saahityshyamसाहित्य श्याम

यह ब्लॉग खोजें

Powered By Blogger

शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

कृष्ण जन्म पर---डा shyam गुप्त

कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



बाजै रे पग घूंघर बाजै रे ।
ठुमुकि ठुमुकि पग नचहि कन्हैया, सब जग नाचै रे ।
जसुमति अंगना कान्हा नाचै, तोतरि बोलन गावै ।
तीन लोक में गूंजे यह धुनि, अनहद तान गुंजावै ।
कण कण सरसे, पत्ता पत्ता,  हर प्राणी हरषाये  |
कैसे न दौड़ी आयं गोपियाँ घुँघरू चित्त चुराए |
तारी  दै दै  लगीं नचावन, पायलिया छनकैं  |
ढफ ढफली खड़ताल, मधुर-स्वर,कर कंकण खनकें |
गोल बनाए गोपी नाचें,  बीच नचें नंदलाल  |
सुर दुर्लभ लीला आनंद मन, जसुमति होय निहाल |
कान्हा नाचे ठुम्मक ठुम्मक, तीनों लोक नचावै रे |
मन आनंद चित श्याम’, श्याम की लीला गावै रे ||


ब्रज की भूमि भई है निहाल |
सुर गन्धर्व अप्सरा गावें नाचें दे दे ताल |
जसुमति द्वारे बजे बधायो, ढफ ढफली खडताल |
पुरजन परिजन हर्ष मनावें जनम लियो नंदलाल |
आशिष देंय विष्णु शिव् ब्रह्मा, मुसुकावैं गोपाल |
बाजहिं ढोल मृदंग मंजीरा नाचहिं ब्रज के बाल |
गोप गोपिका करें आरती,  झूमि  बजावैं  थाल |
आनंद-कन्द प्रकट भये ब्रज में विरज भये ब्रज-ग्वाल |
सुर दुर्लभ छवि निरखे लखि-छकि श्याम’ हू भये निहाल ||

सखी री मोरे अंगना आयो श्याम |
पीताम्बर कटि मोर पखा सिर छवि सांवरी ललाम |
चंचल चपल नैन कजरारे कानन लटकन लोल |
हरित मुरलिया अधरन सौहै मधुरस घोले बोल |
ठुमुकि ठुमुकि पग नचै कन्हैया सुधि बुधि बैठी खोय |
लग्यो नचावन कर गहि मोहन मोहि लियो सखि मोय |
भरमाई सखि नैनन सैननि नटखट नन्द किशोर |
छींके  चढि दधि माखन लूट्यो मटुकी दीन्ही फोरि |
चेतति ही जब पकरन धाई भाज्यो नैन नचाय |
श्याम, श्याम लीला चित चितवत चित चकोर हरषाय ||

