कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
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प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा
सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- अष्टम सुमनान्जलि--सहोदर व सख्य-प्रेम ...इस खंड में ...अनुज.
अग्रज, भाई-बहन, मेरा भैया, सखा , दोस्त-दुश्मन एवं दाम्पत्य ...आदि सात रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी
---प्रस्तुत है ...द्वितीय रचना....अग्रज ......
हे अग्रज ! तुमसे ही सीखा,
अक्षर का विन्यास ।
तुम ही तो थे बने प्रेरणा ,
जागी अक्षर प्यास ||
तुम ही शिक्षक प्रथम हमारे,
तुम ही प्रथम प्रभात |
भाव ज्योति की प्रथम किरन हो,
ज्ञानी मन की आस ||
मातु पिता ईश से अन्यथा,
प्रथम गुरू तुम तात |
हे अग्रज! तुम से ही सीखा,
अक्षर का विन्यास ||
देश कल गति की सीमा से ,
कौन है बच पाया |
दूर रह रहे किन्तु मन बसा,
याद का सरमाया ||
मन की गति को दूर भला क्या,
और भला क्या पास |
हे अग्रज ! तुम से ही सीखा,
अक्षर का विन्यास ||
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