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बुधवार, 5 अप्रैल 2017

मुहब्बत के सिवा....ग़ज़ल.... डा श्याम गुप्त......

                          कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


मुहब्बत के सिवा....

कहते हैं शायर और भी गम हैं मुहब्बत के सिवा |
आप ही कहिये क्या रक्खा है मुहब्बत के सिवा |

हमने माना की मोहब्बत है इक काँटों की डगर,
किसने जाना है भला किससे, मुहब्बत के सिवा |

हमने लो मान लिया बेवफा है मुहब्बत भी खूब,ग़ज़ल----
बावफा और मिला कब है, मुहब्बत के सिवा |

जाने क्यों कहते हैं मुहब्बत को गम दुनिया वाले,
और जीने का सब़ब क्या है, मुहब्बत के सिवा |

इश्क वालों की जहां में यही खूबी है यारो,
जीते मरते हैं कब, किसपे, मुहब्बत के सिवा |

चलो माना कि हैं गम और भी ज़माने में, मगर,
इतना मीठा सा मिले कैसे, मुहब्बत के सिवा |

श्याम’ है इश्क में यही एक मुकम्मिल सा सवाल,
जियें तो किसपे, मरें किसपे, मुहब्बत के सिवा ||

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