
स्वप्न सुहाने से मन भाये;
प्रणय मिलन के मधुरिम पल में,
तन-मन के मधु-सुख कम्पन बन ;
तनकी भव
-सुख प्रीति बन गए,
गति यति बन रस रीति बन गए |---दर्द मेरे ....||

ज्ञान-कर्म के ,नीति-धर्म के,
विविध रूप जब मन में उभरे |
सत् के पथ की राह चले तो ,
जग-जीवन की नीति बन गए |
तन के मन के अलंकार बन,
जीवन की भव -भूति बन गए|-----यूँ मेरे नव .....||

दर्शन भक्ति विराग-त्याग के,
सुख संतोष भाव मन छाये ;
प्रभु की प्रीति के भाव बने तो ,
आनंद सुख अनुभूति बन गए |
आत्मलीन जब मुग्ध मन हुए;
परमानंद विभूति बन गए |-----दर्द मेरे........||

अप्रमेय अनुपम अविनाशी ,
अगुन अभाव नित विश्व प्रकाशी ;
सत् चित आनंद घट घट बासी ,
अंतस के जब मीत बन गए ;
अमृत घट के दीप जल गए ,
आदि अनाहत गीत बन गए |

दर्द मेरे मन मीत बन गए,
यूँ मेरे नव-गीत बन गए ||

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

डॉ श्याम गुप्ता की कविता---चला जारहा मौन ?

चला जारहा कौन
कमर झुकाए लाठी टेके ,
तन पर धोती एक लपेटे |
नंगे पैरों कठिन मार्ग पर,
चला जारहा कौन ?----चला जारहा मौन|

रघुपति राघव राजा राम ,
पतित -पावन सीता राम |
मधुरिम स्वर लहरी में गाता,
चला जारहा कौन ?-----चला जारहा मौन|

ईश्वर अल्लाह तेरे नाम,
सबको सन्मति दे भगवान |
हम सबको है 'एक्य' बताता,
चला जारहा कौन ?------चला जारहा मौन |

ये तो अपने राष्ट्र -पिता हैं ,
ये तो अरे महात्मा गांधी !
ये तो विश्व वन्द्य 'बापू ' हैं,
ये तो रे इस युग की आंधी |

ये तो कलियुग के मोहन हैं ,
ये बच्चों के गांधी बाबा |
ये भारत के लौह - पुरूष हैं,
ये भारत के भाग्य विधाता|

पत्थर पर पद-चिन्ह बनाता,
आज़ादी की राह दिखाता |
सारा जग है जिसके पीछे,
चला जारहा मौन |--------चला जारहा कौन?
- ----------------------चला जारहा मौन?