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शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

पुस्तक मेला में अखिल भारतीय अगीत परिषद् की राष्ट्रीय गोष्ठी एवं डा श्यामगुप्त की सद्य प्रकाशित पुस्तक अगीत-त्रयी का लोकार्पण संपन्न ..डा श्याम गुप्त

                                      कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


****अखिल भारतीय अगीत परिषद् की राष्ट्रीय गोष्ठी एवं डा श्यामगुप्त की सद्य प्रकाशित पुस्तक अगीत-त्रयी का लोकार्पण संपन्न ***

                          २९-९-१६ को १४वे पुस्तक मेला, लखनऊ, मोतीमहल लान में अखिल भारतीय अगीत परिषद् के तत्वावधान में वृहद् राष्ट्रीय एवं नारी शक्ति को समर्पित काव्य गोष्ठी संपन्न हुई | समारोह में डा श्यामगुप्त की सद्य प्रकाशित पुस्तक अगीत-त्रयी का लोकार्पण एवं विवेचना की गयी | समारोह के अध्यक्ष साहित्यभूषण डा रंगनाथ सत्य मुख्य-अतिथि प्रोफ ओमप्रकाश पांडे, पूर्व अध्यक्ष संस्कृत विभाग लविवि एवं विशिष्ट अतिथि श्री सुलतान शाकिर हाशमी पूर्व सदस्य केन्द्रीय लोक सेवा आयोग, सुप्रसिद्ध उर्दू, हिन्दी व ब्रज भाषा के साहित्यकार एवं श्री रामचंद्र शुक्ल पूर्व न्यायाधीश थे |
                              दीप प्रज्वलन के पश्चात श्री कुमार तरल, साहित्यभूषण श्री देवकी नंदन शांत एवं श्रीमती सुषमा गुप्ता द्वारा वाणी वन्दना प्रस्तुत की गयी |
                              गोष्ठी का संचालन एवं मंच संचालन डा योगेश गुप्त ने किया | गोष्ठी में लगभग ६० कवियों ने अपनी विविध विषयक रचनाओं का पाठ किया | समारोह में विभिन्न कवियों को सम्मान-पत्र व प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया भी गया |
                            लोकार्पित पुस्तक अगीत-त्रयी पर अपने वक्तव्य में डा श्यामगुप्त ने कृति के लिखे जाने की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अपनी इससे पूर्व प्रकाशित पुस्तक अगीत का छंद विधान ‘अगीत साहित्य दर्पण’ जिसमें अगीत के विश्व भर में फैले कवियों, अगीत पर कृतियों, शोधों, आलेखों एवं अगीत के एतिहासिक वस्तुस्थिति एवं वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य का विस्तृत वर्णन किया गया था, साहित्य जगत को प्रस्तुत करने के पश्चात् डा रंगनाथ मिश्र सत्य एवं साहित्य जगत में यह अनुभव किया जारहा था कि इस अपूर्व कविता विधा अगीत के जो प्रमुख स्तम्भ हैं उनके बारे में भी तार-सप्तक की भांति एक कृति प्रस्तुत की जाय | उसी का प्रतिफल है प्रस्तुत कृति ‘अगीत-त्रयी’ जिसमें अगीत के संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र सत्य, उसके प्रगतिकारक पं जगतनारायण पांडे एवं उसके सर्वांगीण उन्नायक डा श्याम गुप्त के विचार, वक्तव्य , व्यक्तित्व व कृतित्व एवं अगीत ३०-३० रचनाओं को संकलित किया गया है |
                   श्रीमती सुषमा गुप्ता ने अगीत-त्रयी पर अपने वक्तव्य में कहा कि ये तीनों कवि जिनका इस कृति में उल्लेख है कविता व साहित्य की प्रत्येक विधा गीत, छंद आदि में संपन्न व समर्पित होते हुए भी इन साहित्यकारों ने हिन्दी जगत को एक नवीन विधा प्रदान की जो आज राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय क्षितिज पर अगीत विधा के नाम से जानी जाती है | इसके लिए साहित्य जगत इनका सदैव आभारी रहेगा |
                        समारोह के मुख्य अतिथि के वक्तव्य में प्रोफ ओम प्रकाश पांडे ने स्पष्ट किया कि नारी सशक्तीकरण की बात सही है परन्तु इस देश में नारी कभी भी निशक्त नहीं रही | नारी के महत्ता व सदा-सशक्तता को रेखांकित करते हुए उन्होंने गार्गी–याज्ञवल्क एवं विद्यमा आदि विदुषी नारियों के व्यक्तित्व व कृतित्व का उल्लेख किया |
                         अध्यक्षीय वक्तव्य में डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने अगीत-त्रयी पर विवेचनात्मक तथ्य प्रस्तुत करते हुए इसे साहित्य की महत्वपूर्ण कृति एवं विश्वविद्यालयों में अध्ययन के योग्य बताया |