गुरुवार, 1 अगस्त 2019

सृष्टि के महासृजक’ कश्यप मुनि , कश्मीर व कश्मीरी ब्राहमण ---डा श्याम गुप्त

                                         कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

सृष्टि के महासृजक’ कश्यप मुनि , कश्मीर व कश्मीरी ब्राहमण ---
========================================
जब सृष्टि विकास की बात होती हैं तो अर्थ होता है कि जीव, जंतु या मानव की उत्पत्ति |ऋषि कश्यप एक ऐसे ऋषि थे जिन्होंने बहुत-सी स्त्रियों से विवाह करके पृथ्वी पर प्राणी-कुल का विस्तार किया था। आदिमकाल में जातियों की विविधता आज की अपेक्षा कई गुना अधिक थी।
\
प्रजापत्य कल्प में ब्रह्मा ने रुद्र रूप को ही स्वयंभु मनु और स्त्री रूप में शतरूपा को प्रकट किया। स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा के कुल पाँच सन्तानें थीं जिनमें से दो पुत्र प्रियव्रत एवं उत्तानपाद तथा तीन कन्याएँ आकूति, देवहूति और प्रसूति थे। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। रुचि के आकूति से एक पुत्र उत्प‍न्न हुआ जिसका नाम यज्ञ रखा गया। इनकी पत्नी का नाम दक्षिणा था। कपिल ऋषि देवहूति की संतान थे। हिंदू पुराणों अनुसार इन्हीं
*****तीन कन्याओं से संसार के मानवों में वृद्धि हुई।*****
\
दक्ष ने प्रसूति से 24 कन्याओं को जन्म दिया। इसके नाम श्रद्धा, लक्ष्मी, पुष्टि, धुति, तुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शान्ति, ऋद्धि, और कीर्ति हैं। तेरह का विवाह धर्म से किया और फिर भृगु से ख्याति का, शिव से सती का, मरीचि से सम्भूति का, अंगिरा से स्मृति का, पुलस्त्य से प्रीति का पुलह से क्षमा का, कृति से सन्नति का, अत्रि से अनसूया का, वशिष्ट से ऊर्जा का, वह्व से स्वाह का तथा पितरों से स्वधा का विवाह किया।
*****आगे आने वाली सृष्टि इन्हीं से विकसित हुई।******
\\
ऋषि कश्यप -- सृष्टि के महासृजक---
***********
ऋषि #कश्यप ब्रह्माजी के मानस-पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। इन्हें
#अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है जिनका नाम आज भी भारतीय संस्कारों के समय लिया जाता है । इनकी माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। सप्तर्षियों में एक महर्षि कश्यप सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी के आदेशानुसार सृष्टि सृजन हेतु अवतरित हुए।
-----ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति ने अपनी अन्य साठ कन्याओं में से== १७ कन्याओं का विवाह कश्यप के साथ=== कर दिया। इस प्रकार महर्षि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिनि आदि पत्नियां बनीं।
---- वैश्वानर की दो पुत्रियों ==पुलोमा और कालका के साथ भी कश्यप ने== विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जोकि कालान्तर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए।
----
१. महर्षि कश्यप ने अपनी पत्नी अदिति के गर्भ से बारह आदित्य पैदा किए, जिनमें सर्वव्यापक देवाधिदेव नारायण का #वामन अवतार भी शामिल था। श्री विष्णु पुराण के अनुसार ---
मन्वन्तरे∙त्र सम्प्राप्ते तथा वैवस्वतेद्विज। वामन: क’यपाद्विष्णुरदित्यां सम्बभुव ह।।
त्रिमि क्रमैरिमाँल्लोकान्जित्वा येन महात्मना।पुन्दराय त्रैलोक्यं दत्रं निहत्कण्ट
-----अर्थात्-वैवस्वत मन्वन्तर के प्राप्त होने पर भगवान् विष्णु कश्यप जी द्वारा अदिति के गर्भ से वामन रूप में प्रकट हुए। उन महात्मा वामन जी ने अपनी तीन डगों से सम्पूर्ण लोकों को जीतकर यह निष्कण्टक त्रिलोकी इन्द्र को दे दी थी।
-------बारह आदित्यों के रूप में महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लिया, जोकि इस प्रकार थे -विवस्वान् ( सूर्य ), अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरूण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)।
महर्षि कश्यप के पुत्र #विवस्वान् से #मनु वैवस्वत का जन्म हुआ| महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्नु, नाभाग, दिष्ट, करूष और पृषध्र नामक दस श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई।
२. महर्षि कश्यप ने दिति के गर्भ से परम् दुर्जय हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री पैदा की। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से ४९ अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जोकि मरूद्गण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र नि:संतान रहे। देवराज इन्द्र ने इन्हें अपने समान ही देवता बना लिया। जबकि हिरण्याकश्यप को चार पुत्रों अनुहल्लाद, हल्लाद, परम भक्त प्रहल्लाद, संहल्लाद आदि की प्राप्ति हुई।
३. पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरूण, अनुतापन, धुम्रकेतु, विरूपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि ६१ महान् पुत्र हुये।
४. रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए।
५.पत्नी अरिष्टा से गन्धर्व पैदा हुए।
६.सुरसा नामक रानी की कोख से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए।
७.इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी में उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ।
८.मुनि के गर्भ से अप्सराएं जन्मीं।
9.कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने साँप, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किए।
१०.ताम्रा ने बाज, गीद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया।
११.सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पति की।
१२.रानी सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया।
१३.तिमि ने जलचर जन्तुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया।
१४.विनता के गर्भ से गरूड़ (विष्णु का वाहन) और अरूण (सूर्य का सारथि) पैदा किए।
१५.कद्रू की कोख से अनेक नागों का जन्म हुआ।
१६.रानी पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ।
१७.यामिनी के गर्भ से शलभों (पतिंगों) का जन्म हुआ।
