कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
गुरुवार, 4 नवंबर 2010
डा श्याम गुप्त की गज़ल......दीप खुशियों के....
कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल.....
दीप खुशियों के जलें एसे ।
पुष्प दामन में खिलें जैसे।
खूब रोशनी हो जीवन में,
सफलताएं सब मिलें जैसे।
आशा और उत्साह से पूरित ,
जीवन राह में चलें जैसे।
उमंगें व उल्लास के पौधे,
उर्वरा भूमि में फलें जैसे।
मुस्कुराइए जला कर दीये,
हम सामने हों खड़े जैसे।
खुश होलेना कि तरन्नुम में,
श्याम की ग़ज़ल सुनलें जैसे ॥
पुष्प दामन में खिलें जैसे।
खूब रोशनी हो जीवन में,
सफलताएं सब मिलें जैसे।
आशा और उत्साह से पूरित ,
जीवन राह में चलें जैसे।
उमंगें व उल्लास के पौधे,
उर्वरा भूमि में फलें जैसे।
मुस्कुराइए जला कर दीये,
हम सामने हों खड़े जैसे।
खुश होलेना कि तरन्नुम में,
श्याम की ग़ज़ल सुनलें जैसे ॥
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