कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
ग़ज़ल- आपने क्या किया
दिए जलने लगे आपने क्या किया ,
दिल मचलने लगे आपने क्या किया |
अपनी मासूम दुनिया में खोये थे हम,
ख्याल में आगये आपने क्या किया |
अपनी राहों में थे हम चले जा रहे ,
आप क्यों मिल गए आपने क्या किया |
खुद की चाहत में दिल अपना आबाद था,
आस बन आ बसे आपने क्या किया |
जब खिलाये थे वे पुष्प चाहत के तो,
फेर रुख चलदिये आपने क्या किया |
साथ चलते हुए आप क्यों रुक गए,
क्यों कदम थम गए आपने क्या किया |
श्याम' अब कौन चाहत का सिजदा करे,
नाखुदा बन गए आपने क्या किया
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें