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मंगलवार, 31 अगस्त 2010

क्या आयेगा कोई कृष्ण ....डा श्याम गुप्त का अगीत....

क्या आयेगा कोई  कृष्ण  

क्या आयेगा फ़िर,
कोई  कृष्ण ;
आस्था रूपी द्रोपदी की
अनावृत्त देह को ढकने,
चीर हरण को रोकने,
दुःशासन को टोकने , का--
दिखायेगा साहस
भरी सभा में ।






यक्ष प्रश्न---केवल महिला ब्लोग्गिंग-----क्यों....डा श्याम गुप्त---

कुछ यक्ष प्रश्न -----नारी ब्लोग्गिन्ग-----केवल महिला ब्लोगर.....क्यों?--डा श्याम गुप्त.....

एक ब्लोग है जो सिर्फ़ महिलाओं का है जो कहता है---

" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived "------भला इन्डिअन महिलाएं गयी ही कहां थीं जो अब आयी हैं???????????????????????
-----वे यह भी कहतीं हैं---

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला बाइलिन्गुअल कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।------भला महिलाओं को अलग से सब कुछ क्यों चाहिये, क्या समता- समभाव में उनका विश्वास नहीं है, वे पुरुष से कन्धा मिलाकर क्यों नहीं चलना चाहतीं ???????????????

आप यह भी कहती है----
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? यहाँ पर संवाद भी हैं समाज के दूसरे वर्गों से । संवाद सब वर्गों के लिये खुला हैं । कमेन्ट दे कर हमारी सोच को विस्तार भी दे और सही भी करे क्योकि हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । किसी को लगता हैं हम ग़लत हैं तो हमे जरुर बताये’--परन्तु आपका ही कथन है---    
नारी ब्लॉग पर वही कमेन्ट दिखाये जाते हैं जो नारी कि प्रगति को सही मानते हैं , जो नारी को पारंपरिक सोच से नहीं जोडते हैं । इस ब्लॉग का मकसद उन नारियों कि बात को आगे ले जाना हैं जो नारी को वस्तु ना मानकर इंसान मानती हैं । आप का कमेन्ट अगर हमारी बात के विरोध मे हैं आप उसको अपने ब्लॉग पर पोस्ट के रूप मे दे सकते हैं यहाँ उसको पब्लिश नहीं किया जाएगा दो साल हो चुके हैं इस ब्लॉग को और सहज सहमति कहती हैं आगे बढ़ो और अपनी बात को दुनिया तक पहुचाओ ।"""-----वाह !! क्या बात है!! जो अपने विरुद्ध बात न सुन सके उससे अधिक तानाशाह कौन???
आपका कथन है कि-----कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ?? इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।---------सच है आखिर नारी हर जगह क्यों अलग लाइन चाहती है, क्या यह सुविधा भोगी भाव ही नारी को हर बार छलता नहीं आया है, हर काल में।

 --------क्या ये सोचने का विषय नहीं है?? 

कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति....एक अभिनव संस्था.......

कर्णाटक महिला सेवा समिति ,बन्गलोर----.एक अभिनव संस्था


<--समिति भवन
वर्त्तमान
पदाधिकारी-->
कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, चामराज पेट ,बंगलौर की स्थापना स्व.पी आर श्री निवास शास्त्री जी ने गांधीजी के आदर्शों पर चलते हुए , महिलाओं को संगठित करके १९५३ में की थी। यह महिलाओं द्वारा संचालित एक स्वैक्षिक संस्था है जो कर्नाटक के लगभग २७ जिलों में राष्ट्र भाषा हिन्दी के प्रचार -प्रसार में संलग्न है। यह संस्था भारत में एक मात्र ऐसी स्वायत्त शासी संस्था है जो पूर्ण रूप से महिलाओं द्वारा ही संचालित है। इसका संचालन कार्यकारिणी समिति द्वारा होता है एवं बुज़ुर्ग ,सक्रिय महिलाओं का मार्गदर्शन मिलता है।वर्तमान में यह संस्था एक बडे तीन मंज़िले भवन में सुश्री शान्ता बाई के संरक्षण में चलरही है जो एक कुशल अधिकारी , हिन्दी बोलने में पटु व मिलनसार महिला हैं, उन्होंने सारा संस्थान बडे प्रेम से दिखाया एवं समिति के उद्देश्य व क्रिया-कलापों का ब्योरा दिया।
समिति का उद्देश्य हिन्दी प्रचार के साथ भारत की एकता बनाये रखना व प्रान्तीय व अन्य भाषाओं के सहयोग से हिन्दी का विकास करना है। समिति का मुख्य कार्य हिन्दी प्रचार,साहित्य काप्रकाशन,हिन्दी की परीक्षायें लेना व उनके लिये पुस्तकें छापना तथा महिलाओं को ट्रेनिंग देना है। इसके लिये समिति -हिन्दी सुबोध, प्रथमा, मध्यमा, उत्तमा , भाषा भूषण व भाषा प्रवण--की डिग्री देती है। हिन्दी विषयों पर शोध-एम फ़िल, पी एच डी भी कराई जाती है। संस्था अपनी मासिक पत्रिका"हिन्दी प्रचार वाणी" भी प्रकाशित करती है जिसमें हिन्दी भाषा व साहित्य संबन्धी उच्चकोटि के लेख व अन्य साहित्य हो्ता समिति विश्वविध्यालय स्तर की व हिन्दी से कन्नड व कन्नड से हिन्दी की पुस्तकें अनुवाद कराकर भी प्रकाशित करती है। समिति के पांच पुस्तकालय भी हैं जिनमें विविध विषयों की लगभग २५००० पुस्तकें है। समिति का अपनास्वयं का मुद्रणालय ( प्रिन्टिंग प्रेस) भी है एवं अपना कम्प्यूटर विभाग भी है जिनका समस्त कार्य महिलायें ही देखती व करती हैं। समिति १८ वर्ष से ’ हिन्दी शिक्षक प्रशिक्षण’ कार्यक्रम अपने सात हिन्दी प्रशिक्षण कालेजों द्वारा चलारही है।

रविवार, 29 अगस्त 2010

गोत्र के बारे में पढें---श्री सुबोध कुमार की व्याख्या.....


गोत्र के बारे में पढ़ें -सुबोध कुमार की व्याख्या------

कृण्वन्तो विश्वमार्यम्

By--subodhkumar

--सगोत्र विवाह भारतीय वैदिक परम्परा मे निषिद्ध माना जाता है.गोत्र शब्द का प्रयोग वैदिक ग्रंथों मे कहीं दिखायी नही देता. सपिण्ड (सगे बहन भाइ) के विवाह निषेध के बारे में ऋग्वेद 10वें मण्डल के 10वें सूक्त मे यम यमि जुडवा बहन भाइ के सम्वाद के रूप में आख्यान द्वारा उपदेश मिलता है. यमी अपने सगे भाई यम से विवाह द्वारा संतान उत्पन्न करने की प्रबल इच्छा प्रकट करती है.परन्तु यम उसे यह अच्छे तरह से समझाता है ,कि ऐसा विवाह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध होता है,और जो इस प्रकार संतान उत्पन्न करते हैं वे घोर पाप करते है, सलक्षमा यद्विषुरुषा भवाति10/10/2 (“सलक्ष्मा सहोदर बहन से पीडाप्रद संतान उत्पन्न होने की सम्भावना होती है”)
पापमाहुर्य: सस्वारं निगच्छात10/10/12 ( “जो अपने सगे बहन भाई से संतानोत्पत्ति करते हैं, भद्र जन उन्हें पापी कहते हैं) इस विषय पर स्पष्ट जानकारी पाणिनी कालीन भारत से भी मिलती है. अष्टाध्यायी के अनुसार अपत्यं पौत्र प्रभृति यद गोत्रम् “, एक पुरखा के पोते,पडपोते आदि जितनी संतान होगी वह एक गोत्र की कही जायेगी. यहां पर सपिण्ड का उद्धरण करना आवश्यक हो जाता है.
सपिण्डता तु पुरुषे सप्तमे विनिवर्तते ! समानोदकभावस्तु जन्मनाम्नोरवेदन!! “—मनु-५/६०.

