कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
कुछ शायरी की बात होजाए ---
------ प्रस्तावना ------
( ड़ा रंगनाथ मिश्र 'सत्य ')
------------ जीवन और जगत को एक साथ जीने वाले महाकवि डा श्यामगुप्त हिन्दी के वरिष्ठ कवि व लेखक हैं | आपकी अब तक नौ साहित्यिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं — काव्यदूत, काव्य निर्झरिणी, काव्यमुक्तामृत ( सभी काव्य संग्रह )...सृष्टि –अगीत विधा पर आधारित वैज्ञानिक महाकाव्य....प्रेम काव्य – गीति विधा पर आधारित महाकाव्य ...शूर्पणखा – अगीत विधा खंड काव्य ...इन्द्रधनुष –स्त्री-पुरुष विमर्श पर उपन्यास...अगीत साहित्य दर्पण – अगीत विधा का आदि से अब तक इतिहास एवं छंद विधान तथा डा श्याम गुप्त व श्रीमती सुषमागुप्ता द्वारा रचित-–ब्रजभाषा में विभिन्न काव्य विधाओं की रचनाओं का संग्रह ‘ब्रज बांसुरी ‘ | ये सभी कृतियाँ लोकार्पित होकर सुधी पाठकों एवं बुद्धिजीवियों के मध्य प्रशंसित हो चुकी हैं| प्रस्तुत दसवीं कृति ‘कुछ शायरी की बात होजाए ‘ शीर्षक से विविध विधाओं- ग़ज़ल, नज़्म, रुबाई, कतए, शे’र आदि का संग्रह, देवनागरी लिपि हिन्दी में प्रकाशित होकर शीघ्र ही साहित्यानुरागियों के समक्ष प्रस्तुत होने जा रही है |
--------उर्दू शायरी के दो स्कूल प्रसिद्ध हैं– १.लखनऊ स्कूल की शायरी ...२.दिल्ली स्कूल की शायरी | हैदराबाद की उर्दू शायरी अलग है | उर्दू की स्वयं की कोई लिपि नहीं है, यह अरबी-फारसी लिपि में लिखी जाती है जो अंग्रेज़ी की तरह ही विदेशी लिपि है | राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिन्दी भाषा को मान्यता दी, जिसमें देवनागरी लिपि का प्रयोग होता है, साथ ही बोलचाल के उर्दू शब्द भी प्रयोग किये जाते हैं, जिस प्रकार अंग्रेज़ी शब्द हिन्दी लेखन में आत्मसात किये गए हैं|
---------- महाकवि डा श्यामगुप्त आगरा जनपद में जन्मे हैं, जो दिल्ली के निकट है | हम कह सकते हैं कि कविवर गुप्तजी की शायरी लखनऊ व दिल्ली दोनों स्कूलों से प्रभावित है | लखनऊ स्कूल की शायरी की छाप उनकी शायरी में विशेष रूप से देखने को मिलती है | इस स्कूल में सैकड़ों शायर जुड़े हुए हैं यथा -शायर आलीबासी, कृष्णबिहारी ‘नूर’, दिल लखनवी, खुमार बाराबंकवी, डा सागर आज़मी, आफताब लखनवी, साहिर लखनवी आदि | वर्तमान के शायर प्रो.मलिकजादा मंज़ूर अहमद, वशीर फारुखी, डा सुल्तान शाकिर हाशमी, मुनब्बर राना, के के सिंह मयंक आदि के नाम लिए जा सकते हैं| हिन्दी कवियों बलबीर सिंह ‘रंग’, दुष्यंत कुमार ,राम बहादुर सिंह भदौरिया आदि द्वारा भी भारी संख्या में हिन्दी गज़लें लिखी गयी हैं | आज भी गंगारत्न पाण्डे, नवीन शुक्ल ‘नवीन’, देवकी नंदन शांत, पार्थोसेन आदि सेकड़ों रचनाकार देवनागरी लिपि में गज़लें, शेर आदि लिख रहे हैं|
------- डा श्याम गुप्त ने ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ शायरी संग्रह को छह भागों में विभक्त किया है | जो इस प्रकार हैं---१,गज़लें...२.नज्में...३.आज़ाद नज्में...४. रुबाइयां...५. कतए..६.आज़ाद शे’र ..|
------- जैसी कि परम्परा है कि कवि सदा गणेश-वन्दना या सरस्वती-वंदना से अपने काव्य-संग्रह की शुरूआत करता है| डा श्यामगुप्त के इससे पहले जितने भी संग्रह व काव्य प्रकाशित हुए है उनमें इस बात का ध्यान रखा गया है| प्रस्तुत शायरी संग्रह में महाकवि ने अपनी पहली ग़ज़ल द्वारा ‘परमसत्ता’ को नमन किया है, देखें ....
