saahityshyamसाहित्य श्याम

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शनिवार, 26 सितंबर 2009

गज़ल---हक है

अपनी मर्ज़ी से चलने का सभी को हक है।
कपडे पहनें,उतारें,न पहनेसभी को हक है।

फ़िर तो औरों की भी मर्ज़ी है,कोई हक है,
छेडें, कपडे फ़ाडेंया लूटें,सभी को हक है।

और सत्ता जो कानून बनाती है सभी,
वो मानें, न मानें,तोडें, सभी को हक है।

औरों के हक की न हद पार करे कोई,
बस वहीं तक तो मर्ज़ी है,सभी को हक हैं।

अपने-अपने दायित्व निभायें जो पहले,
अपने हक मांगने का उन्हीं को तो हक है।

सत्ता के धर्म केनियम व सामाज़िक बंधन,
ही तो बताते हैं,क्या-क्या सभी के हक हैं।

देश का,दीन का,समाज़ का भी है हक तुझ पर,
उसकी नज़रों को झुकाने का न किसी को हक है।

सिर्फ़ हक की ही बात न करे कोई ’श्याम,
अपने दायित्व निभायें, मिलता तभी तो हक है

शनिवार, 12 सितंबर 2009

त्रिपदा अगीत सप्तक ---डा श्याम गुप्ता

--त्रिपदा अगीत छंद , अतुकांत कविता की एक विधा 'अगीत' का एक छंद है ,जिसमें --१६-१६ मात्राओं की तीन पंक्तियाँ होती हैं परन्तु अन्त्यानुप्रास ( तुकांत ) होना आवश्यक नहीं। -----
(१)
अंधेरों की परवाह कोई,
करे दीप जलाता जाए;
राह भटके को जो दिखाए
()
सिद्धि -प्रसिद्धि सफलताएं हैं ,
जीवन में लाती हैं खुशियाँ;
पर सच्चा सुख यही नहीं है।
()
चमचों के मज़े देख हमने,
आस्था को किनारे कर दिया;
दिया क्यों जलाएं हमी भला।
()
जग में खुशियाँ हैं उनसे ही,
हसीं चेहरे खिलते फूल;
हंसते रहते गुलशन गुलशन।
()
यद्यपि मुश्किल सदा, बदलना ,
साथ वक्त के यदि चलेंगे ;
तो पिछडे ही रह जायेंगे।
()
खुश होकर फूँका उनका घर,
अपना घर भी बचा पाये;
चिंगारी उड़कर पहुँची थी।
()
बात क्या बागे-बहारों की,
बात हो चाँद-सितारों की;
बात बस तेरे इशारों की।।

बुधवार, 2 सितंबर 2009

मेरे गीत सुरीले क्यों हैं-----

मेरे गीतों में आकर के तुम क्या बसे ,
गीत का स्वर मधुर माधुरी हो गया
अक्षर-अक्षर सरस आम्र-मन्जरि हुआ,
शब्द मधु की भरी गागरी होगया।

तुम जो ख्यालों में आकर समाने लगे,
गीत मेरे कमल दल से खिलने लगे
मन के भावों में तुमने जो नर्तन किया,
गीत बृज की भगति बाबरी होगया

प्रेम की भक्ति-सरिता में होके मगन,
मेरे मन की गली तुम समाने लगे
पन्ना-पन्ना सजा प्रेम रसधार में,
गीत पावन हो मीरा का पद होगया।

भाव चितवन के मन की पहेली बने,
गीत कबिरा का निर्गुण सबद होगया।
तुमने छंदों में सज के सराहा इन्हें,
मधुपुरी की चतुर नागरी होगया

मस्त मैं तो यूहीं गुनुगुनाता रहा ,
तुम सजाती रहीं,मुस्कुरातीं रहीं
भाव भंवरा बने गुनगुनाने लगे ,
गीत का स्वर नवल पांखुरी होगया।

तुम जो हंस-हंस के मुझको बुलाती रहीं,
दूर से छलना बन के लुभाती रहीं।
गीत इठलाके हमको बुलाने लगे,
मन लजीली कुसुम वल्लरी होगया।

तुमने कलियों से जब लीं चुरा शोखियाँ,
बन के गज़रा कली मुस्कुराती रही |
पुष्प चुनकर जो आँचल में भरने चलीं,
गीत पल्लव-सुमन आंजुरी होगया

तेरे स्वर की मधुर माधुरी मिलगई,
गीत राधा की प्रिय बांसुरी होगया
भक्ति के भाव तुमने जो अर्चन किया,
गीत कान्हा की प्रिय सांवरी होगया॥