कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
डा श्याम गुप्त के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश का लोकार्पण २२-०२-२०२० को हुआ |---तुरंत लौकडाउन के कारण कुछ विज्ञ लोगों तक नहीं पहुँच पा रही है अतः --यहाँ इसे क्रमिक पोस्टों में प्रस्तुत किया जाएगा | प्रस्तुत है --
पुष्प- २-आशंसायें, शुभकामनाएं व उद्गार, व काव्यांजलि ---a.विद्वानों के उदगार- श्रीमती सुषमा गुप्ता ..
कविता में तर्क---के प्रस्तोता –डा श्याम गुप्त -----सुषमागुप्ता
मन के भाव कविता रूप में निसृत होते हैंभाव प्रवणता कविता का मूल गुण है | यह भीकहा जाता है कि कविता में तर्क नहीं चलता, उसका सम्बन्ध दिल से होता है मस्तिष्कसे नहीं | परन्तु डॉ. श्याम गुप्त का कथन है कि यद्यपि दिल की भावनाएं काव्य में
प्रधान होती हैं परन्तु मस्तिष्क के बिना न तो भावनाओं की उत्पत्ति होती है न कोइभी कार्य संपन्न होता है | वैज्ञानिक दृष्टिकोण व विचार युत डॉ. गुप्त की रचनाओं में तर्क से विविध तथ्यों को सिद्धकरने की परिपाटी प्राप्त होती है | क्यों
व कहाँ एवं उनका उत्तर उनकी बहुत सी रचनाओं में दृष्टिगत होते हैं | उनके महाकाव्यसृष्टि का पूरा नाम ही है---सृष्टि---ईशत इच्छा या बिगबेंग--एक अनुत्तरित उत्तर---
... कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं ------
जग की इस अशांति क्रंदन का ,
लालचलोभ मोह बंधन का |
भ्रष्ट पतित सत्ता गठबंधन,
यह सब क्योंइस यक्ष प्रश्न का |
एक यही उत्तर सीधा सा,
भूल गया नर आज
स्वयं को || -----सृष्टिमहाकाव्य से
सृष्टि का आदि प्रश्न ईश्वर कौन व कहाँ -को वे इस प्रकार हल करते हैं --
प्रश्न यह मन में था, कौन है प्रभुकहाँ ,
मैं लगा खोजने, खोजा सारा जहां |
प्रेम के भाव में मुझको प्रभु मिलगए,
प्रश्न मन के सभी ही यूं हल होगये |
| .....प्रेम काव्य महाकाव्य ---प्रेम गली से ...
काव्य जगत के कुछ प्रसिद्ध कथ्यों-तथ्यों को वे इस प्रकार तर्क सिद्ध करते प्रतीत होते हैं ----
भ्रमर!
तुम कली कली का रस चूसते हो
क्यों?
मकरंद लोलुप बन बगिया की गली गली
घूमते हो
क्यों ?
कलियाँ हँसीं, मुस्कुराईं
प्रेम का अर्थ होता है देना ही देना,
मांगे बिना भी भ्रमर सब कुछ देता है
कलियों की सौरभ कण रूपी प्रेम पाती
को
बांटता है प्रेमी पुष्पों में ...........प्रेम काव्य महाकाव्य , भ्रमर गीत ...
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पतंगा परवाना दीवाना
क्या प्रदर्शित करता है
तुम्हारा यूं जल जाना |
दीपशिखा झिलमिलाई,खिलखिलाई ;
दुनिया वाले व्यर्थ ही शंका करते हैं
पतंगे के प्यार में ही तो हम
तिल तिल कर जलते हैं |
पतंगे की किस्मत में ये पल कहाँ आतेहैं|--प्रेम काव्य महाकाव्य---दीपक राग ....---
चकोर!तू क्यों निहारता रहता है
चाँद की ओर
वह अप्राप्य है, फिर भी क्यों साधे
है मन की डोर \
मिलकर तो सभी प्यार कर लेते हैं
जो दूर से ही रूप रस पीते हैं
वही तो अमर प्रेम जीते हैं |..........चन्दा-चकोर
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नदिया
तुम कहाँ जाती हो
दिशाहीन, उद्देश्य हीन –
नदिया मुस्कुराई
कल कल कल कल खिलखिलाई ..
