कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
रे मन अब कैसी ये भटकन |
क्यों न रमे तू श्याम भजन नित, कैसी मन अटकन |
श्याम कृपा बिन जगत-जुगति नहीं,मिले न भगति सुहानी |
श्याम भगति बिनु क्या जग-जीवन कैसी अकथ कहानी |
श्याम की माया, श्याम ही जाने, और न जाने कोय |
माया मृग-मरीचिका भटकत जन्म वृथा ही होय |
श्याम भगति रस रंग रूप से सींचे जो मन उपवन |
श्याम,श्याम की कृपा मिले ते सफल होय नर जीवन ||
रे नर ! अब कैसी ये भटकन......||
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