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गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

डा श्याम गुप्त का हीरक जयन्ती वर्ष अभिनन्दन ग्रन्थ --अमृत कलश ---पुष्प- २- ---a.विद्वानों के उदगार-- विविध विद्वानों के विचार ---- .....


   कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

डा श्याम गुप्त 
                                   

                                       

डा श्याम गुप्त के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश का लोकार्पण २२-०२-२०२० को हुआ |---तुरंत लौकडाउन के कारण कुछ विज्ञ लोगों तक नहीं पहुँच पा रही है अतः --यहाँ इसे क्रमिक पोस्टों में प्रस्तुत किया जाएगा | प्रस्तुत है --
पुष्प- २-आशंसायें, शुभकामनाएं व उद्गार, व काव्यांजलि ---a.विद्वानों के उदगार-

डा श्याम गुप्त के बारे में विविध  विद्वानों के विचार ----



डा श्यामगुप्त के कृतित्व के बारे में कुछ विद्वानों के विचार ----

१.मैं कविवर डा.श्यामगुप्त को ऐसी सुन्दर और सुसंस्कार प्रदायक महाकाव्य लेखन हेतु हार्दिक बधाई देता हूँ | 
                 --- सृष्टि महाकाव्य में क्रांतिकारी पत्रकार -साहित्यकार पद्मश्री पं.बचनेश त्रिपाठी ..

२.डा श्याम गुप्त ने शूर्पणखा काव्यकृति में खंडकाव्य के शास्त्रीय लक्षणों का पालन कर अपनी प्रबंध पटुता प्रदर्शित की है| नायिका व कथावस्तु के चयन में कवि ने विवेक से कार्य लिया है |
   --शूर्पणखा खंडकाव्य के भूमिका में डा विनोद चन्द्र पाण्डे विनोद पूर्व निदेशक उप्र हिन्दी संस्थान.लखनऊ


 ३.उन्होंने अपने उत्कृष्ट काव्य का विषय ‘प्रेम’ चयन किया है और पात्र विहीन सृजन का माप दंड स्थापित किया है | जो संभवतः अभी तक अपने ढंग का एक ही है | एसे काव्य के लिए अभी तक हिन्दी साहित्य में कोइ पूर्व निर्धारित मानक् स्थापित प्रतीत नहीं होते है | हो सकता है भविष्य में इस काव्य-कृति के आधार पर ही इस प्रकार के काव्यों के मानदंड स्थापित किये जायं |         ---प्रेम काव्य में, दिवाकर पाण्डेय, पत्रकार-साहित्यकार हैदरावाद |


.डा श्यामगुप्त द्वारा प्रणीत प्रेमकाव्य एक एसी अभिनव कृति है जिसमें प्रेम के विविध भाव रूपों को विषद एवं गहनतम अभिव्यक्ति मिली है |...इस कृति में प्रेम की गूढ़ स्थितियों का विवेचन हुआ है जिसका कारण है रचनाकार का तत्वबोध | डा गुप्त ने उपनिषदों, गीता, पुरानों में वर्णित ज्ञान-रहस्य को सत्संग और स्वाध्याय से निरहंकार रूप में आत्मसात किया है |
      --- प्रेम काव्य की शुभाशंसा में श्री हरिशंकर मिश्र प्रोफ.हिन्दी विभाग, लविवि, लखनऊ


५.डा गुप्त का यह काव्य सांसारियों और योगीयती, प्रेमानुरागियों सभी के लिए मन्त्र सदृश्य है | सांसारिक –आनंद,शान्ति और सुख का सार है | मोक्ष का आधार है |
       --डा सरला शुक्ल, पूर्व अध्यक्ष लविवि, लखनऊ, प्रेमकाव्य, महाकाव्य की भूमिका में ..|


६.मन के कटु यथार्थ को स्पर्श करती ये गज़लें समकालीन सन्दर्भों को भी बड़ी बारीकी से व्यंजित करती नज़र आयीं ...इस गज़ल संग्रह में देश और समाज के लिए पीड़ा का सागर एवं प्रणय की संवेदनाओं का सफल चित्रण साफ़-शफ्फाफ नज़र आता है और जीवन –जगत की प्रौढ़ अनुभूतियों की प्रामाणिक अभिव्यक्ति विशेष रूप से नज़र आती है |इन ग़ज़लों को पढ़ते पढ़ते भाषा की सरलता और दिल मोह लेने वाले शब्दों में डूब जाने का मन होता है|
---कुछ शायरी की बात होजाए..में डा सुलतान शाकिर हाशमी पूर्व सलाहकार, केन्द्रीय योजना आयोग |


