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गुरुवार, 20 मई 2010

बुराई की जड़ --कविता ....अनीति शास्त्र ( डा श्याम गुप्त ).....

 बुराई की जड़ --कविता ( डा श्याम गुप्त )

प्रत्येक बुराई की जड़ है,
अति सुखाभिलाषा ;
जो ढूंढ ही लेती है
अर्थशास्त्र की नई परिभाषा;
ढूंढ ही लेती है
अर्थ शास्त्रं के नए आयाम ,
और धन आगम-व्यय के
नए नए व्यायाम |
और प्रारम्भ होता है
एक दुश्चक्र, एक कुचक्र -
एक माया बंधन -क्रम उपक्रम द्वारा
समाज के पतन का पयाम |
समन्वय वादी , तथा-
प्राचीन व अर्वाचीन से
नवीन को जोड़े रखकर ,बुने गए-
नए नए तथ्यों , आविष्कारों विचारों से होता है,
समाज-उन्नंत अग्रसर |
पर, सिर्फ सुख अभिलाषा,अति सुखाभिलाषा-
उत्पन्न करती है , दोहन-भयादोहन,
प्रकृति का,समाज का, व्यक्ति का;
समष्टि होने लगती है , उन्मुख
व्यष्टि की ओर;
समाज की मन रूपी पतंग में बांध जाती है-
माया की डोर |
ऊंची , और ऊंची, और ऊंची
उड़ने को विभोर ;
पर अंत में  कटती है ,
गिरती है, लुटती है वह डोर-
क्योंकि , अभिलाषा का नहीं है , कोई-
ओर व छोर |

नायकों , महानायकों द्वारा-
बगैर सोचे समझे 
सिर्फ पैसे के लिए कार्य करना;
चाहे फिल्म हो या विज्ञापन ;
करदेता है-
जन आचार संहिता का समापन |
क्योंकि इससे उत्पन्न होता है
असत्य का अम्बार,
झूठे सपनों का संसार ;
और उत्पन्न होता है ,
भ्रम,कुतर्क, छल, फरेब, पाखण्ड kaa
विज्ञापन किरदार ,
एक अवास्तविक,असामाजिक संसार |

साहित्य, मनोरंजन व कला-
जब धनाश्रित होजाते हैं;
रोजी रोटी का श्रोत , व-
आजीविका बन जाते हैं ;
यहीं से प्रारम्भ होता है-
लाभ का अर्थ शास्त्र,
लोभ व धन आश्रित अनैतिकता की जड़ का ,
नवीन लोभ-कर्म नीति शास्त्र , या--
अनीति शास्त्र ||




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