यह जीवन लहरी है , कहीं उथली कहीं
गहरी है |...---सरिता संगीत
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प्रेमी प्रेमिका का वाद-विवाद
प्रेमालाप कहलाता है |
गुण दोष दिखाता है ,
दोनों को करीब लाता है |....किस्सा तोता मैना
मूर्ति पूजा को वह इसप्रकार तर्क से सिद्ध करते हैं ----
मानकर प्रभु है बसता, अखिल विश्व में
और संसार को मान कर प्रभु में हम |
एक मन भावनी निर्गुण मूरत बना,
बस मंदिर में उसको सजा देते हम |
पूजा क्या है और मंदिर क्यों जाते हैं हम ,
कोइ मूरत ही क्यों सजाते हैं हम |.......निर्गुण प्रतिमा ----प्रेम काव्य
प्रेयसि के सुन्दर मुखड़े की तुलनाचाँद से सभी करते हैं , विश्व मान्य सत्यकी भाँति परन्तु डॉ.श्याम गुप्त उसमें भी तर्क ढूंढ लेते हैं और विपरीत भाव में कहते हैं –
मैं चाँदतुझे कैसे कहदूं,
वो बदलीमें छुप जाता है |
तेरासुन्दर मुखड़ा प्रियवर ,
घूंघट कोभी दमका जाता है |-----मैं चाँद तुझे कैसे कहदूं---प्रेम काव्य महाकाव्य ..
सुनामी की घटना के कारण का वे इस प्रकार तर्क प्रस्तुत करते हैं---
सुनामीलहर क्यों आई ,
क्योंसागर भूमि थर्राई |
लगी हैबद्दुआ कोइ ,
वोइन्द्रासन हिला आई
-----सुनामी लहर क्यों आई---का.नि.
पर्यावरण के विभिन्न कारणों हेतु वे इस प्रकार प्रश्न व तर्क प्रस्तुत करते हैं----
नागरी राहें
कितनी टेडी-मेडी होगई हैं ,
कि गौरैया
घरों की राहें भूल गयी हैं| --नव अगीत ----काव्य कंकरियां
नष्ट नर भला क्यों करता है,
हरे भरे तरु वन उपवन को;
प्रकृति का सौन्दर्य भुलाकर |---त्रिपदा अगीत
श्रीकृष्ण के की विभिन्न लीलाओं को उन्होंने अपनी ब्रजभाषा कृति में विविध तर्कों दे उचित सिद्ध किया है ---चीर हरण को वे इस प्रकार तर्कसिद्ध करते हैं ----
चीरमांगि रहीं गोपियाँ करि करि बहु मनुहारि ,
पैठीं काहे नीर सब , सगरे बसन उतारि |
उचित नाहिं व्यौहार ये, नाहिं सास्त्र अनुकूल,
नंगे होय जल में घुसौ, मरजादा प्रतिकूल ||
कनकन बसिया ईश, हर जगह देखे सोई,
सोचसमुझ कर कर्म,न प्रभु ते छिपिहै कोई || ---कृष्ण लीला सुमन--चीर हरण—ब्रज बाँसुरी...
परिस्थिति व व्यवस्था को वे इस प्रकारदरोगा जी के तर्क द्वारा प्रस्तुत करते हैं ----
दरोगा जी भी पहुंचे हुए थे
घाट घाट का पानी पीकर सुलझे हुए थे; बोले-
अबे हमें फिलासफी पढ़ाता है '
चोरी करता है, और -
गलती समाज की बताता है ।
परिस्थितियों को भी तो इंसान ही बनाता है ,---का. मुक्तामृत.. परिस्थिति और व्यवस्था
दीपक क्यों जलते हैं, ताम व ज्योति की तार्किक व्यवस्था वे इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं ......
तम से ज्योति ओर चलना ही,
कर्म - व्यवस्था है जीवन की |
इसीलिये जलते हैं दीपक,
यही व्यवस्था, ज्योति व तम की ||
तिल-तिल करके जलता दीपक ,
अंधकार से लडता जाता
पैरों तले दबा कर तम को,
जीवन की राहें दिखलाता ||------तमसो मा ज्योतिर्गमय –
क्या विज्ञान ही ईश्वर है, कथा में वे कुछ तर्क प्रस्तुत करते हैं ----
“मैं अचानक ही सोचने लगता हूँ....किसने बनाई होगी प्रथम बार गाड़ी, कैसे हुआ होगा पहिये का आविष्कार! ये चक्र क्या है, तिर्यकपत्रों के मध्य वायु तेजी से गुजरती है और चक्र घूमने लगता है...वाह ! क्या ये विज्ञान का सिद्धांत नहीं है? क्या ये वैज्ञानिक आविष्कार का प्रयोग-उपयोग नहीं है? आखिर विज्ञान कहाँ नहीं है?
