टूटते आईने सा हर व्यक्ति यहां क्यों है।
हैरान सी नज़रों के ये अक्स यहां क्यों है।
दौडता नज़र आये इन्सान यहां हर दम,
इक ज़द्दो ज़हद में इन्सान यहां क्यों है ।
वो हंसते हुए गुलशन चेहरे किधर गये,
हर चेहरे पै खौफ़ का यह नक्श यहां क्यों है।
गुलज़ार रहते थे गली बाग चौराहे,
वीराना सा आज हर वक्त यहां क्यों है ।
तुलसी सूर गालिव की सरज़मीं पै ’श्याम,
आतंक की फ़सल सरसब्ज़ यहां क्यों है॥
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
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