१८ व १९---पुलोमा और कालका से पौलोम और कालकेय नामक साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जोकि कालान्तर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए।
\
कश्यप को ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माना गया हैं। पुराणों अनुसार हम सभी उन्हीं की संतानें हैं। सुर-असुरों के मूल पुरुष ऋषि कश्यप का आश्रम #मेरू पर्वत के शिखर पर था जहाँ वे परब्रह्म परमात्मा के ध्यान में लीन रहते थे।
----मुनिराज कश्यप नीतिप्रिय थे और वे स्वयं भी धर्म-नीति के अनुसार चलते थे और दूसरों को भी इसी नीति का पालन करने का उपदेश देते थे। उन्होने अधर्म का पक्ष कभी नहीं लिया, चाहे इसमें उनके पुत्र ही क्यों न शामिल हों। वे राग-द्वेष रहित, परोपकारी, चरित्रवान और प्रजापालक थे। वे निर्भिक एवं निर्लोभी थे। कश्यप मुनि निरन्तर धर्मोपदेश करते थे, जिनके कारण उन्हें श्रेष्ठतम उपाधि हासिल हुई। समस्त देव, दानव एवं मानव उनकी आज्ञा का अक्षरश: पालन करते थे।
----- महर्षि कश्यप अपने श्रेष्ठ गुणों, प्रताप एवं तप के बल पर श्रेष्ठतम महानुभूतियों में गिने जाते थे। उन्होंने समाज को एक नई दिशा देने के लिए ‘#स्मृति-ग्रन्थ’ जैसे महान् ग्रन्थ की रचना की। इसके अलावा ‘#कश्यप-#संहिता’ की रचना करके तीनों लोकों में अमरता हासिल की।
\
कश्यप सागर व कश्मीर ----
****************
इतिहास के अनुसार ‘#कस्पियन #सागर’ एवं भारत के शीर्ष प्रदेश #कश्मीर का नामकरण भी महर्षि कश्यप जी के नाम पर ही हुआ। महर्षि कश्यप द्वारा संपूर्ण सृष्टि के सृजन में दिए गए महायोगदान की यशोगाथा वेदों, पुराणों, स्मृतियों, उपनिषदों एवं अन्य धार्मिक साहित्यों में उपलब्ध है, जिसके कारण उन्हें ‘==सृष्टि के महासृजक==’ उपाधि से विभूषित किया जाता है।
माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) और कश्मीर का प्राचीन नाम था। शोधकर्ताओं के अनुसार कैस्पियन सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप के कुल के लोगों का राज फैला हुआ था। समूचे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का ही शासन था। कश्यप ऋषि का इतिहास प्राचीन माना जाता है।
------ कैलाश पर्वत के आसपास भगवान ==शिव के गणों की सत्ता== थी। उक्त इलाके में ही=== दक्ष राजा=== का भी साम्राज्य भी था|
हिमालय से लगे लगभग सभी राज्य और देश प्राचीन भारत का हिस्सा रहे हैं जिसमें भारतीय राज्य कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल के अलावा नेपाल, तिब्बत और भूटान नाम के तीन देशों का भी पुराण और वेदों में स्पष्ट उल्लेख मिलता है। तिब्बत को वेद और पुराणों में त्रिविष्टप कहा गया है। वहीं पर किंपुरुष नामक देश के होने का भी उल्लेख मिलता है।
मत्स्य पुराण में अच्छोद सरोवर और अच्छोदा नदी का जिक्र मिलता है जो कि कश्मीर में स्थित है।
अच्छोदा नाम तेषां तु मानसी कन्यका नदी ॥ १४.२ ॥ .
अच्छोदं नाम च सरः पितृभिर्निर्मितं पुरा । .
अच्छोदा तु तपश्चक्रे दिव्यं वर्षसहस्रकम्॥ १४.३ ॥
\
कश्यप ऋषि ===कश्मीर के पहले राजा ===थे। कश्मीर को उन्होंने अपने सपनों का राज्य बनाया। उनकी एक पत्नी कद्रू के गर्भ से नागों की उत्पत्ति हुई जिनमें प्रमुख 8 नाग थे- अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। इन्हीं से नागवंश की स्थापना हुई। आज भी कश्मीर में इन नागों के नाम पर ही स्थानों के नाम हैं। कश्मीर का अनंतनाग नागवंशियों की राजधानी थी। .
काश्मीर भारत का सबसे प्राचीन और प्रथम राज्य है। मरीच पुत्र कश्यप के नाम से पूर्व मेँ कश्यपमेरु या कशेमर्र नाम था।
इससे भी पूर्व मत्स्य पुराण में कहा गया है- मरीचि के वंशज देवताओं के पितृगण जहां निवास करते हैं वे लोग सोमपथ के नाम से विख्यात हैं। यह पितृ अग्निष्वात्त नाम से ख्यात है। जिनके सौन्दर्य से आकर्षित होकर इन्हीँ पितरोँ की मानस कन्या अमावसु नामक पितर युवक के साथ रहना चाहती थी। जिस दिन अमावसु ने अच्छोदा को मना किया। तब से वह तिथि अमावस्या नाम से प्रसिद्ध हुई और अच्छोदा नदी रूप हो गई। अमावस्या तभी से पितरोँ की प्रिय तिथि है।
==
काश्मीर घाटी – सतीसर--- कश्मीरी ब्राहमण ---
====================
सतीसर से पूर्व--
*********
सुना जाता है कि यह एक घाटी थी जिसमें कुछ कबीले रहते थे जिनका मुखिया दया देव था जो वर्त्तमान अफ्रीकी कबीले से मिलते जुलते थे | वस्तुतः यह स्थान चरवाहे कबीलों का शीत ऋतु में एक प्रकार का अभयारण्य था जो उच्च पर्वतों से नीचे घाटी में उतर आते थे एवं ग्रीष्म में पुनः अपने प्रदेश में चले जाते थे | लगभग ३८९९ ईसा पूर्व नोआ की बाढ़ ( मनु का #महाजलप्लावन---मत्स्यावतार ) की घटना में बारामूला स्थान पर ऊपर पर्वत से गिरी हुई पहाडी ने रास्ता रोक दिया जिसमें समस्त कबीले आदि नष्ट होगये एवं यह घाटी सतीसर झील में परिवर्तित होगई | इसी स्थान को काट कर महर्षि कश्यप ने सतीसर झील के जल निकाल कर पुनः कश्मीर घाटी को बसाया |
\
वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग १० करोड़ वर्ष पूर्व कश्मीर घाटी टेथिस सागर ( दिति सागर ) का भाग थी तथा आज जो पहाड़ियां है वे सब सागर के अन्दर जलमग्न थीं |
जिसे सतीसर कहा गया | भयानक भूकंप आने पर बारामूला के समीप पर्वत दीवार में दरार आगई और सतीसर झील कश्मीर घाटी में बदल गयी
----- ऋग्वेदिक काल में १२७००—११५०० BCE में कश्मीर घाटी ग्लेशिअल झील थी ––निलमत पुराण के अनुसार --- -एक ऋग्वेदिक कबीला— पिशाच -कश्मीर में रहता था जो हरियूपिया के असुर राजा का साथी था |
----११५०० BCE—में संभर = शंबरासुर-----हरियूपिया, हरप्पा का असुर राजा कश्मीर पर राज्य करने लगा |---११३२५ BCE—इंद्र ने शंबर को मार कर उसका राज्य छीन लिया |
वैदिक काल में कुरु-पांचाल राज्य पीर पंजाल पहाड़ियों तक जम्मू कश्मीर तक था|
जम्मू क्षेत्र में पुरु वंश का राजा मद्र-- मद्र राज्य वंश सिन्धु - सतलुज के मध्य राज्य करता था | मद्र की राजधानी सियालकोट एवं शाल्व की राजधानी शाकल थी |
\
इस प्रकार काश्मीर क्षेत्र को को 'सती 'या 'सतीसर' कहते थे। यहां सरोवर में सती भगवती नाव में विहार करती थीं अर्थात शिव का क्षेत्र था जहां वे बहुत काल तक निवास करते रहे | तदुपरांत जलोद्भव नामक राक्षस इस झील में रहने लगा| वह स्थानीय लोगों पर अत्याचार करता था एवं ब्रहमा द्वारा दिए गए वरदान के अनुसार वह जब तक जल के अन्दर रहेगा कोई उसे नहीं मार सकता था |