७. अनवरत स्वाध्याय एवं लेखन को समर्पित हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सिद्ध-समर्थ रचनाकार डा श्याम गुप्त की अगीत-काव्य व अगीत संरचना के छंद- विधान को समर्पित कृति का अवगाहन कर अत्यधिक आत्मसंतोष की अनुभूति हुई |किसी विधा विशेष पर ऐसी अधिकृत एवं अनुकरणीय कृतियाँ बहुत कम लिखी जा रही हैं |.. अगीत के नवोदित रचनाकारों के लिए अगीत साहित्य दर्पणकृति एक मार्गदर्शिका सिद्ध होगी एसा मेरा विशवास है |
                                -अगीत साहित्य दर्पण एक उत्कृष्ट शोध कृति में -रवीन्द्र कुमार राजेश 


 ८. रचनाकार डा श्यामगुप्त ने अगीत काव्य की सुदीर्घ सृजन यात्रा विभिन्न आयामों एवं अभिनव कलेवर का सार्थक विवेचन करके इस तथ्य को भी उदघाटित किया है कि हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में इसका सराहनीय योगदान आज सर्वस्वीकृत  है | कृति की भाषा सहज, बोधगम्य व प्रवाहपूर्ण एवं शैली विषयानुरूप है | तथ्यानुसंधान एवं प्रस्तुतीकरण के दृष्टि से यह कृति अगीत काव्य को समझने एवं इस दिशा में रचनाक्रम में प्रवृत्त होने के लिए डा श्यामगुप्त को हार्दिक  बधाई एवं अगीत काव्य एवं समस्त रचनाकारों के उज्जवल भविष्य हेतु मंगल कामनाएं | 
      --प्रोफ. उषा सिन्हा, पूर्व अध्यक्ष, भाषा विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, 'अगीत साहित्य दर्पण ' में


९.  “इतिहास में अगीत आन्दोलन, अगीत परिषद् और अगीत काव्य-विधा उपेक्षित ही रहती यदि डा श्यामगुप्त जी ने इस समीक्षा कृति के माध्यम से यह सारस्वत धर्म न निभाया होता |”
-----लक्षण ग्रन्थ ‘अगीत साहित्य दर्पण’  की शुभाशंसा में लखनऊ वि वि की हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग की अध्यक्ष डा कैलाश देवी सिंह का कथन |


१०.कविवर श्याम के इन गीतों में एक विशेष प्रकार का अनुरंजन है जिसमें मधुरिम संगीत उत्पन्न होता है और श्रोताओं को आनंद विभोर करता है |”ब्रज बांसुरी के माध्यम से युगल छवि की मनोरम झांकी अंकित करते हुए, ब्रज भाषा में विभिन्न राग-रागिनियों, छंदों, गीतों की अजस्र भावधारा प्रवाहित की गयी है |”..पदों के ध्रुवपद बहुत सारगर्भित हैं | ध्रुवपद के भाव पूरेपद में सम्यक विस्तार  से वर्णित होने के कारण पद बहुत महत्वपूर्ण बन गए हैं|                              
      ---ब्रज बांसुरी की भूमिका में प्रोफ हरीशंकर मिश्र, हिन्दी विभाग, लविवि, लखनऊ

 
११. यह काव्यकृति अगीत-विधा में लिखी गयी है | मेरा दृड मत है कि डा श्यामगुप्त के  योगदान से अगीत-विधा को शक्ति, सामर्थ ठोस आधार प्राप्त हुआ है |"
-----काव्य-उपन्यास -'शूर्पणखा' की भूमिका में साहित्यभूषण डा रामाश्रय सविता


१२...’ इसमें मित्रता की स्मृति है..इंसान  की प्रकृतिगत भावनाओं का अस्तित्व बराबर आपको मिलता है ..मित्रता को परिभाषित कर उसके साथ जीने की कोशिश और जीने का आदर्श आपको मिलता है| 
     ------“इन्द्रधनुष उपन्यास की भूमिका में विदुषी प्रोफ वे वै ललिताम्बा, प्रोफ व विभागाध्यक्ष तुलनात्मक भाषा एवं संस्कृति, देवी अहल्या विवि इंदौर ..
     

             ----अमृत कलश ---क्रमश --पुष्प ३...                          

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