कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार ----इस सुमनांजलि में आठ रचनाएँ ......देवानुराग....निर्गुण प्रतिमा.....पूजा....भजले राधेश्याम.....प्रभुरूप निहारूं ....सत्संगति ...मैं तेरे मंदिर का दीप....एवं गुरु-गोविन्द .....प्रस्तुत की जायेंगी । प्रस्तुत है तृतीय रचना .... पूजा ...
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार ----इस सुमनांजलि में आठ रचनाएँ ......देवानुराग....निर्गुण प्रतिमा.....पूजा....भजले राधेश्याम.....प्रभुरूप निहारूं ....सत्संगति ...मैं तेरे मंदिर का दीप....एवं गुरु-गोविन्द .....प्रस्तुत की जायेंगी । प्रस्तुत है तृतीय रचना .... पूजा ...
कभी नहीं जापाया हे प्रभु!
मंदिर में पूजा करने को ।
पापी हूँ मैं, मुझे नरक का,
भार सभी हे प्रभु! ढोने दो ।
नरक कहाँ है, स्वर्ग कहीं है?
नहीं समझ मैं अबतक पाया।
कर्मों का संसार यही है ,
अबतक यही समझ में आया।
मैंने कर्म किये जो अबतक,
किये समर्पण सब तुमको प्रभु ।
भले-बुरे कर्मों की भाषा,
अब तक नहीं समझ मैं पाया ।
मेरे शुभ कर्मों के फल का,
सुख सारे जग को मिल जाए ।
अशुभ अकर्म हुए जो मुझसे,
भार मुझे ही प्रभु ढोने दो ।
तेरी इच्छा का मंदिर है,
हे प्रभु! मेरे मन का सागर ।
अपने सहज-भक्ति से भर दो,
इस तन-मन की रीती गागर ।
मंदिर-मंदिर भक्ति हे प्रभो!
सारे जग की प्रीति बनेगी ।
प्रभु तुम्हारी भक्ति-रीति वह,
सबको एक समान मिलेगी ।
पापी मन है बड़ा स्वार्थी,
चाहे एकल प्रेम तुम्हारा ।
तुमको नहीं बांटना चाहे,
चाहे हो मंदिर ही प्यारा ।
तेरा सारा भक्ति रूप रस,
अपने अंतर में भरने को ।
मन में पूजा गया ही नहीं,
मंदिर में पूजा करने को ।।
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