------पार्वती ने कश्यप मुनि से कश्मीर आकर पांचाल गिरी क्षेत्र को शुद्ध करने को कहा |-----कश्यप अपने पुत्र नील नाग  वीरनाग ) के साथ शिव के साथ देने अनंतनाग क्षेत्र में आये और पिशाचों को हरा कर भगा दिया| वे पांचाल गिरि ( पीर पंजाल ) में बस गए. अतः उस स्थान का नाम कश्यप मेरु - कश्मीर कहा गया |
--------उस समय जलोद्भव राक्षस कश्मीर घाटी में उत्पात मचाये हुए था | ११२०० BCE के लगभग घाटी में भूकंप आया और बारामूला के समीप चट्टानें हट जाने से सतीसर झील काजल बहा गया जिससे मद्र ,शाल्व, सिन्धु व गुजरात में भीषण जल प्रलय हुई | कश्मीर घाटी में हरीपर्वत का उद्भव हुआ और जलोद्भव मारा गया | ११२०० BCE में कश्मीर घाटी रहने लायक हुई |
नील नाग कश्मीर का सर्वप्रथम शासक हुआ| और कश्यप-कद्रू के नाग पुत्रों ने लम्बे समय लगभग ५०० BCE तक कश्मीर पर राज्य किया |
\
सतीसर
*****************
नीलामत पुराण के अनुसार जब ब्रहमा के पौत्र कश्यप मुनि भारत के इस भाग की यात्रा पर आये तो उनके तेज, तप व अध्यात्मिक शक्ति बल को देखकर स्थानीय लोगों ने अपनी व्यथा सुनाई | कश्यप मुनि ने राक्षस को मारने का निश्चय किया | उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की तब शिव ने प्रसन्न होकर विष्णु व ब्रह्मा को जलोद्भव को दंड देने को कहा परन्तु यह एक कठिन काम था क्योंकि वह जल के अन्दर छुप जाता था |
------अंतत ब्रह्मा व विष्णु ने सतीसर को सुखाने का विचार किया | विष्णु ने बारामूला (बराह मूल ) के निकट पर्वत को काट दिया जिससे झील का जल बह गया | परन्तु फिर भी कुछ गड्ढे बचे थे जिसमें राक्षस छुप जाता था | तब विष्णु ने समीर पर्वत के एक टुकडे को काट कर उस गड्ढे में भर दिया और राक्षस उसमें दब कर मर गया, उस स्थान को कोही-मारन कहा गया और वह पत्थर हरी पर्वत हो गया। | यह भी कहा जाता है कि देवताओँ के आग्रह पर पक्षी सारिका रूप मेँ भगवती ने चोंच में पत्थर रखकर राक्षस के ऊपर फैंक कर राक्षस को मारा था।
-------ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में शोपियां के नज़दीक नोबुग्नई स्थान पर में नावें बांधने के बड़े बड़े छिद्र युत बड़ी बडी पर्वत शिलायें मिलती हैं जो हिन्दुओं के लिए पवित्र स्थान है | यह सिद्ध करते हैं कि कभी यह क्षेत्र जल के अन्दर रहा होगा |
प्रकारान्तर से सतीसर में बनी इस दरार से पूरा पानी निकल गया और भूमि ऊपर आ गयी। ऋषियोँ, मरीचि पितरः तथा कश्यप की इस वास्तविक स्वर्ग भूमि #अमरनाथ, बूढा़ अमरनाथ #ज्वालादेवी पठानकोट #वैष्णोदेवी, छीरभवानी और अति प्राचीन मार्तण्डमंदिर भी था। मार्तण्ड मंदिर क्षेत्र को अब 'मटन' गांव कहा जाता है। इस प्रकार यह स्थान सूखी हुई जमीन काश्मीर घाटी हुई | नीलमत पुराण के अनुसार --संस्कृत का = जल व शिमीरा = जल से सूखी हुई जमीन = काश्मीर--पृथ्वी का स्वर्ग | घाटी से प्रवाहित जल से वितस्ता ( व्यास ) व झेलम नदियाँ प्रवाहित हुईं |
कश्यप ऋषि ने इस सुन्दर स्थान को बसाने के लिए स्वयं जैसे विज्ञजनों ब्राहमणों को यहाँ बसने हेतु आवाहन किया एवं दूर दूर से विज्ञजनों को वहां लाकर बसाया गया|
७.
इतिहासकारों के अनुसार -#कात्याचार्य#माम्ताचार्य व #अत्वाचार्य तीन #ब्राह्मण भाई थे जिन्होंने इस सुन्दर स्थान को फलने फूलने में योगदान दिया| ====इन सभी के वंशज आज के कश्मीरी ब्राह्मण हैं| जो वहां के मूल निवासी हैं | ====अतः यह स्थान कश्यपपुर या कश्मीर कहलाया | मीर =घर = कश्यप का घर | यह भी कहा जाता है कि कश्यप मुनि की पत्नी का नाम मीर था अतः नाम कश्यपमीर = कश्मीर हुआ |
\
मुस्लिम कथा---के अनुसार सुलेमान के समय कश्मीर में एक देव( विशालकाय राक्षस ) कशाप रहता था जो मीर नाम की स्त्री पर रीझा हुआ था परन्तु उसे रिझाने में असफल था| जब सुलेमान ने सतीसर झील के लजाल को निकालन का फैसला किया तो उसने कशाप देव को वचन दिया कि यदि वह इस कार्य को कर देता है तो उसे मीर प्रदान कर दी जायगी | इस प्रकार कशाप देव ने बारामूला पर स्थान कट कर झील को बहा दिया जो वितस्ता नदी बनी |
-------परन्तु यह असत्य कथा है इस स्थान पर बस्ती ५०० वर्ष ईसा पूर्व द्वापर युग मे बसाई गयी है जबकि सुलेमान कलियुग के १८०० वर्ष बाद कश्मीर पहुंचा था|
\
श्रीनगर जिसका पुराना नाम प्रवरपुर है, महाराजा प्रवरसिंह इस क्षेत्र के प्रथम शासक थे | इसी शहर की दोनों ओर हरीपर्वत और शंकराचार्य पर्वत हैं आदि शंकराचार्य ने इसी पहाड़ी पर भव्य शिवलिंग, मंदिर और नीचे मठ बनाया। शंकराचार्य पर्वत के समीप अति प्राचीन दुर्गानाथ मंदिर के विध्वंस के मलबे से ही 'हमदन मस्जिद भी बनाई गई है जो लकडी़ की है। वहां एक बहते जलस्रोत में आज भी हिन्दू काली की पूजा करते हैं।
------ प्राचीन कश्मीर के लोग बूढ़े अमरनाथ क्षेत्र में महर्षि #पुलस्त्य के भव्य आश्रम में वेद पढ़ते थे। उनके नाम की वाली पुलस्ता नदी आज भी है। जम्मू पठान कोट मार्ग पर पुरमंडल नामक गौरवशाली गयाजी जैसा पवित्र और मान्य श्राद्धक्षेत्र भी है। .
भारतीय ग्रंथों के अनुसार जम्मू को डुग्गर प्रदेश कहा जाता है। जम्मू संभाग का क्षे‍त्रफल पीर पंजाल ( कुरु-पंचाल ) की पहाड़ी रेंज में खत्म हो जाता है। इस पहाड़ी के दूसरी ओर कश्मीर है।
पुरा कथा के अनुसार जम्मू हिन्दू राजा जम्बुलोचन ईसा से १४०० वर्ष पूर्व बसाया था | शिकार करते हुए राजा तवी नदी के इस क्षेत्र में पहुंचा तो नदी की धार में शेर व बकरी को एक ही स्थान पर जल पीते हुए देखकर अत्यंत प्रभावित हुआ और स्थान का नाम अपने नाम पर जम्बू रख दिया जो कालांतर में जम्मू हुआ |
जम्मू का उल्‍लेख महाभारत में भी मिलता है। हाल में अखनूर से प्राप्‍त हड़प्‍पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्‍त काल की कलाकृतियों से जम्मू के प्राचीन इतिहास का पता चलता है। लद्दाख एक ऊंचा पठार है जिसका अधिकतर हिस्सा 3,500 मीटर (9,800 फीट) से ऊंचा है। यह हिमालय और काराकोरम पर्वत श्रृंखला और सिन्धु नदी की ऊपरी घाटी में फैला है।
चित्र १- सतीसर
चित्र२---सतीसर के सूखने के उपरांत कश्मीर घाटी…