                      अंत में डा योगेश ने सभी को धन्यवाद ज्ञापन किया |

 
 माँ का माल्यार्पण

शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

चाय पर साहित्यिक परिचर्चा’ एवं काव्य-गोष्ठी---- डा श्याम गुप्त....

                                         कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


 चाय पर साहित्यिक परिचर्चा’ एवं काव्य-गोष्ठी----

--------दिनांक १२-८-१६ शुक्रवार को जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, छंदकार आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी से व्यक्तिगत साक्षात्कार का सौभाग्य प्राप्त हुआ | लखनऊ प्रवास के दौरान वे लखनऊ के सुकवि श्री अमरनाथ जी के साथ मेरे आवास पर पधारे | सलिल जी से इंटरनेट व फेसबुक के जरिये तो अच्छी मुलाक़ात थी परन्तु आमने सामने साक्षात्कार का सुअवसर कल प्राप्त हुआ श्री अमरनाथ जी के सौजन्य से |

------ सलिल जी ने मुझे अपनी गीत-नवगीत की पुस्तक ‘काल है संक्रांति का’ भेंट की | सलिल जी ने बताया कि मेरी एक पुस्तक महाकाव्य सृष्टि उनके पास है | मैंने उन्हें अपनी पुस्तकें ‘शूर्पणखा खंडकाव्य, ‘ब्रजबांसुरी’, ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ तथा ‘अगीत साहित्य दर्पण’ भेंट की |

--------मेरे प्रश्न पर कि नवगीत वास्तव में क्या है पर यह अनौपचारिक मुलाक़ात एक संक्षिप्त - ‘चाय पर साहित्यिक परिचर्चा’ एवं काव्य-गोष्ठी में परिवर्तित होगई, जिसमें श्री संजीव वर्मा सलिल, श्री अमरनाथ, श्रीमती सुषमा गुप्ता तथा डा श्यामगुप्त ने अपने अपने विचार प्रस्तुत किये एवं काव्य पाठ किया |

------ विचार-विमर्श के दौरान सलिल जी ने बताया कि वास्तव में जो नवगीत के लिए कहा जाता है उससे वे पूर्ण रूप से सहमत नहीं हैं कि केवल व्यंजनात्मक कथ्य नवगीत का अत्यावश्यक तत्व है क्योंकि व्यंजना या लक्षणा आदि तो काव्य में स्वतः प्रवेश करती हैं आवश्यकतानुसार, उन्हें साप्रयास लाने पर कविता में अप्राकृतिक सा भाव परिलक्षित होने लगेगा | सलिल जी ने यह भी कहा कि युग की असमानताएं, विसंगतियां, द्वंद्व वर्णन ही किसी भी विधा का मूल विषय नहीं होसकता |
                   डा श्यामगुप्त ने सहमत होते हुए कहा कि निश्चय ही किसी भी विधा का एक सुनिश्चित विषय निर्धारित नहीं होसकता | डा श्यामगुप्त के कथन कि नवगीत गीत का सलाद है और एक प्रकार से गीत ही है, पर सलिल जी का कहना था कि सचमुच ही किसी भी गीत को पृथक पृथक मात्रा-खण्डों की पंक्तियों में करके रखा जाय तो नवगीत बन जाता है | छंदों व सनातन छंदों आदि पर एक विशिष्ट रूढिगतता की अनावश्यकता पर भी चर्चा हुई | सलिल जी का कथन था कि हम जो कुछ भी बोलते हैं वह छंद ही होता है |

