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शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

ललिता चन्द्रावली राधा का त्रिकोण -----चन्द्रावली...डा श्याम गुप्त ....

                                   कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित    

-ललिता चन्द्रावली राधा का त्रिकोण -----
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--- प्रेम, तपस्या एवं योग-ब्रह्मचर्य का उच्चतम आध्यात्मिक भाव-तत्व ----
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------आगे-------चन्द्रावली सखी----
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२.चन्द्रावली
करेह्ला गाँव में रहती थी | गोवर्धन मल्ल की पत्नी थी, जो चन्द्रावली के साथ कभी सखीथरा (सखी स्थल) में कभी गोवर्धन निकट रहते थे |
------- चन्द्रावली वृषभानु महाराज के भाई चंद्रभानु गोप महाराज की लाड़ली पुत्री थी, जो रीठौरा गाँव के राजा थे | अतः वह राधा की चचेरी बड़ी बहन थी| ये श्रीकृष्ण की अनन्य प्रिया सखी थीं| ललिता जी का जन्म स्थान भी करेहला है| ललिता, पद्मा अदि सखियाँ यहाँ चन्द्रावली से श्रीकृष्ण का मिलन कराने हेतु प्रयत्न करती थीं |
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राधा के वृन्दावन आने से पहले चन्द्रावली श्रीकृष्ण की युवावस्था की प्रेमिका व सखी थी, तत्पश्चात खंडिका नायिका |
------भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक चन्द्रावली में ललिता व चन्द्रावली के संवाद इस प्रकार हैं—
नारद- चन्द्रावली के प्रेम की चर्चा आजकल ब्रज की डगर डगर फ़ैली हुई है| उधर श्रीमती ( राधा जी ) जी का भी भय है तथापि श्रीकृष्ण से जल में दूध की भाँति मिल रही हैं किसी न किसी उपाय से श्रीकृष्ण से मिल ही रहती हैं।
ललिता- ब्रज में रहकर इससे वही बची होगी जो ईंट-पत्थर की होगी|
चन्द्रावली—किससे ..
ललिता- जिसके पीछे तेरी यह दशा है |
चन्द्रावली- किसके पीछे मेरी यह दशा है |
ललिता- सखी, तू फिर वही बात कहे जाती है मेरी रानी, ये आँखें ऐसी बुरी हैं की जब किसी से लगती हैं तो कितना भी छिपाओ नहीं छिपती, मेरी तो यह विपद भोगी हुई है |
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वृन्दावन के श्री रूप गोस्वामी महाराज की कृति राधा-माधव के अनुसार गोपियों में जो श्रीकृष्ण को प्रिय हैं, राधा और चन्द्रावली सर्वश्रेष्ठ हैं| दोनों में राधा जी श्रेष्ठ हैं वे माधव की कायारूपा हैं एवं सभी गुणों में सर्वश्रेष्ठ हैं|
------- रूप गोस्वामी जी के कुछ अन्य कृतियों, गोपाल विजय, के अनुसार ही चन्द्रावली राधा का ही अन्य नाम है | वस्तुतः सभी गोपियाँ राधा के ही विभिन्न भाव-नाम हैं| वे सभी राधा में ही निहित हैं|
------राधा मूल स्वरुप-शक्ति,महाभाव –वामा-हैं तो चन्द्रावली– दक्षिण अर्थात उनकी पूर्तिरूप भाव हैं|
------- यद्यपि चन्द्रावली सदैव ही राधा से कृष्ण प्रेम की प्रतियोगिता में क्रमश पीछे ही रह जाने वाली थी परन्तु फिर भी वह संतुष्ट थी |
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वृंदा कहती है कि चन्द्रावली व श्री कृष्ण के प्रेम महिमा कौन जान पाया है कि, जिनका प्रेम कभी कम नहीं होता, यद्यपि राधा के सौन्दर्य व गुणों में दिन प्रतिदिन वृद्धि के साथ कृष्ण में भी वृद्धि होते जाने पर चन्द्रावली के महत्त्व में कमी होने की संभावना है |
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श्रीकृष्ण के चले जाने पर गोवर्धन में एक ताल में राधा अपनी प्रतिच्छाया देख कर उसे चन्द्रावली समझती है, और कहने लगती है, अरे चन्द्रावली ! मैं तुझे देखकर कितनी भाग्यवान हूँ, आज भाग्यशाली दिवस है| श्रीकृष्ण ने कितनी बार तुम्हें अपनी भुजाओं में कस कर जकड़ा होगा, जल्दी आओ और अपनी भुजायें मेरे गले में डालकर मेरी प्यासी आत्मा को जल प्रदान करो क्योंकि उनमें अभी भी श्रीकृष्ण के कर्णफूलों की प्रिय सुगंध बसी हुई है |

---क्रमश ---राधा---अगली पोस्ट में....



चित्र---चन्द्रावली ...

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