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शनिवार, 16 अक्टूबर 2010

डा श्याम गुप्त की कविता.....गांव की गोरी

कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


 


डा श्याम गुप्त की कविता....गांव की गोरी.... .

गाँव की गोरी,
लम्बी लम्बी छोरी ।
इमली के तले
काली न गोरी।

'पतिया की जात' में
झूमते गुब्बारे।
मिट्टी की गाड़ी
गड़ गड़ गड़ पुकारे।

इमली के कतारे
और आँख मिचोली।
सरसों के खेत की
वो अठखेली ।

नील कंठ की दांई
और श्यामा की बाँई -
लेने को दौड़ना
खंदक हो या खाई।

गूंजती अमराइयां
नहर के किनारे।
सावन के गीत और
वर्षा की फुहारें ।

झमाझम बरसात में
जी भर नहाती।
खेतों की मेड़ों पर
झूम झूम गाती ।

सावन में जब कभी
कोकिल कहीं बोली।
बहुत याद आती हो
प्यारी हमजोली

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