कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- अष्टम सुमनान्जलि--सहोदर व सख्य-प्रेम ...इस खंड में ...अनुज, अग्रज, भाई-बहन, मेरा भैया, सखा , दोस्त-दुश्मन एवं दाम्पत्य ...आदि सात रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी
---प्रस्तुत है ...सप्तम रचना ...दाम्पत्य
ये दुनिया हमारी, सुहानी न होती,
कहानी ये अपनी, कहानी न होती ।
जमीं चाँद तारे, सुहाने न होते,
जो प्रिय तुम न होते, अगर तुम न होते ।
सुहानी ये अपनी, सपनों की दुनिया,
चंचल सी चितवन, इशारों की दुनिया।
सुख-दुःख के बंधन, सहारों की दुनिया,
अंगना ये प्यारा, दुलारी ये दुनिया ।।
तुम्हीं ने सजाया, संवारा, निखारा,
दिया प्यार का, जो तुमने सहारा ।
ये दिन-रात न्यारे, ये सुख भोग सारे,
भला कैसे होते, अगर तुम न होते।।
हो सेवा या सत्ता के अधिकार सारे,
निभाता रहा मैं, ये दायित्व सारे ।
ये बच्चों का पढ़ना, गृहकार्य सारे,
सभी कैसे होते,अगर तुम न होते ।
मैं रचता रहा, ग्रन्थ कविता कहानी,
सदा खुश रहीं तुम, बनी घर की रानी ।
ये रस रूप रसना, भव-सुख न होते ,
जो प्रिय तुम न होते,अगर तुम न होते।
न ये प्यार होता , न इकरार होता,
न साजन की गलियाँ न सुख-सार होता।
न रस्में, न क़समें, कहानी न होतीं ,
जमाने की सारी, रवानी न होतीं ।
कभी ख़ूबसूरत भटकन जो आई,
तेरे प्यार की मन में खुशबू समाई ।
अगर तुम न होते, तो कैसे सम्हलते,
बलाओं से कैसे, यूं बच के निकलते।।
सभी रिश्ते-नाते, गुण जो हैं गाते ,
भला कैसे गाते, जो तुम ना निभाते ।
ये छोटी सी बगिया, परिवार अपना,
सुघड़ कैसे होता, जो तुम ना सजाते ।।
ये ऊंचाइयों के शिखर, ये सितारे,
धन-सम्पति, संतति, सभी वारे-न्यारे।
प्रशस्ति या गुण-गान, तेरी ही माया ,
कहाँ सब ये होते, अगर तुम न होते ।।
वो दुर्दिन भी आये, विपदा घनेरी,
कमर कसके तुमने निभाया सदा ही ।
कभी धैर्य मेरा भी डिगने लगा तो,
अडिग पर्वतों सी थी, तेरी अदा ही ।।
हमारी सफलता की सारी कहानी,
तेरे प्रेम की नीति की सब निशानी ।
ये सुन्दर कथाएं, फ़साने न होते,
सजनि! तुम न होते, यदि तुम न होते ।।
प्रशस्ति तुम्हारी जो जग ने बखानी ,
कि तुम प्यार-ममता की मूरत-निशानी ।
ये अहसान तेरा, सारे ही जग पर,
तथा त्याग, दृड़ता की सारी कहानी ।।
ज़रा सोचलो, कैसे परवान चढते,
हमीं जो न होते,जो सखि ! हम न होते ।
हमीं हैं तो तुम हो, सारा जहां है,
जो तुमहो तो हम हैं सारा जहां है ।।
अगर हम न लिखते, हम जो न कहते,
भला गीत कैसे, तुम्हारे ये बनते ?
किसे रोकते तुम, किसे टोकते तुम,
ये इसरार, इनकार, तुम कैसे करते ।।
न संसार होता, ये भव-सार होता,
कहीं कुछ न होता, जो हम-तुम न होते।
हमीं है तभी है , ईश्वर और माया,
खुदा भी न होता, जो हम-तुम न होते ।।
कहानी हमारी - तुम्हारी न होती,
न ये गीत होते, न संगीत होता ।
सुमुखि! तुम अगर जो हमारे न होते,
सजनि! जो अगर हम तुम्हारे न होते ।।
---- अष्ठम सुमनांजलि समाप्त ....क्रमश नवम सुमनांजलि ...
1 टिप्पणी:
धन्यवाद ...इन्डियन दर्पण जी..
आपको भी नव-संवत्सर की शुभ कामनायें.....
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