कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | अब तक प्रेम काव्य ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया गया ..तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग).. वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....
खंड ग ..वियोग श्रृंगार -- में नौ ९ रचनाएँ हैं -जपागल मन, मेरा प्रेमी मन, कैसा लगता है, तनहा तनहा रात में, आई प्रेम बहार, छेड़ गया कोई, कौन, इन्द्रधनुष एवं बनी रहे ......प्रस्तुत है नवम व अंतिम गीत....बनी रहे ......
वह घनीभूत पीडा सी नित ,
है महक पुरानी यादों की,
बन कर इक बदली घनी रहे ||
स्वच्छंद गगन में मन मेरा,
बन कर पंछी उड़ना चाहे |
वह पीर, चांदनी का वितान,
बन, मन-अम्बर पर तनी रहे ||
जब बागों में बगरे वसंत,
तन मन चाहे सुरभित होना |
यादें बन कर मधुरिम पराग,
पीड़ा पुष्पित कर जाती हैं ||
स्वप्नों में तुम जब आते हो,
नैनों से नैन मिलाते हो |
उस प्यार भरे स्वप्निल पल में,
पलकों में ही मुस्काते हो ||
अब भी है तेरी आँखों में,
वह प्यार-पगी मीठी भाषा |
जिससे मिलती है जीवन को,
अपनेपन की नव परिभाषा ||
अब नहीं सुहाते वन-उपवन,
रोमांश-खुशी, उन्मुक्त गगन |
ये यादें मन की पूंजी हैं ,
चाहे बन पीड़ा घनी रहे ||
यह पीड़ा ही सुरभित होकर,
इस तन मन को महकाती है |
मीठी मीठी यह पीर सदा,
चाहूँ तन मन में बनी रहे ||
है महक पुरानी यादों की,
बनकर नित बदली घनी रहे |
यह घनीभूत पीड़ा सी नित,
इस मन-मंदिर में बनी रहे ||