कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
आर्यावर्त का प्रथम संघर्ष और यवन, मलेच्छ अनार्यों व दस्यु जातियों का उद्भव ---
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देवासुर संग्रामों की समाप्ति पर, बलि-बामन संधि द्वारा असुरों के
पाताल गमन पर भरतखंड में उत्तर व दक्षिण के उन्नत मानवों के महासमन्वय (
शिव--इंद्र -विष्णु ) के उपरांत स्थापित वैदिक संस्कृति-सभ्यता का उदय
हुआ, जो अपने मानवीयता जन आचरण, शौर्य, ज्ञान-विज्ञान, सामाजिकता,
व्यवहारिकता, धर्म, अध्यात्म, दर्शन के उच्चतम स्वरुप के कारण मानव सभ्यता
की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति हुई |
------- यही लोग स्वयं को आर्य अर्थात
श्रेष्ठजन कहने लगे एवं ‘कृण्वन्तो विश्वं आर्यम..’ के घोष के साथ विश्व भर
में फैलते गए | जम्बू द्वीप, भरतखंड, भारतवर्ष, ब्रह्मावर्त, आर्यावर्त
इन्ही लोगों ने बसाए |
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बुराई सदैव ही रूप-भाव बदल बदल कर
समाज को विश्रन्खलित करने का प्रयत्न करती रहती है | राम से समय से ही
वैदिक –संस्कृति के विरोध की धाराएं प्रतिबिम्वित होने लगी थीं, यथा जाबालि
का नास्तिकवाद | इसी क्रम में अनैतिक कृतित्वों का समर्थन एवं वैदिक
संस्कृति का विरोध करने वाले लोग अनार्य या दस्यु कहलाये जाने लगे |
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इस प्रकार वैदिक काल में भारतीय सभ्यता का विस्तार दुनिया के सभी
देशों में था जिसे जम्बूद्वीप कहा जाता है | लोग विभिन्न जातियों,
जनजातियों व कबीलों में बंटे थे। उनके प्रमुख राजा कहलाते थे, बीतते समय के
साथ-साथ उनमें अपनी सभ्यता व राज्य विस्तार की भावना बढ़ी और उन्होंने
युद्ध और मित्रता के माध्यम से खुद का चतुर्दिक विस्तार का प्रयास किया।
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और इस क्रम में कई जातियां, जनजातियां और कबीलों का लोप सा हो गया। एक नई
सभ्यताओं और संस्कृतिओं का उदय हुआ। भरतखंड, भारतवर्ष, ब्रह्मावर्त,
आर्यावर्त आदि बसते गए | सूर्यवंश , चन्द्रवंश, महाराजा पृथु, भारत,
इक्ष्वाकु, ययाति आदि के वंशज जम्बू द्वीप, भरतखंड भारतवर्ष , आर्यावर्त
आदि नाम से विभिन्न क्षेत्रों में राज्य करते रहे |
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राम-वशिष्ठ काल वर्णन के अनुसार उस काल में भारतवर्ष में रामवंशी लव, कुश,
बृहद्वल, निमिवंशी शुनक और ययाति वंशी यदु, अनु, पुरु, दुह्यु, तुर्वसु का
भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों में राज्य था|
------यही काल मूलतः आर्य काल कहलाता है, इसी काल में भारतवर्ष को आर्यावर्त नाम दिया गया |
-------आर्यों के काल में जिन वंश का सबसे ज्यादा विकास हुआ, वे हैं- यदु, तुर्वसु, द्रुहु, पुरु और अनु।
-------उक्त पांचों से विभिन्न राजवंशों --यदु से यादव, तुर्वसु से यवन,
द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव का निर्माण हुआ। जो पुनः
पृथ्वी के विभिन्न भागों में फ़ैले | इनके काल को ही आर्यों का काल कहा
जाता है। l
प्रथम आर्य संघर्ष --
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ऋग्वेद से पता चलता है कि हरियूपिया नामक स्थान पर याब्यावती नदी ( हरहवती,
हव्यवती, सरस्वती ) के तट पर तुर्वश और बीचवृन्त तथा श्रृजंयो के बीच
संघर्ष हुआ। हरियूपिया की पहचान हड़प्पा से की जाती है। इस युद्ध में
श्रृंजयों की विजय हुई यही संघर्ष आगे बढ़कर दसराज्ञ युद्ध में बदल गया।
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इस क्रम में भारतीय उपमहाद्वीप का पहला दूरगामी असर डालने वाला युद्ध
बना दसराज्ञयुद्ध इस युद्ध ने न सिर्फ आर्यावर्त को बड़ी शक्ति के रूप में
स्थापित कर दिया बल्कि राजतंत्र के पोषक महर्षि वशिष्ट की लोकतंत्र के
पोषक महर्षि विश्वामित्र पर श्रेष्ठता भी साबित कर दी।
------- उस
काल में राजनीतिक व्यवस्था गणतांत्रिक समुदाय से परिवर्तित होकर राजाओं पर
केंद्रित होती जारही थी। दाशराज्ञ युद्ध में भरत कबीला राजा प्रथा आधारित
था जबकि उनके विरोध में खड़े कबीले लगभग सभी लोकतांत्रिक थे|
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दसराज्ञ युद्ध -
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अधिकाँश हम राम–रावण एवं महाभारत के युद्धों की विभीषिका से ही परिचित
