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शुक्रवार, 20 मई 2016

अज़नबी आज अपने शहर में हूँ मैं---डा श्याम गुप्त



                                   


अपने शहर में...

अज़नबी आज अपने शहर में हूँ मैं,
वे सभी संगी साथी कहीं खोगये |
कौन पगध्वनि मुझे खींच लाई यहाँ,
हम कदम थे वो सब अज़नबी होगये |


अजनबी सा शहर, अजनबी राहें सब,
राह के सब निशाँ जाने कब खोगये |
राह चलते मुलाकातें होती जहां,
मोड़ गलियों के सब अजनबी होगये |

साथ फुटपाथ के पुष्प की क्यारियाँ,
द्रुमदलों की सुहानी वो छाया कहाँ |
दौड़ इक्के व ताँगों की सरपट न अब,
राह के सिकता कण अजनबी होगये |

भोर की शांत बेला में बहती हुई,
ठंडी मधुरिम सुगन्धित पवन अब कहाँ |
है प्रदूषित फिजां धुंआ डीज़ल से अब,
सारे जल थल हवा अजनबी होगये |

शाम होते छतों की वो रंगीनियाँ,
सिलसिले बातों के, न्यारे किस्से कहाँ |
दौड़ते लोग सडकों पर दिखते सदा,
रिश्ते नाते सभी अजनबी होगये |

Drshyam Gupta's photo. वो यमुना का तट और बहकती हवा,
वो बहाने मुलाकातों के अब कहाँ |
चाँद की रोशनी में वो अठखेलियाँ ,
मस्तियों के वो मंज़र कहाँ खोगये |

हर तरफ धार उन्नति की है बह रही,
और प्रदूषित नदी आँख भर कह रही |
श्याम क्या ढूँढता इन किनारों पै अब ,
मेले ठेले सभी अजनबी होगये ||

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