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रविवार, 18 दिसंबर 2011

माँ......प्रेमकाव्य....सप्तम सुमनान्जलि -वात्सल्य (क्रमश:)- ..गीत 3-.माँ.....डा श्याम गुप्त..........

                                 कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



              प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा

सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है सप्तम सुमनांजलि ...वात्सल्य..... इस खंड में वात्सल्य रस सम्बंधित पांच  गीतों को रखा गया है ....बेटी,  पुत्र,  पुत्र-वधु ,  माँ,  बेटे का फोन .......|  प्रस्तुत है  तुर्थ  गीत 
 
                   ---माँ......
जितने भी पदनाम सात्विक ,
उनके पीछे  'मा' होता है |
चाहे धर्मात्मा,  महात्मा,
आत्मा हो अथवा परमात्मा ||

जो महान सत्कर्म जगत के,
उनके पीछे 'माँ'होती है|
चाहे हो वह माँ कौसल्या,
जीजाबाई या यशुमति माँ||

पूर्ण शब्द माँ, पूर्ण ग्रन्थ माँ ,
शिशुवाणी का प्रथम शब्द माँ |
जीवन की हरएक सफलता,
की पहली सीढ़ी होती माँ ||

माँ अनुपम है वह असीम है,
क्षमा दया श्रृद्धा का सागर |
कभी नहीं रीती होपाती,
माँ की ममता रूपी गागर ||

माँ मानव की प्रथम गुरू है,
सभी सृजन का मूल-तंत्र माँ |
विस्मृत ब्रह्मा की स्फुरणा,
वाणी रूपी मूल-मन्त्र माँ ||

सीमित तुच्छ बुद्धि यह कैसे,
 कर पाए माँ का गुण गान |
'श्याम' करें पद-वंदन माँ ही ,
करती वाणी-बुद्धि  प्रदान ||

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