सगापन तो सातवीं पीढी में समाप्त हो जाता है. और घनिष्टपन जन्म और नाम के ज्ञात ना रहने पर छूट जाता है.आधुनिक जेनेटिक अनुवांशिक विज्ञान के अनुसार inbreeding multiplier अंत:प्रजनन से उत्पन्न विकारों की सम्भावना का वर्धक गुणांक इकाई से यानी एक से कम सातवीं पीढी मे जा कर ही होता है, गणित के समीकरण के अनुसार, अंत:प्रजनन विकार गुणांक= (0.5)raised to the power N x100, ( N पीढी का सूचक है,) पहली पीढी मे N=1,से यह गुणांक 50 होगा, छटी पीढी मे N=6 से यह गुणांक 1.58 हो कर भी इकाई से बडा रहता है. सातवी पीढी मे जा कर N=7 होने पर ही यह अंत:पजनन गुणांक 0.78 हो कर इकाई यानी एक से कम हो जाता है, मतलब साफ है कि सातवी पीढी के बाद ही अनुवांशिक रोगों की सम्भावना समाप्त होती है. यह एक अत्यंत विस्मयकारी आधुनिक विज्ञान के अनुरूप सत्य है जिसे हमारे ऋषियो ने सपिण्ड विवाह निषेध कर के बताया था; सगोत्र विवाह से शारीरिक रोग , अल्पायु , कम बुद्धि, रोग निरोधक क्षमता की कमी, अपंगता, विकलांगता सामान्य विकार होते हैं. भारतीय परम्परा मे सगोत्र विवाह न होने का यह भी एक परिणाम है कि सम्पूर्ण विश्व मे भारतीय सब से अधिक बुद्धिमान माने जाते हैं.सपिण्ड विवाह निषेध भारतीय वैदिक परम्परा की विश्व भर मे एक अत्यन्त आधुनिक विज्ञान से अनुमोदित व्यवस्था है. पुरानी सभ्यता चीन, कोरिया, इत्यादि मे भी गोत्र /सपिण्ड विवाह अमान्य है. परन्तु मुस्लिम और दूसरे पश्चिमी सभ्यताओं मे यह विषय आधुनिक विज्ञान के द्वारा ही लाया जाने के प्रयास चल रहे हैं. एक जानकारी भारत वर्ष के कुछ मुस्लिम समुदायों के बारे मे भी पता चली है. ये मुसलमान भाई मुस्लिम धर्म मे जाने से पहले के अपने हिंदु गोत्रों को अब भी याद रखते हैं, और विवाह सम्बंध बनाने समय पर सगोत्र विवाह नही करते.
आधुनिक अनुसंधान और सर्वेक्षणों के अनुसार फिनलेंड मे कई शताब्दियों से चले आ रहे शादियों के रिवाज मे अंत:प्रजनन के कारण ढेर सारी ऐसी बीमारियां सामने आंयी हैं जिन के बारे वैज्ञानिक अभी तक कुछ भी नही जान पाए हैं. मेडिकल अनुसंधानो द्वारा , कोरोनरी हृदय रोग, स्ट्रोक, कैंसर , गठिया, द्विध्रुवी अवसाद (डिप्रेशन), दमा, पेप्टिक अल्सर, और हड्डियों की कमजोरी. मानसिक दुर्बलता यानी कम बुद्धि का होना भी ऐसे विकार हैं जो अंत:प्रजनन से जुडे पाए गए हैं बीबीसी की पाकिस्तानियों पर ब्रिटेन की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन के बच्चों मे 13 गुना आनुवंशिक