कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
शम्बूक कथा –आधुनिक सन्दर्भ में ----
================================
लिया गया | शम्बूक जाबालि का शिष्य था | राम ने उस विचार का ही अंत कर दिया |
शम्बूक कथा –आधुनिक सन्दर्भ में ----
================================
आजकल हम प्रायः एक वर्ग के जनसमुदाय से काफी समय
से यह सुनते आरहे हैं कि आरक्षण के कारण अनारक्षित वर्ग के क्षात्रों को शिक्षा,
सेवा व व्यवसाय सभी में कठिनाई हो रही है | आरक्षित श्रेणी के लोग कनिष्ठ होने एवं
कम अंक पाने पर भी सभी स्थानों पर वरीयता पा जाते हैं एवं उच्चवर्ग के लोग वरिष्ठ
होने व अधिक अंक पाने पर भी वही स्थान पाने में असफल रहते हैं | इस प्रकार समाज का
कुछ वर्ग लगातार निम्न गति को प्राप्त होता जायगा, ज्ञान, वरीयता, वरिष्ठता का मान
क्रमश घटता जायगा और सम्पूर्ण समाज ज्ञान के प्रकाश से हीन होता जायगा| समाज में
असंतोष व्याप्त होता जारहा है कि इस प्रकार सामाजिक विसंगति फैलेगी| आरक्षण
समाप्ति के लिए भी आवाजें उठने लगी हैं|
क्या आज की यह सामाजिक स्थिति रामायणकालीन शम्बूक कथा से संगति नहीं करती |
रामायण में ब्राह्मणों ने राजा राम से शिकायत की कि कहीं एक अनाधिकारी व्यक्ति
तपस्या कर रहा है अतः ब्राह्मण के पुत्र की मृत्यु हुई | राम ने जाकर शम्बूक से
कुछ प्रश्न किये एवं उत्तरों को समुचित न पाकर तत्काल उसका शिरोच्छेद कर दिया |
तात्विक
तात्पर्य है कि शम्बूक का अर्थ है घोंघा, शंख अर्थात अपने ही खोल में रहने वाला, तीब्र
गति से उन्नति में बाधक विचार व कार्य गति, यथास्थिति, लिजलिजी अति-भौतिकता जो राम
के राज्य में वेदों के मूल अध्यात्मवादी विचार ‘ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या’ के
विरुद्ध महर्षि जाबालि के भौतिकवादी विचार ‘जगत सत्यं ब्रह्म मिथ्या‘ के प्रचार प्रसार
द्वारा तात्कालिक समाज में फैलता जारहा था जो मिथ्यात्व के प्रचार की भाँति
लिया गया | शम्बूक जाबालि का शिष्य था | राम ने उस विचार का ही अंत कर दिया |
ब्राहमण
रूपी सामाजिक अनारक्षित वर्ग शिकायतें कर रहा है कि उसकी संतानों को उचित परिश्रम
के बाद भी उचित स्थान नहीं मिल रहा एवं निम्न स्थानों पर कार्य करने को मज़बूर हैं जो
कि विज्ञजनों के लिए मृत्यु के समान ही है और अनधिकारी व्यक्ति ज्ञान, व्यवहार,
सामाजिक-तत्व-भावों की विभिन्न मनमानी व्याख्याएं कर रहे हैं जो राजनैतिक,
सामाजिक, सांस्कृतिक श्रेष्ठतावर्धन के लिए समुचित नहीं है | तदनुरूप सामाजिक
असंतोष की उत्पत्ति हो रही है |
आज यहाँ एकतंत्र नहीं हैं, न कोइ राम ही है
जो तुरंत निर्णय लेकर तुरंत उचित दंड विधान से
समस्या का उचित समाधान करे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें