saahityshyamसाहित्य श्याम: सृष्टि को आगे बढाने का क्रम---?..डा श्याम गुप्त की कविता,....
कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
शुक्रवार, 27 नवंबर 2009
सृष्टि को आगे बढाने का क्रम---?..डा श्याम गुप्त की कविता,....
कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित -----
पिता-पुत्र का दायित्व
यह सच है कि ,ईश्वर ने-
सृष्टि को आगे बढाने का बोझ ,
नारी पर डाल दिया, पर-
पुरुष पर भी तो..... |
अंततः कब तक एक पिता ,बच्चों को-
उंगली पकड़ कर चलाता रहेगा |
बच्चा स्वयं अपना दायित्व निभाये,
उचित,शाश्वत,मानवीय मार्ग पर चले, चलाये;
अपने पिता के सच्चे पुत्र होने का ,
दायित्व निभाये |
आत्मा से परमात्मा बनने का,
अणु से विभु होने का हौसला दिखाए;
मानव से ईश्वर तक की यात्रा पूर्ण करने का,
जीवन लक्ष्य पूर्ण कर पाए ,
मुक्ति राह पाजाये |
पर नर-नारी दोनों ने ही ,
अपने-अपने दायित्व नहीं निभाये ;
फैशन, वस्त्र उतारने की होड़ ,
पुरुष बनने की इच्छा रूपी नारी दंभ ,
गर्भपात, वधु उत्प्रीणन ,कन्या अशिक्षा,
दहेज़ ह्त्या,बलात्कार,नारी शोषण से-
मानव ने किया है कलंकित -
अपने पिता को,ईश्वर को , और--
करके व्याख्यायित आधुनिक विज्ञान,
कहता है अपने को सर्व शक्तिमान ,
करता है ईश्वर को बदनाम ||
पिता-पुत्र का दायित्व
यह सच है कि ,ईश्वर ने-
सृष्टि को आगे बढाने का बोझ ,
नारी पर डाल दिया, पर-
पुरुष पर भी तो..... |
अंततः कब तक एक पिता ,बच्चों को-
उंगली पकड़ कर चलाता रहेगा |
बच्चा स्वयं अपना दायित्व निभाये,
उचित,शाश्वत,मानवीय मार्ग पर चले, चलाये;
अपने पिता के सच्चे पुत्र होने का ,
दायित्व निभाये |
आत्मा से परमात्मा बनने का,
अणु से विभु होने का हौसला दिखाए;
मानव से ईश्वर तक की यात्रा पूर्ण करने का,
जीवन लक्ष्य पूर्ण कर पाए ,
मुक्ति राह पाजाये |
पर नर-नारी दोनों ने ही ,
अपने-अपने दायित्व नहीं निभाये ;
फैशन, वस्त्र उतारने की होड़ ,
पुरुष बनने की इच्छा रूपी नारी दंभ ,
गर्भपात, वधु उत्प्रीणन ,कन्या अशिक्षा,
दहेज़ ह्त्या,बलात्कार,नारी शोषण से-
मानव ने किया है कलंकित -
अपने पिता को,ईश्वर को , और--
करके व्याख्यायित आधुनिक विज्ञान,
कहता है अपने को सर्व शक्तिमान ,
करता है ईश्वर को बदनाम ||
मंगलवार, 17 नवंबर 2009
कुछ कतए-------
कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित------
कुछ कतए
१.
ज़िन्दगी इक दर्द का समंदर है ,
जाने क्या-क्या इसके अन्दर है ,
कभी तूफां समेटे डराती है -
कभी एक पाकीज़ा मंजर है |
२.
खामोश पिघलतीं हैं शम्माएं ,
किसको कहें क्या बताएं ;
ख़ाक हो चुका जब परवाना,
दर्दे-दिल किसको सुनाएँ |
३.
रात और दिन के बीच उम्र खटती रही ,
उम्र बढ़ती रही याकि उम्र घटती रही ,
जिसने कभी भूलकर भी याद न किया श्याम,
उम्र भर उनकी याद में उम्र कटती रही |
४.
क्या वो पुरसुकूं लम्हा कभी आयेगा,
आयेगा तो शायद तभी आयेगा;
वक्त कह चुका होगा अपनी दास्ताँ ,
श्याम वो वेवक्त , वक्त आयेगा ||
कुछ कतए
१.
ज़िन्दगी इक दर्द का समंदर है ,
जाने क्या-क्या इसके अन्दर है ,
कभी तूफां समेटे डराती है -
कभी एक पाकीज़ा मंजर है |
२.
खामोश पिघलतीं हैं शम्माएं ,
किसको कहें क्या बताएं ;
ख़ाक हो चुका जब परवाना,
दर्दे-दिल किसको सुनाएँ |
३.
रात और दिन के बीच उम्र खटती रही ,
उम्र बढ़ती रही याकि उम्र घटती रही ,
जिसने कभी भूलकर भी याद न किया श्याम,
उम्र भर उनकी याद में उम्र कटती रही |
४.
क्या वो पुरसुकूं लम्हा कभी आयेगा,
आयेगा तो शायद तभी आयेगा;
वक्त कह चुका होगा अपनी दास्ताँ ,
श्याम वो वेवक्त , वक्त आयेगा ||
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