कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- अष्टम सुमनान्जलि--सहोदर व सख्य-प्रेम ...इस खंड में ...अनुज, अग्रज, भाई-बहन, मेरा भैया, सखा , दोस्त-दुश्मन एवं दाम्पत्य ...आदि सात रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी
---प्रस्तुत है ..चतुर्थ रचना ...मेरा भैया .....
चान्दनी मुस्कुराये, चाँद भी खिलखिलाए,
सुधि बचपन की मन में, लहर लहर जाए ।
वो भैया के माथे पर, रोली का टीका,
नेग लड़-लड़ के लेना कराना मुंह मीठा ।
वो झूलों की पींगें, वो कुट्टी वो अनबन ।
रुलाया किसी ने भी, मुझे यूंही कभी जब,
पीट देना और अच्छा सबक सा सिखाना ।
कैसे छुआ भी तूने, बहन है ये मेरी,
प्रीति के पल वो कैसे भुला कोई पाए ।
चांदनी मुस्कुराए, चाँद भी खिलखिलाए,
सुधि बचपन की मन में लहर लहर जाए ।।
खेल ही खेल में छेड़ करके सभी को ही ,
मुस्कुरा मुस्कुरा फिर, रुलाना सभी को।
रूठना और मनाना, वो फिर-फिर रिझाना ,
मीठी यादों को ऐसी, भुला कौन पाए ।
उसकी मासूम भोली सी मुस्कान पर तो,
मरती-मिटतीं थी सारी ही सखियाँ मेरी ।
करके शैतानियाँ, झगड़े नादानियां , और-
तोड़ना सब दिलों का, वो चलन याद आये ।
चांदनी मुस्कुराए, चाँद भी खिलखिलाए,
सुधि बचपन की मन में महक महक जाए ।।
----- चित्र ...श्याम गुप्त