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शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

चाय पर साहित्यिक परिचर्चा’ एवं काव्य-गोष्ठी---- डा श्याम गुप्त....

                                         कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


 चाय पर साहित्यिक परिचर्चा’ एवं काव्य-गोष्ठी----

--------दिनांक १२-८-१६ शुक्रवार को जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, छंदकार आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी से व्यक्तिगत साक्षात्कार का सौभाग्य प्राप्त हुआ | लखनऊ प्रवास के दौरान वे लखनऊ के सुकवि श्री अमरनाथ जी के साथ मेरे आवास पर पधारे | सलिल जी से इंटरनेट व फेसबुक के जरिये तो अच्छी मुलाक़ात थी परन्तु आमने सामने साक्षात्कार का सुअवसर कल प्राप्त हुआ श्री अमरनाथ जी के सौजन्य से |

------ सलिल जी ने मुझे अपनी गीत-नवगीत की पुस्तक ‘काल है संक्रांति का’ भेंट की | सलिल जी ने बताया कि मेरी एक पुस्तक महाकाव्य सृष्टि उनके पास है | मैंने उन्हें अपनी पुस्तकें ‘शूर्पणखा खंडकाव्य, ‘ब्रजबांसुरी’, ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ तथा ‘अगीत साहित्य दर्पण’ भेंट की |

--------मेरे प्रश्न पर कि नवगीत वास्तव में क्या है पर यह अनौपचारिक मुलाक़ात एक संक्षिप्त - ‘चाय पर साहित्यिक परिचर्चा’ एवं काव्य-गोष्ठी में परिवर्तित होगई, जिसमें श्री संजीव वर्मा सलिल, श्री अमरनाथ, श्रीमती सुषमा गुप्ता तथा डा श्यामगुप्त ने अपने अपने विचार प्रस्तुत किये एवं काव्य पाठ किया |

------ विचार-विमर्श के दौरान सलिल जी ने बताया कि वास्तव में जो नवगीत के लिए कहा जाता है उससे वे पूर्ण रूप से सहमत नहीं हैं कि केवल व्यंजनात्मक कथ्य नवगीत का अत्यावश्यक तत्व है क्योंकि व्यंजना या लक्षणा आदि तो काव्य में स्वतः प्रवेश करती हैं आवश्यकतानुसार, उन्हें साप्रयास लाने पर कविता में अप्राकृतिक सा भाव परिलक्षित होने लगेगा | सलिल जी ने यह भी कहा कि युग की असमानताएं, विसंगतियां, द्वंद्व वर्णन ही किसी भी विधा का मूल विषय नहीं होसकता |
                   डा श्यामगुप्त ने सहमत होते हुए कहा कि निश्चय ही किसी भी विधा का एक सुनिश्चित विषय निर्धारित नहीं होसकता | डा श्यामगुप्त के कथन कि नवगीत गीत का सलाद है और एक प्रकार से गीत ही है, पर सलिल जी का कहना था कि सचमुच ही किसी भी गीत को पृथक पृथक मात्रा-खण्डों की पंक्तियों में करके रखा जाय तो नवगीत बन जाता है | छंदों व सनातन छंदों आदि पर एक विशिष्ट रूढिगतता की अनावश्यकता पर भी चर्चा हुई | सलिल जी का कथन था कि हम जो कुछ भी बोलते हैं वह छंद ही होता है |

------ सलिल जी ने हिन्दी गज़ल में उर्दू शब्दों की बहुलता की अनावश्यकता एवं उर्दू बहरों का संस्कृत-हिन्दी गणों पर ही आधारित होने पर भी चर्चा करते हुए उसे गज़ल की अपेक्षा मुक्तिका कहे जाने की बात रखी | डा श्यामगुप्त ने सभी प्रकार के काव्य की भांति शायरी व गज़ल का आदि श्रोत भी ऋग्वेद से होने की चर्चा की |


----- सलिल जी ने सूरज के विशिष्ट प्रतीक पर रचित कई कविताओं का पाठ किया –
आओ भी सूरज!
छंट गए हैं फूट के बादल
पतंगें एकता की मिलकर उडाओ
गाओ भी सूरज -
--- तथा

