कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
बाजै रे पग घूंघर बाजै रे ।
ठुमुकि ठुमुकि पग नचहि कन्हैया, सब जग नाचै रे ।
जसुमति अंगना कान्हा नाचै, तोतरि बोलन गावै ।
तीन लोक में गूंजे यह धुनि, अनहद तान गुंजावै ।
कण कण सरसे, पत्ता पत्ता, हर प्राणी हरषाये |
कैसे न दौड़ी आयं गोपियाँ घुँघरू चित्त चुराए |
तारी दै दै लगीं नचावन, पायलिया छनकैं |
ढफ ढफली खड़ताल, मधुर-स्वर,कर कंकण खनकें |
गोल बनाए गोपी नाचें, बीच नचें नंदलाल |
सुर दुर्लभ लीला आनंद मन, जसुमति होय निहाल |
कान्हा नाचे ठुम्मक ठुम्मक, तीनों लोक नचावै रे |
मन आनंद चित श्याम’, श्याम की लीला गावै रे ||
ब्रज की भूमि भई है निहाल |
सुर गन्धर्व अप्सरा गावें नाचें दे दे ताल |
जसुमति द्वारे बजे बधायो, ढफ ढफली खडताल |
पुरजन परिजन हर्ष मनावें जनम लियो नंदलाल |
आशिष देंय विष्णु शिव् ब्रह्मा, मुसुकावैं गोपाल |
बाजहिं ढोल मृदंग मंजीरा नाचहिं ब्रज के बाल |
गोप गोपिका करें आरती, झूमि बजावैं थाल |
आनंद-कन्द प्रकट भये ब्रज में विरज भये ब्रज-ग्वाल |
सुर दुर्लभ छवि निरखे लखि-छकि श्याम’ हू भये निहाल ||
सखी री मोरे अंगना आयो श्याम |
पीताम्बर कटि मोर पखा सिर छवि सांवरी ललाम |
चंचल चपल नैन कजरारे कानन लटकन लोल |
हरित मुरलिया अधरन सौहै मधुरस घोले बोल |
ठुमुकि ठुमुकि पग नचै कन्हैया सुधि बुधि बैठी खोय |
लग्यो नचावन कर गहि मोहन मोहि लियो सखि मोय |
भरमाई सखि नैनन सैननि नटखट नन्द किशोर |
छींके चढि दधि माखन लूट्यो मटुकी दीन्ही फोरि |
चेतति ही जब पकरन धाई भाज्यो नैन नचाय |
श्याम, श्याम लीला चित चितवत चित चकोर हरषाय ||
बाजै रे पग घूंघर बाजै रे ।
ठुमुकि ठुमुकि पग नचहि कन्हैया, सब जग नाचै रे ।
जसुमति अंगना कान्हा नाचै, तोतरि बोलन गावै ।
तीन लोक में गूंजे यह धुनि, अनहद तान गुंजावै ।
कण कण सरसे, पत्ता पत्ता, हर प्राणी हरषाये |
कैसे न दौड़ी आयं गोपियाँ घुँघरू चित्त चुराए |
तारी दै दै लगीं नचावन, पायलिया छनकैं |
ढफ ढफली खड़ताल, मधुर-स्वर,कर कंकण खनकें |
गोल बनाए गोपी नाचें, बीच नचें नंदलाल |
सुर दुर्लभ लीला आनंद मन, जसुमति होय निहाल |
कान्हा नाचे ठुम्मक ठुम्मक, तीनों लोक नचावै रे |
मन आनंद चित श्याम’, श्याम की लीला गावै रे ||
ब्रज की भूमि भई है निहाल |
सुर गन्धर्व अप्सरा गावें नाचें दे दे ताल |
जसुमति द्वारे बजे बधायो, ढफ ढफली खडताल |
पुरजन परिजन हर्ष मनावें जनम लियो नंदलाल |
आशिष देंय विष्णु शिव् ब्रह्मा, मुसुकावैं गोपाल |
बाजहिं ढोल मृदंग मंजीरा नाचहिं ब्रज के बाल |
गोप गोपिका करें आरती, झूमि बजावैं थाल |
आनंद-कन्द प्रकट भये ब्रज में विरज भये ब्रज-ग्वाल |
सुर दुर्लभ छवि निरखे लखि-छकि श्याम’ हू भये निहाल ||
सखी री मोरे अंगना आयो श्याम |
पीताम्बर कटि मोर पखा सिर छवि सांवरी ललाम |
चंचल चपल नैन कजरारे कानन लटकन लोल |
हरित मुरलिया अधरन सौहै मधुरस घोले बोल |
ठुमुकि ठुमुकि पग नचै कन्हैया सुधि बुधि बैठी खोय |
लग्यो नचावन कर गहि मोहन मोहि लियो सखि मोय |
भरमाई सखि नैनन सैननि नटखट नन्द किशोर |
छींके चढि दधि माखन लूट्यो मटुकी दीन्ही फोरि |
चेतति ही जब पकरन धाई भाज्यो नैन नचाय |
श्याम, श्याम लीला चित चितवत चित चकोर हरषाय ||
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