कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
चूल्हे चौके की खटपट में,
चूल्हे चौके की खटपट में,
गीत लवों पर खिल आता
है.....
चूल्हे चौके की खटपट में,
चूल्हे चौके की खटपट में,
समय भला कब मिल पाता है |
सब्जी कढ़ी दाल अदहन में,
गीत भला कब बन पाता है ||
तवा कडाही कलछा चिमटा,
के स्वर की रागिनी सजे नित |
दूध चाय पानी के स्वर में ,
कब संगीत उभर पाता है ||
पर मन में संगीत बसा हो,
सब कुछ संभव हो जाता है |
गुन गुन में मन-मीत बसा हो,
तो मन गीत सजा पाता है ||
चूल्हे चौके की खटरस में,
ताल बंद लय मिल जाते हैं |
थाली बेलन चकले के स्वर,
सुर और
राग बता जाते हैं ||
दाल,
झोल,
अदहन के स्वर भी ,
नाद,
अनाहत बन जाएँगे |
मन में प्रिय रागिनी बसी हो,
गीत स्वयं ही सज जायेंगे ||
गर्मा गर्म रसोई की जब,
उठती भीनी गंध सुहानी|
लगती सुन्दर काव्यभाव सी,
बन जाती इक कथा-कहानी ||
मेरे
गीतों
में जीवन की -
खुशियों की थिरकन होती है |
इन गीतों में जन जन मन के,
ह्रदय की धड़कन होती है ||
चूल्हे चौके की खट पट में,
समय कहाँ फिर मिल पाता है |
मन में प्रिय रागिनी बसी हो,
गीत लवों पर खिल आता है ||
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