------ सलिल जी ने हिन्दी गज़ल में उर्दू शब्दों की बहुलता की अनावश्यकता एवं उर्दू बहरों का संस्कृत-हिन्दी गणों पर ही आधारित होने पर भी चर्चा करते हुए उसे गज़ल की अपेक्षा मुक्तिका कहे जाने की बात रखी | डा श्यामगुप्त ने सभी प्रकार के काव्य की भांति शायरी व गज़ल का आदि श्रोत भी ऋग्वेद से होने की चर्चा की |


----- सलिल जी ने सूरज के विशिष्ट प्रतीक पर रचित कई कविताओं का पाठ किया –
आओ भी सूरज!
छंट गए हैं फूट के बादल
पतंगें एकता की मिलकर उडाओ
गाओ भी सूरज -
--- तथा

सूरज बबुआ
चल स्कूल ...| 


-------- श्रीमती सुषमा गुप्ता जी ने वर्षा गीत सुनाया—
आई सावन की बहार
बदरिया घिरि घिरि आवै |


------- डा श्याम गुप्त ने ब्रजभाषा का एक नवगीत सुनाया –

ना उम्मीदी ने हर मन में
अविश्वास पनपायौ |

असली ते हू सुन्दर, नकली
पुष्प होय करिवैं हैं |
लाचारी है बाजारनि में
वही बिकै करिवे हैं
| ---तथा घनाक्षरी छंद में घनाक्षरी की परिभाषा प्रस्तुत की ...

‘घनन घनन घन घन के समान करें
श्रोता को भावें करें घन जैसी गर्जना |’



चित्र में --१.परिचर्चा ---२. सलिल जी का काव्य पाठ, ...३.सुषमा गुप्ता जी का काव्य पाठ...४.डा श्याम गुप्त का नवगीत ...५.सेल्फी----डा श्याम गुप्त, संजीव वर्मा सलिल, श्रीमती सुषमा गुप्ता...श्री अमरनाथ जी ..



