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मंगलवार, 28 सितंबर 2010

डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल.....तटबन्ध होना चाहिये----

कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित----------

डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल....

साहित्य सत्यम शिवम् सुन्दर भाव होना चाहिए|
साहित्य शुचि शुभ ज्ञान पारावार होना चाहिए।

समाचारों के लिए अखबार छपते तो हैं रोज़ ,
साहित्य तो सरोकार-समाधान होना चाहिए ।

आज हम उतरे हैं इस सागर में यह कहने कि हाँ ,
साहित्य, सागर है तो सागर-भाव होना चाहिए।

डूब कर उतरा सके जन जन व मन मानस जहां ,
भाव सार्थक, अर्थ भी संपुष्ट होना चाहिए।

क्लिष्ट शब्दों से सजी, दूरस्थ भाव न अर्थ हों ,
कूट भाव न हों,सुलभ संप्रेष्य होना चाहिए।

चित्त भी हर्षित रहे, नव प्रगति भाव यथा रहें ,
कला सौन्दर्य भी सुरुचि, शुचि, सुष्ठु होना चाहिए।

ललित भाषा, ललित कथ्य,न सत्य तथ्य परे रहे ,
व्याकरण शुचि शुद्ध सौख्य-समर्थ होना चाहिए।

श्याम, मतलब सिर्फ होना शुद्धतावादी नहीं ,
बहती दरिया रहे पर तटबंध होना चाहिए॥

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