चला जारहा कौन
कमर झुकाए लाठी टेके ,
तन पर धोती एक लपेटे |
नंगे पैरों कठिन मार्ग पर,
चला जारहा कौन ?----चला जारहा मौन|
रघुपति राघव राजा राम ,
पतित -पावन सीता राम |
मधुरिम स्वर लहरी में गाता,
चला जारहा कौन ?-----चला जारहा मौन|
ईश्वर अल्लाह तेरे नाम,
सबको सन्मति दे भगवान |
हम सबको है 'एक्य' बताता,
चला जारहा कौन ?------चला जारहा मौन |
ये तो अपने राष्ट्र -पिता हैं ,
ये तो अरे महात्मा गांधी !
ये तो विश्व वन्द्य 'बापू ' हैं,
ये तो रे इस युग की आंधी |
ये तो कलियुग के मोहन हैं ,
ये बच्चों के गांधी बाबा |
ये भारत के लौह - पुरूष हैं,
ये भारत के भाग्य विधाता|
पत्थर पर पद-चिन्ह बनाता,
आज़ादी की राह दिखाता |
सारा जग है जिसके पीछे,
चला जारहा मौन |--------चला जारहा कौन?
- ----------------------चला जारहा मौन?
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
vबापू के जन्म दिन पर दी गई श्रधान्जली अच्छी लगी
aapki tippani ke liye aabhar vyakt karti hoon;main aalochnaaon ko enjoy karti hoon.
anyway gandhi ji ki rachana acchi lagi.
एक टिप्पणी भेजें