Image may contain: one or more people and outdoorकश्यप मुनि 
चित्र १- सतीसर
चित्र२---सतीसर के सूखने के उपरांत कश्मीर घाटी…

गुरुवार, 18 जुलाई 2019

किस्से राज-दरबार के --- किस्सा एक--- महिला चिकित्सकों की ड्यूटी -- डा श्याम गुप्त

                                 कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


किस्से राज-दरबार के ---
************************************************
राजा का दरवारी या सरकारी अधिकारी का कार्य काँटों की बगिया में चलना होता है | उस पर पंचमुखी दबाव होते हैं -ऊपर के –अधिकारियों व शासन के ,उपभोक्ता या कर्मचारियों की अपेक्षाओं के, कर्मचारी यूनियनों के, सहयोगियों की चालों के एवं स्थानीय अराजक तत्वों के |
--------इसमें यदि पारदर्शिता, स्पष्ट-दृष्टि, ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर, लाभ-हानि की सोच व कुछ प्राप्ति की आशा के बिना कार्य, नियमों व अपने विषय का स्पष्ट ज्ञान, संभाषण-योग्यता, न कहने की कला एवं कागज़ कार्य, लिखा-पढी में कहीं भी न फंसने की योग्यता है तो आप ‘परम स्वतंत्र न सिर पर कोऊ ‘..की भांति कार्य सम्पादन कर सकते है |
----------------------
१. किस्सा एक---
---------------------
महिला चिकित्सकों की ड्यूटी --
======================
बात उस समय की है जब मैं प्रशासनिक सेकण्ड इन कमांड था | मुझे ही चिकित्सकों की इमरजेंसी व अन्य ड्यूटियां लगानी होती थीं | होस्पीटल की चीफ एक महिला चिकित्सक थीं जो स्वयं स्त्री चिकित्सा विशेषज्ञ थीं |
\
मैं सदैव ही नारी स्वातन्त्र्य का पक्षधर हूँ | मेरे उपन्यास, कथाएं, व काव्य-रचनाएँ आदि भी इस विषय पर हैं,
-------परन्तु ‘अति सर्वत्र वर्ज्ययेत’ का पक्षधर मैं महिलाओं के अति-सुरक्षा भाव एवं महिला होने का लाभ उठाने के भाव को उनके वास्तविक उत्थान व प्रगति की राह में रोड़ा समझता हूँ |
-------यदि महिलायें वेतन व अधिकारों में समानता चाहती हैं तो कार्यों में छूट क्यों चाहती हैं, विशिष्ट तथ्यों व स्थितियों को छोड़कर |
------अतः मैं महिला चिकित्सकों की भी इमरजेंसी ड्यूटी, नाईट ड्यूटी व बाहर काल ड्यूटी आदि लगाने के पक्ष में था |
\
प्रायः महिला चिकित्सक इस प्रकार की ड्यूटियाँ करने में परहेज़ करती थीं, विशेषकर रात्रि ड्यूटी | मुझसे पहले उन्हें इस बात का लाभ दिया जाता रहा था |
------पुरुष चिकित्सक प्रायः इस पर एतराज़ भी किया करते थे | क्योंकि चीफ एक महिला थीं, सभी महिला चिकित्सकों ने प्रतिवेदन किया कि हमें इन ड्यूटियों से मुक्त रखा जाय और उन्होंने सहज भाव से स्वीकार भी कर लिया |
\
दूसरे दिन मैंने चीफ को एक पत्र लिखा
---- यदि हमारी महिला-चिकित्सक इस प्रकार की ड्यूटियों एवं अन्य सामान्य प्रशासनिक कार्यों से बचती रहेंगीं तो उन्हें विभिन्न अनुभव कैसे प्राप्त होंगे,
-----वे कार्य-स्थितियां व विशिष्ट परिस्थियों से सामना करने लायक अनुभव कैसे प्राप्त करेंगीं एवं भविष्य की इन्दिरा गांधी व अन्य महान महिलाओं के समान प्रत्येक परिस्थिति से जूझने के योग्य कैसे बनेंगीं |
-------कल उन्हें भी उच्च-प्रशासनिक अधिकारी बनना है | वे स्वयं आपके जैसी कुशल व योग्य, स्वतंत्र, स्पष्ट व उचित सटीक निर्णय लेने वाली अफसर, अस्पताल प्रमुख व प्रशासनिक अधिकारी कैसे बनेंगीं |
\
अगले दिन ही चीफ ने सबके सम्मुख मुझे बधाई देते हुए कहा, आपका पत्र मुझे अत्यंत ही अच्छा लगा, सुन्दर, सटीक, उचित तर्क व तथ्यपूर्ण | मैंने उसे अपने व्यक्तिगत रिकार्ड में रख लिया है | आप सभी की ड्यूटी समान रूप से लगायें |