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गुरुवार, 4 अगस्त 2016

गुरुवासरीय गोष्ठी दि.४-८-१६ वृहस्पतिवार को संपन्न ----- डा श्याम गुप्त

                            कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


******गुरुवासरीय गोष्ठी दि.४-८-१६ वृहस्पतिवार*****

------प्रत्येक माह के प्रथम गुरूवार को होने वाली गुरुवासरीय गोष्ठी दि.४-८-१६ वृहस्पतिवार को डा श्याम गुप्त के आवास के-३४८, आशियाना, लखनऊ पर संपन्न हुई | गोष्ठी में साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य, डा श्याम गुप्त, श्री बसंत राम दीक्षित, कौशल किशोर, श्रीमती विजय लक्ष्मी महक, मंजू सिंह, अनिल किशोर शुक्ल निडर, अशोक विश्वकर्मा, गुंजन, श्रीमती सुषमा गुप्ता एवं श्री विनोद कुमार सिन्हा ने काव्यपाठ में भाग लिया |
---काव्य-गोष्ठी के प्रारम्भ से पहले अनौपचारिक वार्ता में श्री विनोद कुमार सिन्हा के उठाये विषय ‘कविता बनती है या बनाई जाती है‘ पर विवेचना की गयी, सभी उपस्थित साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किये |
------ गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए डा श्यामगुप्त ने सरस्वती वन्दना में कहा ..
" माँ लिखती तो सब कुछ तुम हो. नाम मुझे ही देदेती हो |
आप लिखातीं सारे जग से,लिखा श्याम ने कहा देती हो |..."
श्रीमती विजय लक्ष्मी महक एवं अनिल किशोर शुक्ल द्वारा भी माँ की वन्दना की गयी |
------श्री अशोक विश्वकर्मा ‘गुंजन’ के अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए कहा-
"आयेंगे याद हम तुम्हें एक बार फिरसे,
जब तेरे अपने फैसले तुझे सताने लगेंगे |"
-------अनिल किशोर शुक्ल निडर ने भारत के सपूतों को ललकारा—
‘"भारत माँ के अमर सपूतो,
आगे बढाकर आना होगा |"
------- कवयित्री श्रीमती विजय लक्ष्मी ने ज़िंदगी से शिकवा करते हुए कहा...
"काश ए ज़िंदगी ! हम भी तेरी निगाहों में चढ़े होते |
नामचीनों की कतार में हम भी खड़े होते |"
-------श्रीमती मंजू सिंह ने भोले शंकर की अभ्यर्थना करते हुए इच्छा प्रकट की----
"मेरे भोले भाले शंकर को , किसी की नज़र न लगे |’
-------- श्रीमती सुषमा गुप्ता जी ने एक सुन्दर जीवन गीत प्रस्तुत किया ---
“तुम ही मेरे अंग संग हो,तुम ही तो रस रीति रंग हो |
उपमा रूपक उत्प्रेक्षाएं भी तुझको कब पा सकती हैं |
तुम श्लेष माधुर्य ओज हो, भाव व्यंजनायें तुम ही हो |"
एवं सावन के ऋतु के अनुरंजन में ब्रजभाषा में एक मल्हार भी गीत प्रस्तुत किया...
"आई सावन की बहार,
बदरिया घिर घिर आवै | "
------- श्री कौशल किशोर ने शिवकी अर्चना करते हुए कहा-
"दुनिया में देव हज़ारों हैं महादेव की महिमा क्या कहने |
सबको प्यारे, तनुधारी भूत पिशाच भी हैं इनके |"
-------श्री विनोद कुमार सिन्हा ने सावन में प्रिय से वार्तालाप करते हुए सुन्दर गीत प्रस्तुत किया –
‘सावन को प्रिय आजाने दो ,
मधुमय नभ रस बरसेंगे |"
------- कविवर बसंत राम दीक्षित ने श्रृगार गीत प्रस्तुत करते हुए कहा—
"रूपसी बोली नयन से, देखलो भरपूर मुझको ,
और अपनी प्यास को चहक कर बुझालो |"
------ डा श्याम गुप्त ने एक कवित्त द्वारा इसे घनाक्षरी क्यों कहते हैं इस छंद की परिभाषा प्रस्तुत की....
" घनन घनन घन घन के समान करें,
श्रोता को भावें करें घन जैसी गर्जना |" .... तथा
---कुछ देव घनाक्षरी छंद प्रस्तुत किये ---
“मन बाढ़े प्रीती ऐसी तन में अगन श्याम,
साजन बजावै द्वार-खिड़की खनन खनन |’
------विवेचित विषय ‘कविता बनती है या बनाई जाती है’ को संदर्भित करते हुए डा श्याम गुप्त ने गीत प्रस्तुत किया –
“बीज कविता का सदा मन में बसा होता है,
कोइ सींचे तो ये अंकुर हरा होता है |’
---------समापन व्याख्या व विवेचना करते हुए साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने आतंकवाद पर चोट करते हुए एक प्रस्तुत किया –
सीमा पार से आते हैं आतंकी सदा,
इसलिए मित्र की मिताई में न रहिये |
तथा यादों के घन से संदर्भित करते हुए सुन्दर गीत सुनाया –
मचल रहे गरज गरज यादों के घन.....
.यादों के घन |
---- इस अवसर पर श्रीमती सुषमा गुप्ता व विजय लक्ष्मी जी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सन्दर्भ में प्रभावी व उल्लेखनीय सेवा का प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया ...
------अंत में जलपान के पश्चात डा श्यामगुप्त व श्रीमती सुषमा गुप्ता ने सभी उपस्थित विद्वानों का आभार व्यक्त किया |
Drshyam Gupta's photo.
 अनिल किशोर शुक्ल निडर का काव्यपाठ
Drshyam Gupta's photo.
सुषमा गुप्ता द्वारा प्रस्तुत एक गीत 
चित्र में ---१.श्री अनिल किशोर शुक्ल निडर का काव्यपाठ...२.सुषमा गुप्ता द्वारा प्रस्तुत एक गीत ...३.वयोवृद्ध कवि कौशल किशोर की भोले वन्दना...४.विनोद कुमार सिन्हा काव्यापाठ करते हुए ...५.बसंत राम दीक्षित का गीत....६.डा श्याम गुप्त का काव्य पाठ....७.श्रीमती विजय लक्ष्मी डा रंगनाथ मिश्र को अपनी पुस्तकें भेंट करती हुईं ....८.सुषमाजी व विजय लक्ष्मी जी का सम्मान ९. डा सत्य का काव्य पाठ ....