विकारों के होने की संभावना अधिक मिली, बर्मिंघम में पहली चचेरे भाई से विवाह के दस बच्चों में एक या तो बचपन में मर जाता है या एक गंभीर विकलांगता विकसित करता है. बीबीसी ने यह भी कहा कि, पाकिस्तान में ब्रिटेन, के पाकिस्तानी समुदाय में प्रसवकालीन मृत्यु दर काफी अधिक है. इस का मतलब यह है कि ब्रिटेन में अन्य सभी जातीय समूहों. के मुकाबले मे जन्मजात सभी ब्रिटिश पाकिस्तानी शिशु मौते 41 प्रतिशत अधिक पाई गयी. इसी प्रकार Epidermolysis bullosa अत्यधिक शारीरिक कष्ट का जीवन, सीमित मानवीय और संपर्क शायद त्वचा कैंसर से एक जल्दी मौत भीआनुवंशिक स्थितियों की संभावना बताती है.
माना जाता है, कि मूल पुरुष ब्रह्मा के चार पुत्र हुए, भृगु, अंगिरा, मरीचि और अत्रि. भृगु के कुल मे जमदग्नि, अंगिरा के गौतम और भरद्वाज,मरीचि के कश्यप,वसिष्ट, एवं अत्रि के विश्वामित्र हुए; ----
इस प्रकार जमदग्नि, गौतम, भरद्वाज, कश्यप, वसिष्ट, अगस्त्य और विश्वामित्र ये सात ऋषि आगे चल कर गोत्रकर्ता या वंश चलाने वाले हुए. अत्रि के विश्वामित्र के साथ एक और भी गोत्र चला बताते हैं. इस प्रकार के विवरण से प्राप्त होती है कि--आदि ऋषियों के आश्रम के नाम ,अपने नाम के साथ गुरु शिष्य परम्परा, पिता पुत्र परम्परा आदि के साथ, अपने नगर, क्षेत्र, व्यवसाय समुदाय के नाम भी जोड कर बताने की प्रथा चल पडी थीं. परन्तु वैवाहिक सम्बंध के लिए सपिंड की सावधानी सदैव वांछित रहती है. आधुनिक काल मे जनसंख्या वृद्धि से उत्तरोत्तर समाज, आज इतना बडा हो गया है कि सगोत्र होने पर भी सपिंड न होंने की सम्भावना होती है. इस लिए विवाह सम्बंध के लिए आधुनिक काल मे अपना गोत्र छोड देना आवश्यक नही रह गया है. परंतु सगोत्र होने पर सपिण्ड की परीक्षा आवश्यक हो जाती है.यह इतनी सुगम नही होती. सात पीढी पहले के पूर्वजों की जानकारी साधारणत: उपलब्ध नही रह्ती. इसी लिए सगोत्र विवाह न करना ही ठीक माना जाता है. इसी लिए 1955 के हिंदु विवाह सम्बंधित कानून मे सगोत्र विवाह को भारतीय न्याय व्यवस्था मे अनुचित नही माना गया. परंतु अंत:प्रजनन की रोक के लिए कुछ मार्ग निर्देशन भी किया गया है. वैदिक सभ्यता मे हर जन को उचित है के अपनी बुद्धि का विकास अवश्य करे. इसी लिए गायत्री मंत्र सब से अधिक महत्वपूर्ण माना और पाया जाता है. निष्कर्ष यह निकलता है कि सपिण्ड विवाह नही करना चाहिये. गोत्र या दूसरे प्रचलित नामों, उपाधियों को बिना विवेक के सपिण्ड निरोधक नही समझना चाहिये.