गुरुवार, 30 मई 2019

कांग्रेस की गलती---- या आत्मघात ---डा श्याम गुप्त

                                  कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



कांग्रेस की गलती---- या आत्मघात --
=========================
एक तप: पूत , प्रत्येक प्रकार के तकनीकी, व मेनेजमेंट ज्ञान, एवं जमीनी अनुभव से संपन्न ....१५ वर्ष सफल मुख्यमंत्री एवं ५ वर्ष सफल प्रधान मंत्री रहे हुए व्यक्ति के मुकाबले में -----
-------दो अनुभव हीन व किसी भी विशिष्ट ज्ञान व शिक्षा के बिना दो बच्चों को खडा करना गलती नहीं अपितु आत्मघात ही है -----
\
-----वास्तव में तो सम्पूर्ण कांग्रेस पार्टी में एक भी ऐसा व्यक्ति या नेता नहीं है जो राजनीति में प्रथम स्तर का हो -----
---जो हुआ वह तो होना ही था ---

बुधवार, 13 मार्च 2019

राष्ट्र की सोचें --- वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः---डा श्याम गुप्त

                                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

राष्ट्र की सोचें --- वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः---
==================================
-
-- भोजन -, सोना, मैथुन ..स्व-रक्षा -तो पशु भी कर लेते हैं , केवल इसी में रत रहना पशु वृत्ति है ----
-------मानव हैं, जागृत...विज्ञजन हैं ----तो देश -राष्ट्र , समाज-संस्कृति की बात सोचें -

शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

“धनि कश्यप जस धुजा, --डा श्याम गुप्त

                                           कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


“धनि कश्यप जस धुजा,
============================
सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी असफाक उल्लाह ने कहा था----मेरा हिंदूकुश हुआ हिन्दू कुश ( हिन्दुओं की ह्त्या करने वाला )…|
\
क्या होगया है दुनिया के स्वर्ग को | आज जो कश्मीर को अपना बता रहे हैं वह महर्षि कश्यप की भूमि है | हिंदूकुश पर्वत श्रृंखला से कश्मीर की पर्वत श्रृंखलाएं प्रारम्भ होती हैं | हिंदूकुश नाम से ही धरोहर का ज्ञान होजाता है, पर्वत, झीलों स्थानों के विभिन्न नाम भी संस्कृत के ही हैं |
\
पहले यह क्षेत्र भगवान् शिव व सती का क्रीड़ाक्षेत्र था इसे 'सतीसर' कहते थे। महामाया, आदिशक्ति का क्षेत्र | यहां सरोवर में सती भगवती नाव में विहार करती थीं। 
----------इसी बीच सर में स्थित जलोद्भव नामक राक्षस ने ब्रह्मा के वरदान से आतंक फैला रखा था जिसे कश्यप ऋषि मारना चाहते थे। वे तपस्या करने लगे। देवताओँ के आग्रह पर पक्षी रूप मेँ भगवती ने (सारिका पक्षी) चोंच में पत्थर रखकर राक्षस को मारा था। राक्षस मर गया। वह पत्थर हरी पर्वत हो गया। 
-------- महर्षि कश्यप ने सर का जल निकालकर इस स्थान को बसाया अतः यह कश्मीर कहलाया | कश्यप पुत्र नीलनाग ने कश्मीर को बसाया | कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) और कश्मीर का प्राचीन नाम हुआ। कैस्पियन सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप के कुल के लोगों का राज फैला हुआ था।
\
कश्मीर के राजा अपने नाम के आगे आदित्य लगाते थे, वे सूर्यवंशी थे | ललितादित्य इस क्षेत्र के सुप्रसिद्ध शासक थे | महाराज ललितादित्य एवं कश्मीर के वैभव का वर्णन कल्हण के प्रसिद्ध ग्रन्थ राजतरंगिणी में है | मैथिलीशरण गुप्त जी ने भी कश्मीर के लिए लिखा है ---
“धनि कश्यप जस धुजा,
विश्वमोहिनि मन भावन” |
\
लगता है जलोद्भव दैत्य का पुनः उद्भव होगया है और उच्छेद हेतु आदिशक्ति की कृपा से किसी कश्यप मुनि की आवश्यकता है |

