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मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

श्यामांगिनि ! तेरा मुखर लास--डा श्याम गुप्त का गीत----

कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित---


श्यामांगिनि ! तेरा मुखर लास--डा श्याम गुप्त का गीत----

कामिनि! तेरा वह मृदुल हास |
श्यामांगिनि ! तेरा मुखर लास |

जाने कितने उपमा रूपक ,
सज जाते बनकर सृष्टि-साज |
हृद तंत्री में अगणित असंख्य ,
बस जाते मधुमय मदिर राग |
मन के उपवन में छाजाता,
सुरभित अनुपम मधुरिम पराग |

वह मुकुलित कुसुमित सा सुहास ,
कामिनी तेरा वह मृदुल हास ||

वह शुभ्र चपल स्मिति तरंग ,
नयनों में घोले विविध रंग |
तन मन को रंग जाते बनकर,
अगणित बसंत रस रंग फाग |
आँखों में सजते इन्द्र-धनुष ,
बनकर चाहत के प्रिय-प्रवास |

रूपसि ! वह मुखरित विमल लास |
कामिनि ! तेरा वह मृदुल हास ||

मद्दम -मद्दम वह मधुरिम स्वर ,
वह मौन मुखरता की प्रतिध्वनि |
आता ऋतुराज स्वयं लेकर ,
कलियों का आमंत्रण सहास |
अणु अणु में छाजाती असीम,
नव तन्मयता उल्लास-लास |

श्यामांगिनि ! तेरा मृदुल हास |
कामिनि ! तेरा वह मुखर लास ||

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