कुछ कतऐ
पहले खुद को तो, खुदी में निहारो यारो।
सूरते दिल को, आईने में उतारो यारो।
फिर ये कहना मेरे अशआर नहीं हैं काबिल -
अपनी ग़ज़लों के तो पुर अक्स संवारो यारो।
मैं जो कहता हूँ सरे आम कहा करता हूँ।
मैं तो हर आम को भी ख़ास कहा करता हूँ।
हिन्दी औ हिंद पै न आये आंच कोई--
खुद से ये वादा सरे शाम किया करता हूँ।
इंकलाबी हूँ ,इन्कलाब है कलाम मेरा।
ये कलम कहती है सबको ही सलाम मेरा।
मेरे नगमे रहें देश पै भाषा पै कुर्बां --
खुद से ये वादा करता है कलाम मेरा।
हिन्दी साहित्य हो नित नित उन्नत यारो।
दिली इच्छा है यही मेरी तो सदा यारो।
नित नए प्रयोग इसीलिये किया करता हूँ--
समाज के सरोकारों से पर नहीं हटता यारो॥
सूरते दिल को, आईने में उतारो यारो।
फिर ये कहना मेरे अशआर नहीं हैं काबिल -
अपनी ग़ज़लों के तो पुर अक्स संवारो यारो।
मैं जो कहता हूँ सरे आम कहा करता हूँ।
मैं तो हर आम को भी ख़ास कहा करता हूँ।
हिन्दी औ हिंद पै न आये आंच कोई--
खुद से ये वादा सरे शाम किया करता हूँ।
इंकलाबी हूँ ,इन्कलाब है कलाम मेरा।
ये कलम कहती है सबको ही सलाम मेरा।
मेरे नगमे रहें देश पै भाषा पै कुर्बां --
खुद से ये वादा करता है कलाम मेरा।
हिन्दी साहित्य हो नित नित उन्नत यारो।
दिली इच्छा है यही मेरी तो सदा यारो।
नित नए प्रयोग इसीलिये किया करता हूँ--
समाज के सरोकारों से पर नहीं हटता यारो॥
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