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

श्याम स्मृति------१९९ से २०३ तक----डा श्याम गुप्त

                                      कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

श्याम स्मृति------१९९ से २०३ तक----


श्याम स्मृति- १९९. आयु होने पर धर्म-कर्म व अध्यात्म.....
        क्या केवल अधिक आयु होजाने पर ही वानप्रस्थ अवस्था में, सेवानिवृत्त होने के पश्चात ही धर्म, कर्म व अध्यात्म, दर्शन का ज्ञान प्राप्त करना या उनकी ओर मुख मोड़ना चाहिए, उनकी बातें, चर्चा आदि करना चाहिए | जैसा कि प्रायः ऐसा कहा-सुना व किया जाता है |
       वास्तव में सर्वश्रेष्ठ वस्तुस्थिति तो यह है कि सभी को बाल्यावस्था से ही प्रत्येक स्तर पर धर्म, अध्यात्म, दर्शन, संस्कृति आदि का अवस्था के अनुसार यथास्थित, यथायोग्य, समुचित ज्ञान कराया जाना चाहिए| तभी तो व्यक्ति प्रत्येक अवस्था, स्थिति व जीवन भर के व्यवहार एवं विभिन्न कर्मों व कृतित्वों में मानवीय गुणों के ज्ञान का समावेश कर पायेगा| यदि जीवन के प्रत्येक कृतित्व में इस ज्ञान में अन्तर्निहित सदाचरण का पालन किया जायगा तो विश्व में द्वेष द्वंद्व स्वतः ही कम होंगे | यदि सारे जीवन व्यक्ति अज्ञानता के कारण विभिन्न कदाचरण में लिप्त रहे तो आख़िरी समय पर धर्म, दर्शन, अध्यात्म आदि जानने का क्या लाभ ?
      तो क्या, वानप्रस्थ अवस्था में धर्म-कर्म, अध्यात्म, दर्शन आदि जानने का कोइ लाभ नहीं है? अवश्य है, जब जागें तभी सवेरा | जो जीवन के प्रारम्भ व मध्य में ये ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते, वे अज्ञानवश चाहे जैसे रहे हों परन्तु सांसारिक कृतित्वों व दायित्वों से निवृत्त होने पर कर्मों से समय मिलने पर अवश्य ही इस ज्ञान को प्राप्त करें व लाभ उठायें | सेवानिवृत्ति के बाद पुनः सेवायोजन, अर्थ हेतु काम-धंधे में संलग्न होजाना सामाजिक विद्रूपता है, विकृति है, इससे बचना चाहिए |
     मानव की जीवन-यात्रा व पुनर्जन्म आदि आध्यात्मिक, मानसिक उन्नति के क्रमिक सोपान हैं | आत्मा की मोक्ष तक ऊपर उठने का लक्ष्य है | अतः अंत समय में भी इस ज्ञान की प्राप्ति से आप अपनी वर्त्तमान संतति –पुत्र, नाती-पोतों को कुछ तो प्रेरणा, उदाहरण व सीख प्रदान करने में सक्षम होंगे| यह ज्ञान अंत समय में व्यक्ति के आत्मारूपी सूक्ष्म-जीव के साथ (जेनेटिक कोड में स्थापित होकर) अगले जन्म तक जायेंगे और अगली पीढी में स्थानातरण होकर स्थापित होंगे |
श्याम स्मृति- २००. भारतीय सनातन धर्म, आर्य एवं मनु स्मृति का प्रणयन ....
          लोग भूल जाते हैं कि भारतीय धर्म व दर्शन विविध स्वर,लय व तालों में निवद्ध राग है, भारत भिन्न भिन्न प्रकार के विचारों, दर्शनों, आचार व्यवहारों के समन्वय की ताल-तरंगों का देश है न कि एक ही स्वर में निवद्ध राग पर रचा जाने वाला कोई गीत| अतः सभी दर्शन-आस्तिक व नास्तिक, वैदिक दर्शन के ही मूल स्वर से उद्भूत हैं | वे कुछ समय तक अपनी तरंग-ताल स्वरित करके विलुप्त होजाते हैं|  अंततः जीवित रहता है वही सनातन वैदिक भारतीय धर्म-दर्शन, जिसमें वैवस्वत मनु ने मानव इतिहास में सर्वप्रथम नैतिकता को परिभाषित किया था तथा सामाजिकता, मानव आचरण एवं नैतिकता हेतु नीति-नियम बनाए और उन पर चलने वाली उनकी प्रजा व संतानें श्रेष्ठ अर्थात आर्य कहलाईं |
         जलप्रलय में देव-मानव सभ्यता के विनाश उपरान्त बचे हुए वैवस्वत मनु ने अपनी स्मृति में शेष, अति उन्नत देव-सभ्यता के विनाश के कारणों को स्मरित करते हुए विचार किया कि अति-भौतिकता, अनाचार, अनिर्बंध-अनियमित स्वच्छंद जीवन एवं स्वच्छंद स्त्री-पुरुष यौन सम्बन्ध किसी सभ्यता के विनाश का मूल कारण होते हैं, वही कारण इस देव-मानव सभ्यता के विनाश के भी थे | इस प्रकार सामाजिकता, मानव आचरण एवं नैतिकता हेतु नीति-नियम वर्णन हेतु मनु-स्मृति का प्रणयन हुआ |
श्याम स्मृति- २०१. चैन की वंशी बजाता भ्रष्टाचार ....
      भ्रष्टाचार ऊपर से आता है, अफ़सर भ्रष्ट हैं”-- सब चोर हैं’-- 'व्यवस्था सडगल गयी है, आदमी कैसे जिये?' सारा तन्त्र ही भ्रष्टाचारी है, आदमी क्या करे' —'शासन भ्रष्ट हैनेता भ्रष्ट हैं'—'राजनीति पतित होगयी है', 'सब वोट बैंक की खातिर'—सभी भ्रष्ट हैं तो हम क्या करें’--’बडा भ्रष्टाचार है साहब’ —’विना रिश्वत के कोई काम ही नहीं हो्ता---------।
         ये वाक्य, जुमले आजकल खूब कहे, सुने, लिखे, पढे जा रहे हैं। प्रत्येक स्तर पर। गरीब से गरीब, अमीर से अमीर, अनपढ से विज्ञ तक, ऊपर से नीचे तक जन जन में, सभी की वाणी में, अन्तस में समाये हुए हैं । तो आखिर भ्रष्ट है कौन ? कहां छुपा है भ्रष्टाचार ? कहां व कैसे उसे ढूंढा जाय ?
        मुझे लगता है कि भ्रष्टाचार हमारे, आपके प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर रचा-बसा है, और हम सब अपने अन्तर में न देखकर उसे दूसरों में, सामने वाले मे, समाज, व्यबस्था आदि में ढूंढते फ़िर रहे हैं; और भ्रष्टाचार हमारे मन-मंदिर में लेटा चैन की वंशी वजा रहा है |
       अर्थातभ्रष्टाचार का वास्तविक दोषी कौन ? समाज, सरकार, शासन, सन्स्थायें, राजनीति, धर्म ?...नहीं अपितु स्वयं आप-हम, जन-जन है, स्वयं मनुष्य है, उसकी आचरण विहीनता, अमर्यादित कर्म है । ये सारे संस्थान तो जड-वस्तु हैं वे स्वयं को नहीं चलाते, वे गुणहीन होते हैं। उनका संचालक, कर्ता-धर्ता मनुष्य ही गुण-युक्त जीव है, प्राणी है और उसी के
अनाचरण या सदाचरण का सन्स्थानों पर, पुनः समाज पर और फ़िर चक्रीय-व्यवस्था द्वारा पुनः मानव व अगली पीढी पर पढता है और भ्रष्ट-आचरण व भ्रष्टाचार का दुष्चक्र चलने लगता है|
      भ्रष्ट जो देखन में चला भ्रष्ट न मिलिया कोय |
      जो दिल खोजा आपना, मुझसा भ्रष्ट न होय|   .....और---
      मोकूं कहां ढूंढे रे बन्दे! मैं  तो तेरे  पास में.
      ना मंदिर में, ना मस्ज़िद में, ना शासन-सरकार में।
       अपने दिल में झांकले बन्दे, ना कुर्सी-इज़लास में,
       ढूंढ तो मुझको अतिसुख-रूपी, अपनी अनबुझ प्यास में॥

