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गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

प्रेमकाव्य....सप्तम सुमनान्जलि -वात्सल्य (क्रमश:)- ..गीत 3-..पुत्रवधू ....डा श्याम गुप्त..........

                                         कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

           प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | षष्ठ सुमनान्जलि में रस -श्रृंगार  के गीतों को पोस्ट किया गया था | प्रस्तुत है सप्तम सुमनांजलि ...वात्सल्य..... इस खंड में वात्सल्य रस सम्बंधित पांच  गीतों को रखा गया है ....बेटी,  पुत्र,  पुत्र-वधु ,  माँ,  बेटे का फोन .......|  प्रस्तुत है  तृतीय गीत ...पुत्र वधू......
 
पुत्रवधू, कुलवधू हमारे-
दूर रहो या पास |
मन में बिटिया बन कर रहती,
सदा हमारे साथ ||
 
तुम हो प्रिय सुत की प्रिय भामिनि,
प्रिय मन का आभास |
सदा रहो तुम अचल प्रेम में ,
अटल प्रेम विश्वास |
मन मंदिर में बेटी बनकर,
सदा हमारे पास   ||
 
 तुम हो पुत्री गौरव-कुल की,
 पति कुल का विश्वास |
प्रीति-रीति पर चलते रहना,
रखना कुल के लाज ||
मन में रहती बिटिया बनकर ,
सदा हमारे साथ ||

दूर देश से आकर तुमने,
इस कुल को अपनाया |
बना रहेगा तेरे ऊपर,
प्यार का ये साया |
सुख में दुःख में सदा रहेंगे,
हे प्रिय! तेरे साथ |
 
मन में रहना बेटी बनकर ,
सदा हमारे पास ||

4 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

डा०श्याम जी,...
पुत्र बधू बेटी के सामान होती है,बहुत सुंदर रचना..

मेरे पोस्ट में आइये..आज चली कुछ ऐसी बातें,बातों पर हो जाएँ बातें

नयनों में जब होतीं बातें, क्या समझोगे ऎसी बातें
हर भाषा में होतीं बातें, कुछ सच्ची कुछ झूठी बातें
हार की बातें जीत की बातें, गीत और संगीत की बातें
ज्ञान और विज्ञान की बातें, हर मौसम पर करते बातें

आपका स्वागत है,.....

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद धीरेन्द्र जी....

बेनामी ने कहा…

sir, sahitya dunia mein zyada anubhav
nahi hai mere aur blog par bhi thode hi din huye hai par aapake lekh hamesha prerna dete hai ..........khaskar ye rachana.
kam logo ki ye soch hoti hai.
bahut sunder kriti..
sadar

डा श्याम गुप्त ने कहा…

Thanks..Pratishtha ji.....zindage apane aap anubhav de dete hai......
---you have written on your profile..

"I want to be a poetess but due to some reasons i m in another field but it is an attempt to fulfill my dreams........"
--no body can become poet on his own wish...it is a god-gift & BUT in his heart every one is a poet,it is only the matter to know the self.. & I think that you are doing the same by writing...