कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- अष्टम सुमनान्जलि--सहोदर व सख्य-प्रेम ...इस खंड में ...अनुज, अग्रज, भाई-बहन, मेरा भैया, सखा , दोस्त-दुश्मन एवं दाम्पत्य ...आदि सात रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी
ऐ मेरे प्रिय दोस्त तुझको, दुश्मनी का हक़ नहीं ।
दोस्त ही दुश्मन बने फिर, क्या कोई नफ़रत करे ।
दोस्त दुश्मन बन गया तो, दुश्मनों से फिर क्या डर ?
दुश्मनों की दुश्मनी तो, बंदगी कहलायगी,
बेरुखी अपनों की हो तो, ज़िंदगी खो जायगी ,
है मुझे मंजूर तेरी, दुश्मनी प्यारी सी सब,
है मुझे मंजूर, जीवन भर तेरी नफ़रत सही ,
---प्रस्तुत है ... षष्ठ रचना ...दोस्त-दुश्मन ...
ऐ मेरे प्रिय दोस्त तुझको, दुश्मनी का हक़ नहीं ।
तू जो दुश्मन, दुश्मनी से फिर मुझे नफ़रत नहीं ।
दोस्त ही दुश्मन बने फिर, क्या कोई नफ़रत करे ।
दोस्त ही दुश्मन तो कोई, क्या जिए और क्या मरे ।
दोस्त दुश्मन बन गया तो, दुश्मनों से फिर क्या डर ?
दुश्मनों से भी भला फिर, क्यों कोई नफ़रत करे ।
दुश्मनों की दुश्मनी तो, बंदगी कहलायगी,
वो हमें उत्साह, हिम्मत, जीतना सिखलायगी ।
बेरुखी अपनों की हो तो, ज़िंदगी खो जायगी ,
एक पल में ज़िंदगी, बस बेखुदी होजायागी ।
है मुझे मंजूर तेरी, दुश्मनी प्यारी सी सब,
पर भला क्या दुश्मनी से, दोस्ती मिट पायगी ।
है मुझे मंजूर, जीवन भर तेरी नफ़रत सही ,
पर ये कहदे मुझको तेरी, दोस्ती का हक़ नहीं ।।
2 टिप्पणियां:
bahut sunder prastuti
धन्यवाद अमरेन्द्र जी.......आभार
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