बड़े बड़ों के ढीले सुर-तेवर होजाते हैं |
क्या तिनका क्या गर्वोन्नत गिरि नत होजाते हैं |
जिसके आगे बड़े बड़ों की अकड नहीं चल पाए,
श्याम, परमसत्ता के आगे शीश झुकाते हैं |
---------- संग्रह की सभी गज़लें सामाजिक सरोकारों से जुडी हुईं हैं | इन ग़ज़लों में पाठकों को वह सभी कुछ मिलेगा जो उन्हें एक सच्चे लेखक से उम्मीद होती है | ‘दास्ताँ तो सुनायेंगे’ ग़ज़ल में शायर मुहब्बत को निभाने की बात कहता है ---
“ जग कुछ भी कहे दास्ताँ तो सुनायेंगे,
साथ मोहब्बत का निभाते ही जायेंगे |”
----------कविवर डा श्यामगुप्त पर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टेगोर के साहित्य का प्रभाव परिलक्षित होता है | टेगोर ने कहा था जब कोइ साथ न दे तो..’एकला चलो रे’ | यही बात डा श्यामगुप्त ने ‘दुष्कर राहों’ में कही है....
“कहने को तैयार थे मरहम लिए,
हम यूंही बस दर्द अपने सह गए |
साथ कोई दे भला या नहीं दे ,
श्याम अपने राह चलते हम गए |”
--------- कवि डा श्यामगुप्त अध्यात्म से जुड़े हुए हैं | ‘बात करें’ शीर्षक त्रिपदा अगीत ग़ज़ल में वे कहते हैं.....
“ शीश झुकाएं क्यों पश्चिम को,
क्यों अतीत से हम भरमायें :
कुछ आदर्शों की बात करें |
“जीवन गम व खुशी दोनों है,
बात नहीं यदि कुछ बन पाए:
कुछ भजन ध्यान की बात करें |”
---------- ‘उनकी महफ़िल से’ नज़्म की दो पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं ---
“अब न हम उठ पायंगे उनकी महफ़िल से,
बुलाया जब उसी ने हसरते दिल से | “
-------आज़ाद नज्में खंड की एक नज़्म ‘प्यार है’ में प्यार की महत्ता पर अपनी बात व्यक्त करते हुए वे कहते हैं.....
“हमें तो प्यार से प्यार है,
प्यार के अहसास से प्यार है,
प्यार के नाम से प्यार है :
प्यार को सीने में लिए,
मर सकें तो, हमें-
उस प्यारी मौत से प्यार है |”
---------रुबाइयाँ खंड में एक रुबाई ‘दिन’ शीर्षक से देखें.....
“सो गया थक कर के दिन
रात के आगोश में,
जैसे इक नटखट सा बच्चा
सोता माँ की गोद में |”
--------- इसीप्रकार ‘ईश्वर ‘ शीर्षक से ईश्वर की सत्ता दर्शाते हुए एक कतआ देखिये----
“वे कहते हैं ईश्वर कहीं नहीं है,
कभी किसी ने कहीं देखा नहीं है |
मैंने कहा ज़र्रे ज़र्रे में है काविज ,
बस खोजने में ही कमी कहीं है ||”
-----------आज़ाद शे’र खंड से दो शे’र प्रस्तुत हैं---
“ हम तो बरवाद हुए हैं ज़माने के लिए
तुमने क्यों मेरी खातिर ये इलज़ाम लिया |
मेरी मोहब्बत के चराग कहीं और जल,
इतना अन्धेरा है यहाँ तू खुद पे शरमायेगा |”
---------- इस प्रकार यह काव्य संग्रह ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ शायरी के क्षेत्र में एक मील-स्तम्भ का कार्य करेगा, ऐसा मेरा मानना है | मेरा यह भी मत है कि शायरी के क्षेत्र में नए रचनाकारों को यह संग्रह प्रेरणादायक सिद्ध होगा |
---------- कृति की भाषा हिन्दी-उर्दू मिश्रित है | देवनागरी लिपि में लिखा गया यह संग्रह अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर अपनी पहचान बनाएगा | शैली बोधगम्य है, इसे समझने के लिए शब्द-कोष की आवश्यकता नहीं है और यही डा श्यामगुप्त जी के लेखन की निजी विशेषता है |
-----------बहुत से शायर अरबी-फारसी के कठिन शब्दों का प्रयोग करके अपनी रचना को आम पाठकों से दूर कर देते हैं परन्तु डा श्यामगुप्त की शायरी में यह दुरूहता कहीं भी परिलक्षित नहें होती | सभी रचनाएँ प्रसाद गुण से युक्त हैं | अलंकारों का प्रयोग भी देखने को मिलता है, जिसमें अनुप्रास अलंकार का प्रयोग बहुतायत से हुआ है |
--------- साहित्य की हर विधा पद्य व गद्य में निष्णात महाकवि डा श्यामगुप्त ने अगीत काव्य-विधा में भी महाकाव्य व खंडकाव्य का प्रणयन करके देश से बाहर विदेशों तक में अपनी पहचान बनाई है| भविष्य में वे और अधिक कृतियों का प्रणयन करके माँ भारती के भंडार को भरने में अवश्य ही सक्षम होंगे |
--------- डा श्यामगुप्त ने यह शायरी संग्रह अपनी प्रेरणास्रोत वरिष्ठ कवयित्री व धर्मपत्नी श्रीमती सुषमा गुप्ता जी को समर्पित करके उनके प्रति अपनी आस्था प्रकट की है| आपके लेखन में आपके पुत्र, पुत्रवधू, बेटी, जामाता तथा उनके बड़े भाई आदि का भी प्रोत्साहन समय समय पर मिलता रहता है | “वादे वादे जायते” तत्व बोध: के परिवेश में मैं इस शायरी संग्रह का स्वागत करता हूँ |
शुभकामनाओं सहित |
डा रंग नाथ मिश्र ‘सत्य’ एम् ए,पीएचडी,सा.रत्न
संस्थापक/अध्यक्ष
अ.भा.अगीत परिषद्,लखनऊ – १७
अगीतायन,
ई-३८८५,राजाजीपुरम, लखनऊ -१७
डू भा,-०५२२-२४१४८१७ , मो-९३३५९९०४३५ .
दि. १५-४-२०१४ ई
------ प्रस्तावना ------
( ड़ा रंगनाथ मिश्र 'सत्य ')
------------ जीवन और जगत को एक साथ जीने वाले महाकवि डा श्यामगुप्त हिन्दी के वरिष्ठ कवि व लेखक हैं | आपकी अब तक नौ साहित्यिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं — काव्यदूत, काव्य निर्झरिणी, काव्यमुक्तामृत ( सभी काव्य संग्रह )...सृष्टि –अगीत विधा पर आधारित वैज्ञानिक महाकाव्य....प्रेम काव्य – गीति विधा पर आधारित महाकाव्य ...शूर्पणखा – अगीत विधा खंड काव्य ...इन्द्रधनुष –स्त्री-पुरुष विमर्श पर उपन्यास...अगीत साहित्य दर्पण – अगीत विधा का आदि से अब तक इतिहास एवं छंद विधान तथा डा श्याम गुप्त व श्रीमती सुषमागुप्ता द्वारा रचित-–ब्रजभाषा में विभिन्न काव्य विधाओं की रचनाओं का संग्रह ‘ब्रज बांसुरी ‘ | ये सभी कृतियाँ लोकार्पित होकर सुधी पाठकों एवं बुद्धिजीवियों के मध्य प्रशंसित हो चुकी हैं| प्रस्तुत दसवीं कृति ‘कुछ शायरी की बात होजाए ‘ शीर्षक से विविध विधाओं- ग़ज़ल, नज़्म, रुबाई, कतए, शे’र आदि का संग्रह, देवनागरी लिपि हिन्दी में प्रकाशित होकर शीघ्र ही साहित्यानुरागियों के समक्ष प्रस्तुत होने जा रही है |
--------उर्दू शायरी के दो स्कूल प्रसिद्ध हैं– १.लखनऊ स्कूल की शायरी ...२.दिल्ली स्कूल की शायरी | हैदराबाद की उर्दू शायरी अलग है | उर्दू की स्वयं की कोई लिपि नहीं है, यह अरबी-फारसी लिपि में लिखी जाती है जो अंग्रेज़ी की तरह ही विदेशी लिपि है | राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिन्दी भाषा को मान्यता दी, जिसमें देवनागरी लिपि का प्रयोग होता है, साथ ही बोलचाल के उर्दू शब्द भी प्रयोग किये जाते हैं, जिस प्रकार अंग्रेज़ी शब्द हिन्दी लेखन में आत्मसात किये गए हैं|
---------- महाकवि डा श्यामगुप्त आगरा जनपद में जन्मे हैं, जो दिल्ली के निकट है | हम कह सकते हैं कि कविवर गुप्तजी की शायरी लखनऊ व दिल्ली दोनों स्कूलों से प्रभावित है | लखनऊ स्कूल की शायरी की छाप उनकी शायरी में विशेष रूप से देखने को मिलती है | इस स्कूल में सैकड़ों शायर जुड़े हुए हैं यथा -शायर आलीबासी, कृष्णबिहारी ‘नूर’, दिल लखनवी, खुमार बाराबंकवी, डा सागर आज़मी, आफताब लखनवी, साहिर लखनवी आदि | वर्तमान के शायर प्रो.मलिकजादा मंज़ूर अहमद, वशीर फारुखी, डा सुल्तान शाकिर हाशमी, मुनब्बर राना, के के सिंह मयंक आदि के नाम लिए जा सकते हैं| हिन्दी कवियों बलबीर सिंह ‘रंग’, दुष्यंत कुमार ,राम बहादुर सिंह भदौरिया आदि द्वारा भी भारी संख्या में हिन्दी गज़लें लिखी गयी हैं | आज भी गंगारत्न पाण्डे, नवीन शुक्ल ‘नवीन’, देवकी नंदन शांत, पार्थोसेन आदि सेकड़ों रचनाकार देवनागरी लिपि में गज़लें, शेर आदि लिख रहे हैं|
------- डा श्याम गुप्त ने ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ शायरी संग्रह को छह भागों में विभक्त किया है | जो इस प्रकार हैं---१,गज़लें...२.नज्में...३.आज़ाद नज्में...४. रुबाइयां...५. कतए..६.आज़ाद शे’र ..|
------- जैसी कि परम्परा है कि कवि सदा गणेश-वन्दना या सरस्वती-वंदना से अपने काव्य-संग्रह की शुरूआत करता है| डा श्यामगुप्त के इससे पहले जितने भी संग्रह व काव्य प्रकाशित हुए है उनमें इस बात का ध्यान रखा गया है| प्रस्तुत शायरी संग्रह में महाकवि ने अपनी पहली ग़ज़ल द्वारा ‘परमसत्ता’ को नमन किया है, देखें ....
बड़े बड़ों के ढीले सुर-तेवर होजाते हैं |
क्या तिनका क्या गर्वोन्नत गिरि नत होजाते हैं |
जिसके आगे बड़े बड़ों की अकड नहीं चल पाए,
श्याम, परमसत्ता के आगे शीश झुकाते हैं |
---------- संग्रह की सभी गज़लें सामाजिक सरोकारों से जुडी हुईं हैं | इन ग़ज़लों में पाठकों को वह सभी कुछ मिलेगा जो उन्हें एक सच्चे लेखक से उम्मीद होती है | ‘दास्ताँ तो सुनायेंगे’ ग़ज़ल में शायर मुहब्बत को निभाने की बात कहता है ---
“ जग कुछ भी कहे दास्ताँ तो सुनायेंगे,
साथ मोहब्बत का निभाते ही जायेंगे |”
----------कविवर डा श्यामगुप्त पर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टेगोर के साहित्य का प्रभाव परिलक्षित होता है | टेगोर ने कहा था जब कोइ साथ न दे तो..’एकला चलो रे’ | यही बात डा श्यामगुप्त ने ‘दुष्कर राहों’ में कही है....
“कहने को तैयार थे मरहम लिए,
हम यूंही बस दर्द अपने सह गए |
साथ कोई दे भला या नहीं दे ,
श्याम अपने राह चलते हम गए |”
--------- कवि डा श्यामगुप्त अध्यात्म से जुड़े हुए हैं | ‘बात करें’ शीर्षक त्रिपदा अगीत ग़ज़ल में वे कहते हैं.....
“ शीश झुकाएं क्यों पश्चिम को,
क्यों अतीत से हम भरमायें :
कुछ आदर्शों की बात करें |
“जीवन गम व खुशी दोनों है,
बात नहीं यदि कुछ बन पाए:
कुछ भजन ध्यान की बात करें |”
---------- ‘उनकी महफ़िल से’ नज़्म की दो पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं ---
“अब न हम उठ पायंगे उनकी महफ़िल से,
बुलाया जब उसी ने हसरते दिल से | “
-------आज़ाद नज्में खंड की एक नज़्म ‘प्यार है’ में प्यार की महत्ता पर अपनी बात व्यक्त करते हुए वे कहते हैं.....
“हमें तो प्यार से प्यार है,
प्यार के अहसास से प्यार है,
प्यार के नाम से प्यार है :
प्यार को सीने में लिए,
मर सकें तो, हमें-
उस प्यारी मौत से प्यार है |”
---------रुबाइयाँ खंड में एक रुबाई ‘दिन’ शीर्षक से देखें.....
“सो गया थक कर के दिन
रात के आगोश में,
जैसे इक नटखट सा बच्चा
सोता माँ की गोद में |”
--------- इसीप्रकार ‘ईश्वर ‘ शीर्षक से ईश्वर की सत्ता दर्शाते हुए एक कतआ देखिये----
“वे कहते हैं ईश्वर कहीं नहीं है,
कभी किसी ने कहीं देखा नहीं है |
मैंने कहा ज़र्रे ज़र्रे में है काविज ,
बस खोजने में ही कमी कहीं है ||”
-----------आज़ाद शे’र खंड से दो शे’र प्रस्तुत हैं---
“ हम तो बरवाद हुए हैं ज़माने के लिए
तुमने क्यों मेरी खातिर ये इलज़ाम लिया |
मेरी मोहब्बत के चराग कहीं और जल,
इतना अन्धेरा है यहाँ तू खुद पे शरमायेगा |”
---------- इस प्रकार यह काव्य संग्रह ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ शायरी के क्षेत्र में एक मील-स्तम्भ का कार्य करेगा, ऐसा मेरा मानना है | मेरा यह भी मत है कि शायरी के क्षेत्र में नए रचनाकारों को यह संग्रह प्रेरणादायक सिद्ध होगा |
---------- कृति की भाषा हिन्दी-उर्दू मिश्रित है | देवनागरी लिपि में लिखा गया यह संग्रह अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर अपनी पहचान बनाएगा | शैली बोधगम्य है, इसे समझने के लिए शब्द-कोष की आवश्यकता नहीं है और यही डा श्यामगुप्त जी के लेखन की निजी विशेषता है |
-----------बहुत से शायर अरबी-फारसी के कठिन शब्दों का प्रयोग करके अपनी रचना को आम पाठकों से दूर कर देते हैं परन्तु डा श्यामगुप्त की शायरी में यह दुरूहता कहीं भी परिलक्षित नहें होती | सभी रचनाएँ प्रसाद गुण से युक्त हैं | अलंकारों का प्रयोग भी देखने को मिलता है, जिसमें अनुप्रास अलंकार का प्रयोग बहुतायत से हुआ है |
--------- साहित्य की हर विधा पद्य व गद्य में निष्णात महाकवि डा श्यामगुप्त ने अगीत काव्य-विधा में भी महाकाव्य व खंडकाव्य का प्रणयन करके देश से बाहर विदेशों तक में अपनी पहचान बनाई है| भविष्य में वे और अधिक कृतियों का प्रणयन करके माँ भारती के भंडार को भरने में अवश्य ही सक्षम होंगे |
--------- डा श्यामगुप्त ने यह शायरी संग्रह अपनी प्रेरणास्रोत वरिष्ठ कवयित्री व धर्मपत्नी श्रीमती सुषमा गुप्ता जी को समर्पित करके उनके प्रति अपनी आस्था प्रकट की है| आपके लेखन में आपके पुत्र, पुत्रवधू, बेटी, जामाता तथा उनके बड़े भाई आदि का भी प्रोत्साहन समय समय पर मिलता रहता है | “वादे वादे जायते” तत्व बोध: के परिवेश में मैं इस शायरी संग्रह का स्वागत करता हूँ |
शुभकामनाओं सहित |
डा रंग नाथ मिश्र ‘सत्य’ एम् ए,पीएचडी,सा.रत्न
संस्थापक/अध्यक्ष
अ.भा.अगीत परिषद्,लखनऊ – १७
अगीतायन,
ई-३८८५,राजाजीपुरम, लखनऊ -१७
डू भा,-०५२२-२४१४८१७ , मो-९३३५९९०४३५ .
दि. १५-४-२०१४ ई
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