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

भाई बहन --व राखी --- डा श्याम गुप्त की कविता...


भाई बहन --व राखी ---     

भाई और बहन का प्यार कैसे भूल जाएँ ,
बहन ही तो भाई का प्रथम सखा होती है
भाई ही तो बहन का होता है प्रथम मित्र ,
बचपन की यादें कैसी मन को भिगोती हैं
बहना दिलाती याद,ममता की,माँ की छवि,                    
भाई में बहन छवि,पिता की संजोती है
बचपन महकता ही रहे सदा यूंही श्याम,
बहन को भाई उन्हें बहनें प्रिय होती हैं

भाई बहन का प्यार,दुनिया में बेमिसाल ,
यही प्यार बैरी को भी राखी भिजवाता है
दूर देश बसे हों, परदेश या विदेश में हों,
भाइयों को यही प्यार खींच खींच लाता है
एक एक धागे में बंधा असीम प्रेम बंधन,
राखी की त्यौहार 'रक्षाबंधन' बताता है
निश्छल अमिट बंधन,'श्याम धरा-चाँद जैसा,
चाँद इसीलिये, चन्दा मामा कहलाता है।।

रंग बिरंगी सजी राखियाँ कलाइयों पै ,
देख -देख भाई , हरषाते इठलाते हैं
बहन है जो लाती मिठाई भरी प्रेम रस,
एक दूसरे को बड़े प्रेम से खिलाते हैं
दूर देश बसे जिन्हें राखी मिली डाक से,
बहन की ही छवि देख देख मुस्काते हैं
अमित अटूट बंधन है ये प्रे रीति का,
सदा बना रहे 'श्याम' मन से मनाते हैं ||

सोमवार, 16 अगस्त 2010

डा श्याम गुप्त के पांच अगीत.....

      टोपी 
वे राष्ट्र गान गाकर
भीड़ को देश पर मर मिटने की,
कसम दिलाकर;
बैठ गए लक्सरी कार में जाकर ;
टोपी पकडाई पी ऐ को
अगले वर्ष के लिए -
रखे धुलाकर |

प्रश्न 
कितने शहीद ,
कब्र से उठकर पूछते हैं-
हम मरे किस देश के लिए ,
अल्लाह के, या-
ईश्वर के |

मेरा देश कहाँ 
यह अ जा का ,
यह अ ज जा का ,
यह अन्य पिछड़ों का ,
यह सवर्णों का ;
कहाँ है मेरा देश ?

बंधन 
वह बंधन में थी ,
संस्कृति संस्कार सुरुचि के
परिधान कन्धों पर धारकर  ;
अब वह मुक्त है ,
सहर्ष , कपडे उतारकर ||

  मस्त 
मस्त हैं सब -
अपने काम काज, या -
मनोरंजन में; और -
खड़े हैं हर मोड़ पर
दिशा हीन ||

सोमवार, 2 अगस्त 2010

डा श्याम गुप्त के त्रिपदा अगीत..

कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित--------
 त्रिपदा अगीत--१६-१६ मात्राओं के तीन पदों वाला अतुकान्त गीत है जो अगीत कविता का एक छंद है---


     १.
.अंधेरों की परवाह कोई,
  न करे, दीप जलाता जाए;
 राह भूले को जो दिखाए |
      २.
सिद्धि प्रसिद्धि सफलताएं हैं,
जीवन में लाती हैं खुशियाँ;
पर सच्चा सुख यही नहीं है|
      ३.
चमचों के मजे देख हमने ,
आस्था को किनारे रखदिया ;
दिया क्यों जलाएं हमीं भला|
     ४.
जग में खुशियाँ उनसे ही हैं,
हसीन चेहरे खिलते फूल;
हंसते रहते गुलशन गुलशन |
      ५.
मस्त हैं सब अपने ही घरों में ,
कौन गलियों की पुकार सुने;
दीप मंदिर में जले कैसे ?