मेरे गीतों में आकर के तुम क्या बसे ,
गीत का स्वर मधुर माधुरी हो गया ।
अक्षर-अक्षर सरस आम्र-मन्जरि हुआ,
शब्द मधु की भरी गागरी होगया।
तुम जो ख्यालों में आकर समाने लगे,
गीत मेरे कमल दल से खिलने लगे ।
मन के भावों में तुमने जो नर्तन किया,
गीत बृज की भगति बाबरी होगया ।
प्रेम की भक्ति-सरिता में होके मगन,
मेरे मन की गली तुम समाने लगे ।
पन्ना-पन्ना सजा प्रेम रसधार में,
गीत पावन हो मीरा का पद होगया।
भाव चितवन के मन की पहेली बने,
गीत कबिरा का निर्गुण सबद होगया।
तुमने छंदों में सज के सराहा इन्हें,
मधुपुरी की चतुर नागरी होगया ।
मस्त मैं तो यूहीं गुनुगुनाता रहा ,
तुम सजाती रहीं,मुस्कुरातीं रहीं ।
भाव भंवरा बने गुनगुनाने लगे ,
गीत का स्वर नवल पांखुरी होगया।
तुम जो हंस-हंस के मुझको बुलाती रहीं,
दूर से छलना बन के लुभाती रहीं।
गीत इठलाके हमको बुलाने लगे,
मन लजीली कुसुम वल्लरी होगया।
तुमने कलियों से जब लीं चुरा शोखियाँ,
बन के गज़रा कली मुस्कुराती रही |
पुष्प चुनकर जो आँचल में भरने चलीं,
गीत पल्लव-सुमन आंजुरी होगया ।
तेरे स्वर की मधुर माधुरी मिलगई,
गीत राधा की प्रिय बांसुरी होगया ।
भक्ति के भाव तुमने जो अर्चन किया,
गीत कान्हा की प्रिय सांवरी होगया॥
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
बुधवार, 2 सितंबर 2009
मेरे गीत सुरीले क्यों हैं-----
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2 टिप्पणियां:
वाह...वाह..।
गीत मे ध्वन्यात्मकता भी है और सरसता भी।
बधाई!
बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये ख़ूबसूरत रचना काबिले तारीफ है!
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