डा श्याम गुप्त का काव्य पाठ

श्रीमती विजय लक्ष्मी डा रंगनाथ मिश्र को अपनी पुस्तकें भेंट करती हुईंसाथ में कवि अशोक विश्वकर्मा गुंजन एवं सुषमा गुप्ता व् मंजू सिंह

.सुषमाजी व विजय लक्ष्मी जी का सम्मान

डा सत्य का काव्य पाठ ...
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कवि कौशल किशोर की भोले वन्दना
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विनोद कुमार सिन्हा काव्यापाठ करते हुए
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बसंत राम दीक्षित का गीत.

रविवार, 31 जुलाई 2016

पद्मश्री श्री के पी सक्सेना जी से पुरस्कार ग्रहण करते हुए डा.श्याम गुप्त ...

                                 कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


    २००३ में  भारतीय रेल के १५० वें स्थापना दिवस पर काव्य प्रतियोगिता में  पद्मश्री श्री के पी सक्सेना जी से प्रथम पुरस्कार ग्रहण करते हुए डा.श्याम गुप्त ...


गुरुवार, 26 मई 2016

पीर मन की ...गीत ..डा श्याम गुप्त ...

                                               कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


पीर मन की

जान लेते पीर मन की तुम अगर,
तो न भर निश्वांस झर-झर अश्रु झरते।
देख लेते जो दृगों के अश्रु कण तुम ,
तो नहीं विश्वास के साये बहकते ।



जान जाते तुम कि तुमसे प्यार कितना,
है हमें,ओर तुम पे है एतवार कितना ।
देख लेते तुम अगर इक बार मुडकर ,
खिलखिला उठतीं कली, गुन्चे महकते।

महक उठती पवन,खिलते कमल सर में,
फ़ूल उठते सुमन करते भ्रमर गुन गुन ।
गीत अनहद का गगन् गुन्जार देता ,
गूंज उठती प्रकृति में वीणा की गुन्जन ।

प्यार की कोई भी परिभाषा नहीं है ,
मन के भावों की कोई भाषा नहीं है ।
प्रीति की भाषा नयन पहिचान लेते ,
नयन नयनों से मिले सब जान लेते ।

झांक लेते तुम जो इन भीगे दृगों में,
जान जाते पीर मन की, प्यार मन का।
तो अमिट विश्वास के साये महकते,
प्यार की निश्वांस के पन्छी चहकते ॥...

---------( मेरे शीघ्र प्रकाश्य श्रृंगार गीत संग्रह -तुम तुम और तुम से ..)


शुक्रवार, 20 मई 2016

अज़नबी आज अपने शहर में हूँ मैं---डा श्याम गुप्त



                                   


अपने शहर में...

अज़नबी आज अपने शहर में हूँ मैं,
वे सभी संगी साथी कहीं खोगये |
कौन पगध्वनि मुझे खींच लाई यहाँ,
हम कदम थे वो सब अज़नबी होगये |


अजनबी सा शहर, अजनबी राहें सब,
राह के सब निशाँ जाने कब खोगये |
राह चलते मुलाकातें होती जहां,
मोड़ गलियों के सब अजनबी होगये |

साथ फुटपाथ के पुष्प की क्यारियाँ,
द्रुमदलों की सुहानी वो छाया कहाँ |
दौड़ इक्के व ताँगों की सरपट न अब,
राह के सिकता कण अजनबी होगये |

भोर की शांत बेला में बहती हुई,
ठंडी मधुरिम सुगन्धित पवन अब कहाँ |
है प्रदूषित फिजां धुंआ डीज़ल से अब,
सारे जल थल हवा अजनबी होगये |

शाम होते छतों की वो रंगीनियाँ,
सिलसिले बातों के, न्यारे किस्से कहाँ |
दौड़ते लोग सडकों पर दिखते सदा,
रिश्ते नाते सभी अजनबी होगये |