हैं, परन्तु इस बात से अनभिज्ञ हैं कि राम-रावण युद्ध से भी पूर्व संभवतः
7200 ईसा पूर्व त्रेतायुग के अंत में एक महायुद्ध हुआ था जिसे दशराज युद्ध
(दाशराज्ञ युद्ध ) के नाम से जाना जाता है।
---- ( यद्यपि राम के काल
में यवनों, म्लेक्षों, यादवों, भोज आदि का वर्णन नहीं है, महाभारत काल में
है अतः निश्चय ही यह युद्ध राम-रावण युद्ध के पश्चात हुआ होगा )
-------यह आर्यावर्त का सर्वप्रथम भीषण युद्ध था जो आर्यावर्त क्षेत्र में
आर्यों के बीच ही हुआ था। प्रकारांतर से इस युद्ध का वर्णन दुनिया के हर
देश और वहां की संस्कृति में आज भी विद्यमान हैं। इस युद्ध के परिणाम
स्वरुप ही मानव के विभिन्न कबीले भारत एवं भारतेतर दूरस्थ क्षेत्रों में
फैले व फैलते गए |
----- एक मत के अनुसार माना जाता है कि यह
युद्ध त्रेता के अंत में राम-रावण युद्ध के 150 वर्ष बाद हुआ था। क्योंकि
हिन्दू काल वर्णन में चौथा काल : राम-वशिष्ठ काल वर्णन के अनुसार रामवंशी
लव, कुश, बृहद्वल, निमिवंशी शुनक और ययाति वंशी यदु, अनु, पुरु, दुह्यु,
तुर्वसु का राज्य महाभारतकाल तक चला और फिर हुई महाभारत।
------दासराज युद्ध को एक दुर्भाग्यशाली घटना कहा गया है। इस युद्ध में
इंद्र और वशिष्ट की संयुक्त सेना के हाथों विश्वामित्र की सेना को पराजय
का मुंह देखना पड़ा। दसराज युद्ध में इंद्र और उसके समर्थक विश्वामित्र का
अंत करना चाहते थे। विश्वामित्र को भूमिगत होना पड़ा। दोनों ऋषियों का
देवों और ऋषियों में सम्मान था, दोनों में धर्म और वर्चस्व की लड़ाई थी।
------ इस लड़ाई में वशिष्ठ के 100 पुत्रों का वध हुआ। फिर डर से
विश्वामित्र के 50 पुत्र तालजंघों (हैहयों) की शरण में जाकर उनमें मिलकर
म्लेच्छ हो गए। तब हार मानकर विश्वामित्र वशिष्ठ के शरणागत हुए और वशिष्ठ
ने उन्हें क्षमादान दिया। वशिष्ठ ने श्राद्धदेव मनु (वैवस्वत) 6379 वि.पू.
को परामर्श देकर उनका राज्य उनके पुत्रों को बंटवाकर दिलाया।
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दासराज्ञ युद्ध ---- परुष्णी (रावी) नदी के किनारे हुआ जिसका उल्लेख
ऋग्वेद के सातवें मण्डल में है | भरत वंश (त्रित्सु वंश) के राजा सुदास के
पुरोहित विश्वामित्र थे सुदास ने विश्वामित्र की जगह वशिष्ठ को अपना
पुरोहित बना लिया, फलस्वरूप विश्वामित्र ने दस जनों को इकठ्ठा कर सुदास के
विरूद्ध युद्ध कर दिया परन्तु विजय सुदास को ही मिली इस दस-जनों में पंच जन
का नाम विशेष रूप से उल्लेख है-पुरु, यदु, अनु द्रुहा तुर्वश तथा अन्य में
अलिन, पक्थ भलानस, विषाणी, शिव। दस राज्ञ युद्ध में दोनों तरफ से आर्य एवं
अनार्यों ने भाग लिया था।
------ इस युद्ध में सुदास के भरतों की विजय हुई और उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप के आर्यावर्त पर उनका अधिकार स्थापित हो गया।
------इस देश का नाम भरतखंड एवं इस क्षेत्र को आर्यावर्त कहा जाता था |
परन्तु
*********इस युद्ध के कारण आगे चलकर पूरे देश का नाम ही आर्यावर्त की जगह
'भारत' पड़ गया तथा === यवन, ==मलेच्छ ===अनार्यों व दस्यु जातियों का
उद्भव ===हुआ जो विभिन्न कारणों से अधिकाँशतः भारत के बाहर जाकर बसते गए
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महाभारत युद्ध --
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रामचंद्र के युग के बाद – राक्षस एवं असुरों की संगठित राजनैतिक शक्ति का
पूर्ण पराभव होगया | केवल छुट-पुट स्थानों आदि पर ही उनका वर्चस्व रह गया |
यवन व म्लेक्ष अधिकाँश भारत से बाहर जाकर बस गए |
-----अतः
यादवों और पौरवों ने पुन: एक बार फिर अपने पुराने गौरव के अनुरूप आगे बढ़ना
शुरू कर दिया। मथुरा से द्वारिका तक यदुकुल फैल गए और अंधक, वृष्णि, कुकुर
और भोज उनमें मुख्य हुए। कृष्ण उनके सर्वप्रमुख प्रतिनिधि थे।
------ संवरण के कुल के कुरु ने पांचाल पर अधिकार कर लिया | कुरु के नाम
से कुरु वंश प्रसिद्ध हुआ, राजा कुरु के नाम पर ही सरस्वती नदी के निकट का
राज्य कुरुक्षेत्र कहा गया। उस के वंशज कौरव कहलाए और आगे चलकर दिल्ली के
पास इन्द्रप्रस्थ और हस्तिनापुर उनके दो प्रसिद्ध नगर हुए। ------भाई
भाइयों, कौरवों और पांडवों का विख्यात महाभारत युद्ध पुनः एक बार भारतीय
इतिहास की विनाशकारी घटना सिद्ध हुआ।