कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
मेरी सद्य प्रकाशित पुस्तक' ---कुछ शायरी की बात होजाए '----
उनके अनुसार साहित्य की प्रत्येक विधा
पर अधिकार होना एवं नए-नए प्रयोग व
स्थापनाओं से सम्बद्ध होना एक संपूर्ण साहित्यकार का गुण है| आपने स्वयं कई नवीन
तुकांत व अतुकांत छंदों की सर्जना की है एवं वे अतुकांत कविता की एक विशिष्ट शाखा,
अगीत-विधा, के भी पूर्ण समर्थक हैं जिसे अधिकांश सामान्य रूढ़िवादी
साहित्यकार अछूत समझते रहे हैं| जिसका छंद–विधान ‘अगीत साहित्य दर्पण’ भी
आपने लिखा है|
मेरी सद्य प्रकाशित पुस्तक' ---कुछ शायरी की बात होजाए '----
अपनी
ही चाल ढालते हम शायरी रहे ---- श्रीमती सुषमा गुप्ता..
सदैव की भांति प्रस्तुत
कृति में भी डा श्यामगुप्त की साहित्य व कविता में रूढ़िवादिता के प्रति विद्रोही
प्रवृत्ति, नवीनता के प्रति ललक एवं नए-नए प्रयोगों की भावभूमि परिलब्ध है |
साहित्य, दर्शन, धर्म, अद्यात्म की अभिरुचि संपन्न एवं स्वतन्त्रता-संग्राम के
क्रांतिकारियों के साथी-सद्भावी रहे पिता के पुत्र होने के नाते उनमें अव्यवस्था,
असामाजिकता, रूढ़िवादिता आदि के विरुद्ध विद्रोह के स्वर सहज स्वाभाविक रूप से
विद्यमान हैं और विज्ञान के छात्र होने के नाते नवीनता व प्रगतिशीलता के विचारों व
स्थापनाओं के | वे साहित्य के मूल भाव… भाव-प्रवणता, सामाजिक-सरोकार, जन-आचरण संवर्धन
एवं प्रत्येक प्रकार की प्रगतिशीलता, नवीनता के संचरण, गति-प्रगति के हामी हैं |
कविता के मूल गुण – गेयता, लयबद्धता, प्रवाह, सहज़-सम्प्रेषणीयता के समर्थन के साथ-साथ
डा श्यामगुप्त सिर्फ छंदीय कविता, सिर्फ सनातनी छंद, गूढ़ शास्त्रीयता एवं शायरी–ग़ज़लों
में भी पुरानी रूढ़िवादिता व लीक पर ही चलते रहने के हामी नहीं हैं अपितु नवीन
प्रयोगों व स्थापनाओं को काव्य, साहित्य व समाज की उन्नति-प्रगति हेतु आवश्यक
मानते हैं जो विभिन्न समारोहों में उनके वक्तव्यों, कथनों, रचनाओं, आलेखों,
कहानियों, समीक्षाओं व अंतरजाल पर ब्लोगों पर यथातथ्य टिप्पणियों से प्रदर्शित
होता है | परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं कि साहित्य व काव्य को मूल उद्देश्यों व
गुणों से विरत कर दिया जाए, नवीनता के नाम पर मात्राओं-पंक्तियों को जोड़-तोड़ कर, विचित्र-विचित्र शब्दाडंबर, तथ्यविहीन कथ्य, विरोधाभासी कथ्य आदि को
प्रश्रय दिया जाय|
उनका
कथन है कि ---
‘साहित्य सत्यम शिवम् सुन्दर भाव होना
चाहिए,
साहित्य शुभ शुचि ज्ञान पारावार होना
चाहिए |’
‘ श्याम’ मतलब सिर्फ होना
शुद्धतावादी नहीं ,
बहती दरिया रहे पर तटबंध
होना चाहिए |’
प्रस्तुत कृति में भी उनका ये
स्वर मुखरित है | मूलतः शायरी व ग़ज़ल के कठोर नियमों व कलेवर आदि की लीक पर ही चलते
रहना उन्हें अभीष्ट नहीं | काव्य के मूल गुण- गेयता, लय. प्रवाह, भाव व
अर्थ-स्पष्टता को वे यथेष्ट मानते हैं, जब वे कहते हैं...
‘यदि चाहते हैं दिल से निकले गीत-ग़ज़ल,
तो उसे नियमों की अति से न लादा जाए |’ एवं.....
‘मतला बगैर हो ग़ज़ल हो रदीफ़ भी नहीं,
यह तो ग़ज़ल नहीं ये कोई वाकया नहीं |’
अपनी नवीनताओं, स्थापनाओं
को वे स्पष्ट करते भी हैं....
‘अपनी ही चाल ढालते ग़ज़लों को हम
रहे,
पैमाना
कोई नहीं, कोई साकिया नहीं |’
हमें स्वयं शायरी-ग़ज़लों के शिल्प आदि का
विशिष्ट ज्ञान नहीं है, हाँ गा लेते हैं अतः हमारे द्वारा ये विविध विषयक रचनाएँ समारोहों,
गोष्ठियों, मंचों पर गाई जाती रही हैं | इस प्रकार गेयता ही इन रचनाओं का मूल भाव
है जैसा लेखक ने स्वयं कहा है ...
‘लय गति हो ताल सुर सुगम, आनंदरस
बहे,
वह भी ग़ज़ल है, चाहे कोइ काफिया नहीं |’
मुझे आशा है इन्हें पढ़कर विज्ञजनों
एवं पाठकों को अवश्य आनंदरस की अनुभूति मिलेगी |
सुषमा गुप्ता
सुश्यानिदी, के-३४८.
आशियाना, लखनऊ .
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