Drshyam Gupta's photo. वो यमुना का तट और बहकती हवा,
वो बहाने मुलाकातों के अब कहाँ |
चाँद की रोशनी में वो अठखेलियाँ ,
मस्तियों के वो मंज़र कहाँ खोगये |

हर तरफ धार उन्नति की है बह रही,
और प्रदूषित नदी आँख भर कह रही |
श्याम क्या ढूँढता इन किनारों पै अब ,
मेले ठेले सभी अजनबी होगये ||

शुक्रवार, 13 मई 2016

डेमोक्रेसी की जीत या मानव आचरण की हार -डा श्याम गुप्त

                                  कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



     डेमोक्रेसी की जीत या मानव आचरण की हार 


        चार शेर मिलकर एक हाथी या जन्गली भैंसे को मार गिराते

 हैं तो क्या आप इसे शेरों की शानदार विजय कहेंगे या ईश्वर की 

ना इंसाफी कहेंगे कि उसने हाथी को तीब्र नाखून सहित पंजे क्यों 

नहीं दिए | यह जंगल नियम है डेमोक्रेसी नहीं | जंगल में ऐसा ही

होता है | भोजन प्राप्ति हेतु | इस प्रक्रिया में आचरण –सत्यता का 

कोइ अर्थ नहीं होता |


          राजाओं के समय में एवं अंग्रेजों के समय में भी शेर को हांका द्वारा घेर कर लाचार अवस्था में बन्दूक से मारा जाता था और बड़ी शान से इसे शिकार कहा जाता था | यह भी जंगल क़ानून की ही भाँति था, मनुष्य का जंगल  क़ानून  |

          १३वीं शताब्दी में विश्व के सबसे प्रसिद्द, शक्तिशाली, धनाढ्य एवं सुराज वाले राज्यतंत्र विजयनगर साम्राज्य को दक्षिण भारत की छः छोटी छोटी विधर्मी रियासतों ने मिलकर धोखे से पराजित कर दिया था, एवं ६ माह तक वह विश्व प्रसिद्द राज्य व जनता लूटी जाती रही थी |

          यही आजकल होरहा है, राजनीति में  –डेमोक्रेसी के नाम पर | धुर विरोधी नीतियाँ, आचरण वाली राजनैतिक पार्टियां आपस में मिलकर, जनमत द्वारा बहुमत में आई हुई पार्टी को किसी व्यर्थ के विन्दु विशेष पर हरा देते हैं और फिर चिल्ला चिल्ला कर डेमोक्रेसी के बचने की दुहाई दी जाती है |

         अभी हाल में ही उत्तराखंड की विधान सभा का घटनाक्रम इसी प्रकार का घटनाक्रम है | यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी प्रश्न चिन्ह उठाता है | आखिर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा अवैध घोषित किये गए सदस्यों को वोटिंग से वंचित क्यों किया, जबकि राज्यपाल के आदेश की वैधता का कोर्ट से फैसला नहीं हुआ था | फ्लोर-टेस्ट से पहले इस वैधता के प्रश्न का फैसला क्यों नहीं किया गया, ताकि सदस्यों के वैधता/अवैधता एवं उनके वोट देने के अधिकार का सही उपयोग होपाता | फ्लोर टेस्ट की ऐसी क्या जल्दी थी क्या राज्य कुछ दिन और राष्ट्रपति शासन में नहीं चल सकता था, जब तक अन्य सभापति, राज्यपाल व राष्ट्रपति के आदेशों पर फैसला नहीं होजाता | 

    यह कैसी डेमोक्रेस की जीत है जहां विधान सभा के सभापति, राज्यपाल, राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट सभी के फैसले एक प्रश्नवाचक चिन्ह लिए हुए हैं| यदि यह डेमोक्रेसी की जीत है तो निश्चय ही मानव आचरण की हार है, और देश, समाज, राष्ट्र के लिए क्या आवश्यक है, यह तथाकथित डेमोक्रेसी या मानव आचरण |

रविवार, 8 मई 2016

मातृ दिवस पर -----माँ महात्म्य ....डा श्याम गुप्त....

