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शनिवार, 25 अगस्त 2012

प्रेम-काव्यमोक्षदा एकादश --प्रेम काव्य -एकादश सुमनान्जलि- अमृतत्व--रचना-५ ( अंतिम) ..डा श्याम गुप्त..

                                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



                                          
                                                             प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है-- इस काव्य-कृति की अंतिम व एकादश  सुमनान्जलि- अमृतत्व --जो मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य व सोपान है  वह प्रेम, भक्ति, कर्म , योग, ज्ञान   चाहे जिस  मार्ग से आगे बढे .. ----इस सुमनांजलि में...जीवन-सुख, शाश्वत-सुख, ज्ञानामृत, परमार्थ एवं मोक्षदा एकादश ....अदि पांच रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी | प्रस्तुत है ..पंचम व इस कृति की अंतिम   रचना .....
              मोक्षदा एकादश ...

समझें  भेदा-भेद  जब, पायें  सच्चा  ज्ञान ,
मन विषयों से निरत हो, श्याम वही है ध्यान |

चिंतन में लय जो सदा, मन में दृढ़ संकल्प,
यही  अवस्था 'धारणा'', यही धर्म संकल्प |

शास्त्रों के अनुकूल जो, करते तर्क विचार ,
सभी प्राप्तियां तुच्छ हों, श्याम'समाधि 'विचार |

फल की जो इच्छा नहीं, धर्माधर्म अलिप्त,
राग  द्वेष दुःख से परे, सोई जीवन्मुक्त |

ज्ञाता ज्ञान व ज्ञेय  का, भेद रहे नहिं रूप,
वह तो स्वयं प्रकाश है, परमानंद स्वरुप |

नित्यानित्य विचार से, भवसुख सदा अनित्य,
ममता बंधन मुक्त हों, श्याम मोक्ष का सत्य |

ज्ञान और संसार को, जो  दोनों को ध्याय ,
माया बंधन पार कर, अमर तत्व सो पाय   |

इस  संसार असार में, श्याम' प्रेम ही सार ,
प्रेम  करे दोनों मिलें, ज्ञान और संसार |

प्रेम  बसे भगवान हैं, महिमा प्रेम अपार ,
वो ही  परमानंद है, प्रेम मोक्ष का सार |

प्रेम लीन  होपाय जो, परम शान्ति सो पाय,
सारे बंधन मुक्त हो, अमरतत्व  पाजाय   |

प्रेम  सभी से कीजिये, सकल शास्त्र का सार ,
ब्रह्मानंद  मिले उसे, श्याम' मोक्ष साकार ||



                                               इति  ---- प्रेम काव्य - महा काव्य  ...