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शुक्रवार, 16 मार्च 2012

दोस्त-दुश्मन....प्रेम काव्य...अष्टम सुमनान्जलि--..सहोदर व सख्य-प्रेम...गीत--६....डा श्याम गुप्त..

                                             

                                    कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


       प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है-- अष्टम सुमनान्जलि--सहोदर व सख्य-प्रेम ...इस खंड में ...अनुज, अग्रज,  भाई-बहन,  मेरा भैया,  सखा ,  दोस्त-दुश्मन एवं दाम्पत्य ...आदि सात  रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी 
---प्रस्तुत है ... षष्ठ रचना ...दोस्त-दुश्मन ...

ऐ मेरे प्रिय दोस्त तुझको, दुश्मनी का हक़ नहीं ।
तू जो दुश्मन, दुश्मनी से फिर मुझे नफ़रत नहीं ।

दोस्त ही दुश्मन बने फिर, क्या कोई नफ़रत करे ।
दोस्त ही दुश्मन तो कोई, क्या जिए और क्या मरे ।

दोस्त दुश्मन बन गया तो, दुश्मनों से फिर क्या डर ?
दुश्मनों से भी भला फिर,  क्यों कोई नफ़रत करे ।

दुश्मनों  की  दुश्मनी  तो,   बंदगी  कहलायगी,
वो हमें उत्साह, हिम्मत, जीतना सिखलायगी ।

बेरुखी अपनों की हो तो,  ज़िंदगी  खो जायगी ,
एक पल में ज़िंदगी,  बस बेखुदी  होजायागी ।

है मुझे मंजूर तेरी,   दुश्मनी प्यारी  सी  सब,
पर भला क्या दुश्मनी से, दोस्ती मिट पायगी ।

है मुझे मंजूर,  जीवन भर  तेरी नफ़रत सही ,
पर ये कहदे  मुझको तेरी, दोस्ती का हक़ नहीं ।।
 

2 टिप्‍पणियां:

amrendra "amar" ने कहा…

bahut sunder prastuti

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद अमरेन्द्र जी.......आभार