श्याम स्मृति- २०२. हरि अनंत हरि कथा अनंता .....
       हरि अनंत हैं और सृष्टि अनंत हैं | इस अनंतता के वर्णन में कोई भी सक्षम नहीं है| परन्तु मन-मानस में मनन / अनुभूति रूपी जो अनंत प्रवाह उद्भूत होते रहते हैं वे विचार रूपी अनंत ब्रहम का सृजन करते हैं| जब एक अनंत स्वयं अनंत के बारे में अनंत समय तक अनंत प्रकार से मनन करता है तो स्मृतियों की संरचना होती है और सृष्टि की संरचना होने लगती है | इस अनंत सृष्टि के वर्णन का प्रत्येक मन अपनी अपनी भाँति से प्रयत्न करता है तो अनंत स्मृतियों की सृष्टि होती है | दर्शन, धर्म, मनोविज्ञान, विज्ञान इन्हीं मनन-चिंतन आदि के प्रतिफल हैं| सब कुछ उसी अनंत से उद्भूत है और उसी में समाहित होजाता है |
      इस प्रक्रिया के मध्य विचार, ज्ञान व कर्म का जो चक्र है वह सृष्टि है संसार है, जीवन है|
श्याम स्मृति- २०३. गरीबों को खाना, कपड़ा व कम्बल बांटना ---       
     तमाम लोगों व संस्थाओं को गरीबों को खाना, कपड़ा व कम्बल बांटते देखकर मेरे मन में एक विपरीत दिशादर्शक नवीन विचार उत्पन्न हुआ| क्या कम्बल व खाना बांटकर हम इन गरीबों को और मानसिक गरीब नहीं बना रहे, कामचोर, अकर्मण्य नहीं बना रहे | हम इस परोपकार से अपना परलोक सुधारने, समाज सेवा का सुख अनुभूत करने, आत्मसंतोष हेतु कि हमने कुछ भलाई का कार्य किया, अन्य को साधन तो नहीं बना रहे, बन्दूक रखने का कंधा| प्रायः अधिकाँश व्यक्ति या संस्थाएं केवल अपने स्वयं के धन प्रयोग की अपेक्षा चन्दा,  दान आदि से एकत्र धन का वितरण करते हैं |
        हम कह सकते हैं कि भलाई का काम है, परन्तु लगभग ७० वर्ष से तो मैं देख रहा हूँ, हज़ारों वर्ष की कथाएं पढ़ रहे हैं, परन्तु न भारत की गरीबी दूर हुई न गरीब | मुझे बचपन में सुनी शिव-पार्वती के कथा भी याद आती है कि शिव द्वारा दी गयीं स्वर्ण-मुद्राएँ उस गरीब को नहीं मिलीं जिसे पार्वती जी देना चाहतीं थीं, उसने अपनी अकर्मण्यता के कारण स्वर्ण-मुद्रायें खो दीं |
        क्या हम पुनः विचार करें ?