---लघुकथा-क्या विज्ञान ही ईश्वर है ....
प्रेम गीतों में उनका तार्किक रूप देखिये ----
कौन सा पल ढूंढ लायें ,
कौन सी धड़कन गिनूं |
कौन सी वो सांस जिसमें ,
सुधि तेरी छाई नहीं ||---तुम तुम और तुम --- कौन सा पल ढूंढ लाऊँ ...
गीत क्या होते हैं , एक तार्किक प्रस्तुति प्रस्तुत है ---
गीत भला क्या होते हैं
बस एक कहानी है |
मन के सुख दुःख
अनुबंधों की,
कथा सुहानी है |
भीगे मन से
सच्चे मन की
कथा सुनानी है |-------तुम तुम और तुम ...
वे इस तर्क सिद्धि में अति-कठोरआलोचना से भी नहीं चूकते, और साहित्य जगत में कठोर आलोचक के नाम से सुप्रसिद्ध हैं | आज के समाज की एक बहुत विशद ‘क्यों’ को डा श्याम गुप्त इस प्रकारकठोर रूप में प्रस्तुत करते हैं----
क्यों
आज हर जगह है ,
स्त्री उत्प्रीणन
जलादेना अग्नि-काण्ड में या
एसिड अटैक से |
यौन हिंसा, अत्याचार, अनाचार
ह्त्या व वलात्कार |
क्यों.....?
क्योंकि तुमने
स्वयं अपना मान नहीं रखा |
चल पडीं तुम,
स्वच्छंदता की राहपर
जहां फैशन, देह दर्शन
स्वच्छंद उड़ना ही
ध्येय होगया तुम्हारा |----क्यों ..........तथा
गर्भपात,
वधु उत्प्रीणन,कन्या अशिक्षा,
दहेज़ ह्त्या,बलात्कार,नारी
शोषण से-
मानव ने किया है कलंकित -
अपने पिता को,ईश्वर को , और--
करके व्याख्यायित आधुनिक विज्ञान,
कहता है अपने को सर्व शक्तिमान ,
करता है ईश्वर को बदनाम || ------पिता
कविता के सत्य की एक कठोर प्रस्तुति देखें ---
गूढ़ शब्दपर्याय बहु , अलंकार भरमार ,
ज्योंगदही पर झूल हो ,रत्न जडित गल हार|......कविताई का सत्य---का.निर्झरिणी
एवं ---तोड़ फोड़ करने वालों को वे लताड़ते हैं ---
लेकिनपहले यह तो सोचो
नया बना सकतेहो? सोचो |
बना सकोयदि ,तो फिर तोड़ो ,
तोड़ो तोड़ोसब कुछ तोड़ो |.......काव्य निर्झरिणी --तोड़ो तोड़ो ...
दोहे व शेर में तार्किक दृष्टि व आलोचना के तेवर देखिये----
घर को सेवे सेविका , पत्नी सेवे अन्य |
छुट्टी लें तब मिलि सकें, सो पति-पत्नी धन्य ||
गलीसड़क चौराहे के गड्ढे भर नहीं पाए हैं
चाँदपर घर बसाने के ख़्वाब लाये हैं |
आपके नवगीतों में आलोचक दृष्टि देखें ----
अब तो भोगप्रभु का पाकर
भक्तरुग्ण होजाते |
धैर्य औरश्रृद्धा, तृष्णा के =
झुरमुटमें खोजाते |
बाज़ारों ने सौदा करने का
निज धर्म निभाया ||
चौकीदारचोर बन बैठे
जनता कीतकदीर |
जन जन है लाचार,
चोर-बन बैठेआज वजीर |
विश्वासों में घटाटोप
अंधियारा सा छाया ||
इस प्रकार काव्य में तर्क की एकपरिपाटी का प्रारम्भ एक नवीन व अनूठी भाव-प्रस्तुति है जो डॉ. श्याम गुप्त के साहित्य में प्रचुर रूप में मिलती है | होसकता है यह परम्परा आगे भी अनुसरित की जाय |
एम् ए हिन्दी , ब्रजभाषा विभूषण
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