कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार ----इस सुमनांजलि में आठ रचनाएँ ......देवानुराग....निर्गुण प्रतिमा.....पूजा....भजले राधेश्याम.....प्रभु रूप निहारूं ....सत्संगति ...मैं तेरे मंदिर का दीप....एवं गुरु-गोविन्द .....प्रस्तुत की जायेंगी । प्रस्तुत है पन्चम रचना..
प्रभु रूप निहारूं..
कोटि कोटि जीवन मैं वारूं ||
मथुरा गोकुल कृष्ण कहाए,
अवधपुरी बन राम सुहाए |
काशी, विश्वनाथ बन आये ,
बद्रीनाथ बदरी बन छाये |
निर्जन पर्वत वन जब भाये ,
नाथ बने केदार सुहाए |
द्वादश ज्योतिर्लिंग विचारूं,
अमरनाथ हिम रूप निहारूं |
बलिहारी प्रभु रूप निहारूं ,
कोटि कोटि जीवन मैं वारूं ||
क्षीरसिंधु बन विष्णु स्वरूपा,
नाना भांति धरे जग रूपा |
तुम्हीं ओम तुम शब्द अनंता,
कहैं सुनें गायें श्रुति-संता |
भक्ति और तुम ज्योति अनूपा,
तुम हो मोक्ष और भव कूपा |
घट-घट प्रभु का रूप निहारूं ,
जीवन इन चरणों में वारूं |
बलिहारी प्रभु रूप निहारूं,
कोटि कोटि जीवन मैं वारूं ||
तुम ब्रह्मा हो तुम ही ईश्वर,
तुम पुराण तुम वेद-उपनिषद |
विविध ज्ञान इतिहास पुराना,
दर्शन धर्म विषय विज्ञाना |
तुम हो जग ब्रह्माण्ड निकाय,
जग कारक, जग धारक माया |
ब्रह्म, जीव सत्, नित्य अनंता ,
प्रकृति, पुरुष अनित्य अनंता |
नेति-नेति बहु भांति पुकारूं ,
ईशा अल्ला सतगुरु धारूं |
बलिहारी प्रभ रूप निहारूं,
कोटि कोटि जीवन मैं वारूं ||