सूरज बबुआ
चल स्कूल ...| 


-------- श्रीमती सुषमा गुप्ता जी ने वर्षा गीत सुनाया—
आई सावन की बहार
बदरिया घिरि घिरि आवै |


------- डा श्याम गुप्त ने ब्रजभाषा का एक नवगीत सुनाया –

ना उम्मीदी ने हर मन में
अविश्वास पनपायौ |

असली ते हू सुन्दर, नकली
पुष्प होय करिवैं हैं |
लाचारी है बाजारनि में
वही बिकै करिवे हैं
| ---तथा घनाक्षरी छंद में घनाक्षरी की परिभाषा प्रस्तुत की ...

‘घनन घनन घन घन के समान करें
श्रोता को भावें करें घन जैसी गर्जना |’



चित्र में --१.परिचर्चा ---२. सलिल जी का काव्य पाठ, ...३.सुषमा गुप्ता जी का काव्य पाठ...४.डा श्याम गुप्त का नवगीत ...५.सेल्फी----डा श्याम गुप्त, संजीव वर्मा सलिल, श्रीमती सुषमा गुप्ता...श्री अमरनाथ जी ..



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गुरुवार, 4 अगस्त 2016

गुरुवासरीय गोष्ठी दि.४-८-१६ वृहस्पतिवार को संपन्न ----- डा श्याम गुप्त

                            कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


******गुरुवासरीय गोष्ठी दि.४-८-१६ वृहस्पतिवार*****

------प्रत्येक माह के प्रथम गुरूवार को होने वाली गुरुवासरीय गोष्ठी दि.४-८-१६ वृहस्पतिवार को डा श्याम गुप्त के आवास के-३४८, आशियाना, लखनऊ पर संपन्न हुई | गोष्ठी में साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य, डा श्याम गुप्त, श्री बसंत राम दीक्षित, कौशल किशोर, श्रीमती विजय लक्ष्मी महक, मंजू सिंह, अनिल किशोर शुक्ल निडर, अशोक विश्वकर्मा, गुंजन, श्रीमती सुषमा गुप्ता एवं श्री विनोद कुमार सिन्हा ने काव्यपाठ में भाग लिया |
---काव्य-गोष्ठी के प्रारम्भ से पहले अनौपचारिक वार्ता में श्री विनोद कुमार सिन्हा के उठाये विषय ‘कविता बनती है या बनाई जाती है‘ पर विवेचना की गयी, सभी उपस्थित साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किये |
------ गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए डा श्यामगुप्त ने सरस्वती वन्दना में कहा ..
" माँ लिखती तो सब कुछ तुम हो. नाम मुझे ही देदेती हो |
आप लिखातीं सारे जग से,लिखा श्याम ने कहा देती हो |..."
श्रीमती विजय लक्ष्मी महक एवं अनिल किशोर शुक्ल द्वारा भी माँ की वन्दना की गयी |
------श्री अशोक विश्वकर्मा ‘गुंजन’ के अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए कहा-
"आयेंगे याद हम तुम्हें एक बार फिरसे,
जब तेरे अपने फैसले तुझे सताने लगेंगे |"
-------अनिल किशोर शुक्ल निडर ने भारत के सपूतों को ललकारा—
‘"भारत माँ के अमर सपूतो,
आगे बढाकर आना होगा |"
------- कवयित्री श्रीमती विजय लक्ष्मी ने ज़िंदगी से शिकवा करते हुए कहा...
"काश ए ज़िंदगी ! हम भी तेरी निगाहों में चढ़े होते |
नामचीनों की कतार में हम भी खड़े होते |"
-------श्रीमती मंजू सिंह ने भोले शंकर की अभ्यर्थना करते हुए इच्छा प्रकट की----
"मेरे भोले भाले शंकर को , किसी की नज़र न लगे |’
-------- श्रीमती सुषमा गुप्ता जी ने एक सुन्दर जीवन गीत प्रस्तुत किया ---
“तुम ही मेरे अंग संग हो,तुम ही तो रस रीति रंग हो |
उपमा रूपक उत्प्रेक्षाएं भी तुझको कब पा सकती हैं |
तुम श्लेष माधुर्य ओज हो, भाव व्यंजनायें तुम ही हो |"
एवं सावन के ऋतु के अनुरंजन में ब्रजभाषा में एक मल्हार भी गीत प्रस्तुत किया...
"आई सावन की बहार,
बदरिया घिर घिर आवै | "
------- श्री कौशल किशोर ने शिवकी अर्चना करते हुए कहा-
"दुनिया में देव हज़ारों हैं महादेव की महिमा क्या कहने |
सबको प्यारे, तनुधारी भूत पिशाच भी हैं इनके |"
-------श्री विनोद कुमार सिन्हा ने सावन में प्रिय से वार्तालाप करते हुए सुन्दर गीत प्रस्तुत किया –
‘सावन को प्रिय आजाने दो ,
मधुमय नभ रस बरसेंगे |"
------- कविवर बसंत राम दीक्षित ने श्रृगार गीत प्रस्तुत करते हुए कहा—
"रूपसी बोली नयन से, देखलो भरपूर मुझको ,
और अपनी प्यास को चहक कर बुझालो |"
------ डा श्याम गुप्त ने एक कवित्त द्वारा इसे घनाक्षरी क्यों कहते हैं इस छंद की परिभाषा प्रस्तुत की....
" घनन घनन घन घन के समान करें,
श्रोता को भावें करें घन जैसी गर्जना |" .... तथा
---कुछ देव घनाक्षरी छंद प्रस्तुत किये ---
“मन बाढ़े प्रीती ऐसी तन में अगन श्याम,
साजन बजावै द्वार-खिड़की खनन खनन |’
------विवेचित विषय ‘कविता बनती है या बनाई जाती है’ को संदर्भित करते हुए डा श्याम गुप्त ने गीत प्रस्तुत किया –
“बीज कविता का सदा मन में बसा होता है,
कोइ सींचे तो ये अंकुर हरा होता है |’
---------समापन व्याख्या व विवेचना करते हुए साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने आतंकवाद पर चोट करते हुए एक प्रस्तुत किया –
सीमा पार से आते हैं आतंकी सदा,
इसलिए मित्र की मिताई में न रहिये |
तथा यादों के घन से संदर्भित करते हुए सुन्दर गीत सुनाया –
मचल रहे गरज गरज यादों के घन.....
.यादों के घन |
---- इस अवसर पर श्रीमती सुषमा गुप्ता व विजय लक्ष्मी जी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सन्दर्भ में प्रभावी व उल्लेखनीय सेवा का प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया ...
------अंत में जलपान के पश्चात डा श्यामगुप्त व श्रीमती सुषमा गुप्ता ने सभी उपस्थित विद्वानों का आभार व्यक्त किया |
Drshyam Gupta's photo.
 अनिल किशोर शुक्ल निडर का काव्यपाठ
Drshyam Gupta's photo.
सुषमा गुप्ता द्वारा प्रस्तुत एक गीत 
चित्र में ---१.श्री अनिल किशोर शुक्ल निडर का काव्यपाठ...२.सुषमा गुप्ता द्वारा प्रस्तुत एक गीत ...३.वयोवृद्ध कवि कौशल किशोर की भोले वन्दना...४.विनोद कुमार सिन्हा काव्यापाठ करते हुए ...५.बसंत राम दीक्षित का गीत....६.डा श्याम गुप्त का काव्य पाठ....७.श्रीमती विजय लक्ष्मी डा रंगनाथ मिश्र को अपनी पुस्तकें भेंट करती हुईं ....८.सुषमाजी व विजय लक्ष्मी जी का सम्मान ९. डा सत्य का काव्य पाठ ....

डा श्याम गुप्त का काव्य पाठ

श्रीमती विजय लक्ष्मी डा रंगनाथ मिश्र को अपनी पुस्तकें भेंट करती हुईंसाथ में कवि अशोक विश्वकर्मा गुंजन एवं सुषमा गुप्ता व् मंजू सिंह

.सुषमाजी व विजय लक्ष्मी जी का सम्मान

डा सत्य का काव्य पाठ ...
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कवि कौशल किशोर की भोले वन्दना
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विनोद कुमार सिन्हा काव्यापाठ करते हुए
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बसंत राम दीक्षित का गीत.