कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
-----चित्र --गूगल साभार ....
द्वितीय गीत ...पुत्र ...
यादों के झूले में जब जब ,
मन पींगें भरता है |
मन में तेरे प्रिय बचपन का,
वह स्वप्न उभरता है ||
कारों से खेला करना , वह-
बचपन , रोना- गाना |
ठंडा ठंडा कोल्ड-ड्रिंक सब,
गट गट गट पी जाना ||
तेज तेज वह ट्राई-साइकल ,
चारों और घुमाना |
स्कूटर की ही भाँति,घरर-घर ,
करके स्टार्ट कराना ||
यादों के मेले में, मन का-
वह अक्स उभरता है |
मन में तेरे प्रिय बचपन का,
वह स्वप्न उभरता है ||
वह मशीन खाना खाने की ,
यादें जो आती हैं |
खाना ठीक तरह से खाना ,
मम्मी समझाती हैं ||
पैसे वाले उस नेकर का,
इतिहास निखरता है |
मन में प्रिय ! तेरे बचपन का ,
वह अक्स उभरता है ||
दूर रह रहे हो, कैसे हो ,
मन भर भर आता है |
मम्मी का दिल तो उड़ उड़ कर ,
आने को करता है ||
बातें फोटो फोन से भला ,
दिल कब तक भरता है |
मन में प्रिय तेरे बचपन का ,
वह स्वप्न उभरता है ||
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | षष्ठ सुमनान्जलि में रस -श्रृंगार के गीतों को पोस्ट किया गया था | प्रस्तुत है सप्तम सुमनांजलि ...वात्सल्य..... इस खंड में वात्सल्य रस सम्बंधित पांच गीतों को रखा गया है ....बेटी, पुत्र, पुत्र-वधु , माँ, बेटे का फोन .......|
प्रस्तुत है प्रथम गीत ....बेटी ...
बेटी तुम जीवन का धन हो ,
तुम हो सारे घर की छाया,
सबके मन यह प्यार समाया ||
तेरा घुटनों के बल चलना,
रुदन, रूठना और मचलना |
गुड्डे और गुडिया लेने को,
जिद करना, मनवाकर हंसना ||,
मम्मी ने पायल दिलवाई,
नांच- नांच कर खुशी मनाई |
पुलकित मन हो दौड़ दौड़ कर,
सारी सखियों को दिखलाई ||
दादी ने जब आग मंगाई ,
झोली में भरकर ले आई |
फ्राक जल गयी खबर नहीं कुछ ,
पैर जला रोई चिल्लाई ||
जो कहें परायाधन तुझको,
वे तो सबही अज्ञानी हैं |
तुम उपवन की कोकिल मैना ,
चहको, करलो मनमानी है ||
इस जग की तो रीति यही है,
संसृति का संगीत यही है |
हो जब प्रियतम के घर जाना ,
दुनिया की सब रीति निभाना ||
यादें तो बरबस आयेंगी,
रोते मन को सहलायेंगी |
पर ये तो सुख के आंसूं हैं बेटी प्रिय घर ही जायेंगी ||
-----चित्र --गूगल साभार ....
द्वितीय गीत ...पुत्र ...
यादों के झूले में जब जब ,
मन पींगें भरता है |
मन में तेरे प्रिय बचपन का,
वह स्वप्न उभरता है ||
कारों से खेला करना , वह-
बचपन , रोना- गाना |
ठंडा ठंडा कोल्ड-ड्रिंक सब,
गट गट गट पी जाना ||
तेज तेज वह ट्राई-साइकल ,
चारों और घुमाना |
स्कूटर की ही भाँति,घरर-घर ,
करके स्टार्ट कराना ||
यादों के मेले में, मन का-
वह अक्स उभरता है |
मन में तेरे प्रिय बचपन का,
वह स्वप्न उभरता है ||
वह मशीन खाना खाने की ,
यादें जो आती हैं |
खाना ठीक तरह से खाना ,
मम्मी समझाती हैं ||
पैसे वाले उस नेकर का,
इतिहास निखरता है |
मन में प्रिय ! तेरे बचपन का ,
वह अक्स उभरता है ||
दूर रह रहे हो, कैसे हो ,
मन भर भर आता है |
मम्मी का दिल तो उड़ उड़ कर ,
आने को करता है ||
बातें फोटो फोन से भला ,
दिल कब तक भरता है |
मन में प्रिय तेरे बचपन का ,
वह स्वप्न उभरता है ||
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