                              कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


मातृ दिवस पर -----माँ महात्म्य ....



माँ वंदना


माँ लिखती तो सब कुछ तुम हो,
नाम मुझे ही दे देती हो |
आप लिखाती लेकिन जग को,
लिखा श्याम ने कह देती हो |


अंतस में जो भाव उठे हैं,
सब कुछ माँ तेरी संरचना |
किन्तु जगत को तुमने बताया,
यह कवि के भावों की रचना |

तेरे नर्तन से रचना में,
अलंकर रस छंद बरसते |
कहला देती जग से, कवि के-
अंतस में रस छंद सरसते |

हाथ पकड़कर माँ लिखवाया,
अक्षर अक्षर शब्द शब्द को |
शब्दों का भण्डार बताया,
माँ तुमने मुझसे निशब्द को |

मातु शारदे! वीणा पाणी !
सरस्वती, भारति, कल्याणी!
मतिदा माँ कलहंस विराजनि,
ह्रदय बसें वाणी ब्रह्माणी |

हो मयूर सा विविध रंग के,
छंद, भाव रस युत यह तन मन |
गतिमय नीर औ क्षीर विवेकी,
हंस बने माता मेरा मन |

लिखदो माँ वर रूपी मसि से,
अपनी कृपा-भक्ति इस मन में |
जब जब सुमिरूँ माँ बस जाओ,
कागज़ कलम रूप धर मन में |

ज्ञान तुम्हीं भरती रचना में,
पर अज्ञानी श्याम हे माता !
तेरी कृपा-भक्ति के कारण,
बस कवि की संज्ञा पा जाता ||




माँ -महात्म्य....


जितने भी पदनाम सात्विक, उनके पीछे मा होता है |
चाहे धर्मात्मा, महात्मा, आत्मा हो अथवा परमात्मा |

जो महान सत्कार्य जगत के, उनके पीछे माँ होती है |
चाहे हो वह माँ कौशल्या, जीजाबाई या जसुमति माँ |

पूर्ण शब्द माँ ,पूर्ण ग्रन्थ माँ, शिशु वाणी का प्रथम शब्द माँ |
जीवन की हर एक सफलता, की पहली सीढी होती माँ |

माँ अनुपम है वह असीम है, क्षमा दया श्रृद्धा का सागर |
कभी नहीं रीती होपाती, माँ की ममता रूपी गागर |

माँ मानव की प्रथम गुरू है,सभी सृजन का मूलतंत्र माँ |
विस्मृत ब्रह्मा की स्फुरणा, वाणी रूपी मूलमन्त्र माँ |

सीमित तुच्छ बुद्धि यह कैसे, कर पाए माँ का गुणगान |
श्याम करें पद वंदन, माँ ही करती वाणी बुद्धि प्रदान ||


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मंगलवार, 22 मार्च 2016

कैसे रंगे बनवारी---डा श्याम गुप्त ...

                             कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



कैसे रंगे बनवारी




सोचि सोचि राधे हारी, कैसे रंगे बनवारी
कोऊ तौ न रंग चढ़े, नीले अंग वारे हैं |
बैजनी बैजन्तीमाल, पीत पट कटि डारि,
ओठ लाल लाल, श्याम, नैन रतनारे हैं |
हरे बांस वंशी हाथ, हाथन भरे गुलाल,
प्रेम रंग सनौ कान्ह, केस कजरारे हैं |
केसर अबीर रोली, रच्यो है विशाल भाल,
रंग रंगीलो तापै मोर-मुकुट धारे हैं ||

चाहे कोऊ रंग डारौ, चढिहै न लालजू पै,
क्यों न चढ़े रंग, लाल, राधा रंग हारौ है |
राधे कहो नील-तनु, चाहें श्यामघन सखि,
तन कौ है कारौ पर, मन कौ न कारौ है |
जन कौ दुलारौ कहौ, सखियन प्यारौ कहौ ,
तन कौ रंगीलौ कहौ, मन उजियारौ है |
एरी सखि! जियरा के प्रीति रंग ढारि देउ,
श्याम रंग न्यारो चढ़े, सांवरो नियारो है ||