राधाष्टमी पर विशेष ---डा श्याम गुप्त के पद.......
१-
जनम लियो वृषभानु लली ।
आदि -शक्ति प्रकटी बरसाने, सुरभित सुरभि चली।
जलज-चक्र,रवि तनया विलसति,सुलसति लसति भली ।
पंकज दल सम खिलि-खिलि सोहै, कुसुमित कुञ्ज लली।
पलकन पुट-पट मुंदे 'श्याम' लखि मैया नेह छली ।
विहंसनि लागि गोद कीरति दा, दमकति कुंद कली ।
नित-नित चन्द्रकला सम बाढ़े, कोमल अंग ढली ।
बरसाने की लाड़-लडैती, लाडन -लाड़ पली ।।
-२-
कन्हैया उझकि-उझकि निरखै ।
स्वर्ण खचित पलना,चित चितवत,केहि विधि प्रिय दरसै ।
जंह पौढ़ी वृषभानु लली , प्रभु दरसन कौं तरसै ।
पलक -पाँवरे मुंदे सखी के , नैन -कमल थरकैं ।
कलिका सम्पुट बंध्यो भ्रमर ज्यों ,फर फर फर फरकै ।
तीन लोक दरसन को तरसे, सो दरसन तरसै ।
ये तो नैना बंद किये क्यों , कान्हा बैननि परखै ।
अचरज एक भयो ताही छिन , बरसानौ सरसै ।
खोली दिए दृग , भानु-लली , मिलि नैन -नैन हरसें ।
दृष्टि हीन माया ,लखि दृष्टा , दृष्टि खोलि निरखै ।
बिनु दृष्टा के दर्श ' श्याम' कब जगत दीठि बरसै ॥
-३-
को तुम कौन कहाँ ते आई ।
पहली बेरि मिली हो गोरी ,का ब्रज कबहूँ न आई ।
बरसानो है धाम हमारो, खेलत निज अंगनाई ।
सुनी कथा दधि -माखन चोरी , गोपिन संग ढिठाई ।
हिलि-मिलि चलि दधि-माखन खैयें, तुमरो कछु न चुराई।
मन ही मन मुसुकाय किशोरी, कान्हा की चतुराई ।
चंचल चपल चतुर बतियाँ सुनि राधा मन भरमाई ।
नैन नैन मिलि सुधि बुधि भूली, भूलि गयी ठकुराई ।
हरि-हरि प्रिया, मनुज लीला लखि,सुर नर मुनि हरसाई ॥
-४-
राधाजी मैं तो बिनती करूँ ।
दर्शन दे कर श्याम मिलादो,पैर तिहारे पडूँ ।
लाख चौरासी योनि में भटका , कैसे धीर धरूँ ।
जन्म मिला नर , प्रभु वंदन को,सौ सौ जतन करूँ ।
राधे-गोविन्द, राधे-गोविन्द , नित नित ध्यान धरूँ ।
जनम जनम के बन्ध कटें जब, मोहन दर्श करूँ ।
श्याम, श्याम के दर्शन हित नित राधा पद सुमिरूँ ।
युगल रूप के दर्शन पाऊँ , भव -सागर उतरूँ ॥
जनम लियो वृषभानु लली ।
आदि -शक्ति प्रकटी बरसाने, सुरभित सुरभि चली।
जलज-चक्र,रवि तनया विलसति,सुलसति लसति भली ।
पंकज दल सम खिलि-खिलि सोहै, कुसुमित कुञ्ज लली।
पलकन पुट-पट मुंदे 'श्याम' लखि मैया नेह छली ।
विहंसनि लागि गोद कीरति दा, दमकति कुंद कली ।
नित-नित चन्द्रकला सम बाढ़े, कोमल अंग ढली ।
बरसाने की लाड़-लडैती, लाडन -लाड़ पली ।।
-२-
कन्हैया उझकि-उझकि निरखै ।
स्वर्ण खचित पलना,चित चितवत,केहि विधि प्रिय दरसै ।
जंह पौढ़ी वृषभानु लली , प्रभु दरसन कौं तरसै ।
पलक -पाँवरे मुंदे सखी के , नैन -कमल थरकैं ।
कलिका सम्पुट बंध्यो भ्रमर ज्यों ,फर फर फर फरकै ।
तीन लोक दरसन को तरसे, सो दरसन तरसै ।
ये तो नैना बंद किये क्यों , कान्हा बैननि परखै ।
अचरज एक भयो ताही छिन , बरसानौ सरसै ।
खोली दिए दृग , भानु-लली , मिलि नैन -नैन हरसें ।
दृष्टि हीन माया ,लखि दृष्टा , दृष्टि खोलि निरखै ।
बिनु दृष्टा के दर्श ' श्याम' कब जगत दीठि बरसै ॥
-३-
को तुम कौन कहाँ ते आई ।
पहली बेरि मिली हो गोरी ,का ब्रज कबहूँ न आई ।
बरसानो है धाम हमारो, खेलत निज अंगनाई ।
सुनी कथा दधि -माखन चोरी , गोपिन संग ढिठाई ।
हिलि-मिलि चलि दधि-माखन खैयें, तुमरो कछु न चुराई।
मन ही मन मुसुकाय किशोरी, कान्हा की चतुराई ।
चंचल चपल चतुर बतियाँ सुनि राधा मन भरमाई ।
नैन नैन मिलि सुधि बुधि भूली, भूलि गयी ठकुराई ।
हरि-हरि प्रिया, मनुज लीला लखि,सुर नर मुनि हरसाई ॥
-४-
राधाजी मैं तो बिनती करूँ ।
दर्शन दे कर श्याम मिलादो,पैर तिहारे पडूँ ।
लाख चौरासी योनि में भटका , कैसे धीर धरूँ ।
जन्म मिला नर , प्रभु वंदन को,सौ सौ जतन करूँ ।
राधे-गोविन्द, राधे-गोविन्द , नित नित ध्यान धरूँ ।
जनम जनम के बन्ध कटें जब, मोहन दर्श करूँ ।
श्याम, श्याम के दर्शन हित नित राधा पद सुमिरूँ ।
युगल रूप के दर्शन पाऊँ , भव -सागर उतरूँ ॥
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