डा श्याम गुप्त की कविता....गांव की गोरी.... .
गाँव की गोरी,
लम्बी लम्बी छोरी ।
इमली के तले
काली न गोरी।
'पतिया की जात' में
झूमते गुब्बारे।
मिट्टी की गाड़ी
गड़ गड़ गड़ पुकारे।
इमली के कतारे
और आँख मिचोली।
सरसों के खेत की
वो अठखेली ।
नील कंठ की दांई
और श्यामा की बाँई -
लेने को दौड़ना
खंदक हो या खाई।
गूंजती अमराइयां
नहर के किनारे।
सावन के गीत और
वर्षा की फुहारें ।
झमाझम बरसात में
जी भर नहाती।
खेतों की मेड़ों पर
झूम झूम गाती ।
सावन में जब कभी
कोकिल कहीं बोली।
बहुत याद आती हो
प्यारी हमजोली ॥
लम्बी लम्बी छोरी ।
इमली के तले
काली न गोरी।
'पतिया की जात' में
झूमते गुब्बारे।
मिट्टी की गाड़ी
गड़ गड़ गड़ पुकारे।
इमली के कतारे
और आँख मिचोली।
सरसों के खेत की
वो अठखेली ।
नील कंठ की दांई
और श्यामा की बाँई -
लेने को दौड़ना
खंदक हो या खाई।
गूंजती अमराइयां
नहर के किनारे।
सावन के गीत और
वर्षा की फुहारें ।
झमाझम बरसात में
जी भर नहाती।
खेतों की मेड़ों पर
झूम झूम गाती ।
सावन में जब कभी
कोकिल कहीं बोली।
बहुत याद आती हो
प्यारी हमजोली ॥
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