कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित-------
सखि कैसे !
सखि री तेरी कटि छीन ,पयोधर भार भला धरती हो कैसे ?
बोली सखी मुसुकाइ, हिये, उर भार तिहारो धरतीं हैं जैसे |
भोंहें बनाई कमान भला , हैं तीर कहाँ पै ,निशाना हो कैसे ?
नैनन के तूरीण में बाण , धरे उर ,पैनी कटार के जैसे |
कौन यहाँ मृग-बाघ धरे , कहो बाणन वार शिकार हो कैसे ?
तुम्हरो हियो मृग भांति पिया,जब मारै कुलांच,शिकार हो जैसे |
प्रीति तेरी मनमीत प्रिया ,उलझाए ये मन उलझी लट,जैसे |
लट सुलझाय तौ तुम ही गए,प्रिय मन उलझाय गए कहो कैसे ?
ओठ तेरे विम्बा फल भांति, किये रचि लाल , अंगार के जैसे |
नैन तेरे प्रिय प्रेमी चकोर ,रखें मन जोरि अंगार से जैसे |
अनहद नाद को गीत बजै,संगीत प्रिया अंगडाई लिए से |
कंचन काया के ताल-मृदंग पै, थाप तिहारी कलाई दिए ते |
प्रीति भरे रस-बैन तेरे,कहो कोकिल कंठ भरे रस कैसे ?
प्रीति की बंसी तेरे उर की ,पिय देती सुनाई मेरे उर में से |
पंकज नाल सी बाहें प्रिया ,उर बीच धरे क्यों, अँखियाँ मीचे ?
मत्त-मतंग की नाल सी बाहें ,भरें उर बीच रखें मन सींचे ||
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
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