कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
डा श्याम गुप्त -अमृत कलश ---
पुरोवाक –---साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य
पुरा व नवीन आस्थाओं पर समान रूप से समन्वयक विश्वास रखने वाले, प्रत्येक क्षेत्र की भांति साहित्य में भी उसी चले आरहे ढर्रे पर न चलकर सदा नवनीति का नवनीत प्रस्तुत करने वाले, प्रचार व मंचों से प्रायः दूर रहने वाले, गर्ज़ तर्ज़ कर कोई उपस्थिति दर्शाए बिना चुपचाप साहित्य सेवा व उसकी प्रगति व समुन्नति में रत, मौलिक विषयों पर लिखने वाले, वरिष्ठ साहित्यकार, कवि, लेखक, समीक्षक, निबंधकार, कहानीकार, उपन्यासकार, चिन्तक, विचारक, साहित्य की सभी विधाओं में प्रवीण, डा श्यामगुप्त साहित्यिक जगत में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं| प्रत्येक वर्त्तमान भाव, विचार व विषय पर अपने नवीन वैचारिक तथ्य, चले आरहे ढर्रे के विपरीत भाव व कथ्य शैली के प्रस्तोता डा श्यामगुप्त स्वयं में ही एक संस्था हैं | आपकी अब तक १५ कृतियाँ काव्यदूत काव्य-निर्झरिणी - काव्य-मुक्तामृत सृष्टि महाकाव्य, शूर्पणखा खंडकाव्य, प्रेमकाव्य महाकाव्य, इन्द्रधनुष उपन्यास, ब्रजवान्सुरी, अगीत साहित्य दर्पण, कुछ शायरी की बात होजाए, अगीत-त्रयी, ईशोपनिषद का काव्य भावानुवाद, तुम तुम और तुम, पीर ज़माने की एवं ई बुक –काव्य काँकरियाँ आदि प्रकाशित हो चुकी हैं एवं वे अनेक सम्मानों व पुरस्कारों से सम्मानित हैं |
कवि-कविता, रचना-रचनाकार, साहित्य-साहित्यकार की बेवाक, निष्पक्ष, बिना लाग-लपेट कठोर आलोचनात्मक समीक्षा व टिप्पणी करने वाले के रूप में विख्यात, साहित्य की प्रत्येक विधा एवं प्रत्येक विषय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले आराधक कवि-साहित्यकार डा श्यामगुप्त, आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पश्चात हिन्दी साहित्य में अपनी महत्ता खोती हुई आलोचना-विधा की पुनः प्रतिष्ठा करने वाले साहित्यकार हैं |
डा श्यामगुप्त हिन्दी, ब्रज व अंग्रेज़ी भाषाओं, उनके व्याकरण व साहित्य के तत्व-निरूपण पर गहन पकड़ रखने वाले एवं स्पष्ट दृष्टि व दृष्टिकोण युत विविध विषयक ज्ञान रखने वाले विरले साहित्यकार हैं | साहित्य में सुस्थापित तत्वों व मानदंडों के साथ-साथ लीक से हटकर कुछ नवीन करते रहना उनका अध्यवसाय है अतः शोध ग्रंथों की भांति आपकी प्रत्येक कृति कुछ न कुछ नवीनता व स्वयं के नवीन विशिष्ट विचार तथा नवीन स्थापनाओं को लिए हुए होती है जो उन्हें अन्य कवियों साहित्यकारों से प्रथक एवं विशिष्ट बनाती है |
कवि हृदय डा श्यामगुप्त एक अनुभवी, प्रतिभावान व सक्षम, वरिष्ठ साहित्यकार हैं जो वरिष्ठ चिकित्सक भी हैं , वे विज्ञान के छात्र रहे हैं एवं चिकित्सा विज्ञान व शल्यक्रिया-विशेषज्ञता उनका जीविकोपार्जन | भारतीय रेलवे की सेवा में चिकित्सक के रूप में देशभर में कार्यरत रहे अतः समाज के विभिन्न वर्गों, अंगों, धर्मों, व्यक्ति व परिवार व समाज की संरचना एवं अंतर्द्वंद्वों को आपने करीब से देखा, जाना व समझा है | वे एक संवेदनशील, विचारशील, तार्किक के साथ साथ सांसारिक-आध्यात्मिक-धार्मिक व नैतिक समन्वय की अभिरूचि पूर्ण साहित्यकार हैं, उनकी रचनाएं व कृतित्व स्वतःस्फूर्त एवं जीवन से भरपूर हैं|
बहुआयामी साहित्यकार महाकवि डा श्यामगुप्त हिन्दी भाषा में खड़ी-बोली व ब्रज-भाषा एवं अंग्रेज़ी भाषाओं के साहित्य में रचनारत हैं| हिन्दी-साहित्य की गद्य व पद्य दोनों विधाओं की गीत, अगीत, नवगीत, छंदोवद्य-काव्य, ग़ज़ल, कथा-कहानी, आलेख, निवंध, समीक्षा, उपन्यास, नाटिकाएं सभी में वे समान रूप से रचनारत हैं | अनेक काव्य रचनाओं के वे सहयोगी रचनाकार हैं व कई रचनाओं की भूमिका के लेखक भी हैं| अंतरजाल ( इंटरनेट ) पर विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिकाओं के वे सहयोगी रचनाकार हैं | श्याम स्मृति The world of my
thoughts .., साहित्य श्याम, हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व विजानाति-विजानाति-विज्ञान, छिद्रान्वेषी, अगीतायन आदि उनके स्वतंत्र चिट्ठे (ब्लॉग) हैं एवं वर्ल्डप्रेस डाट काम तथा अन्य कई सामुदायिक चिठ्ठों के सहयोगी रचनाकार हैं | दैनिक जागरण एवं नवभारत टाइम्स समाचार पत्रों के ब्लोग्स पर भी वे लेखन रत हैं |
डा श्यामगुप्त की साहित्यिक दृष्टि व काव्य-प्रयोजन मूलतः नवीनता के प्रति ललक एवं रूढ़िवादिता के विरोध की दृष्टि है| साहित्य के मूलगुण-भाव-प्रवणता, सामाजिक सरोकार, जन आचरण संवर्धन हेतु प्रत्येक प्रकार की प्रगतिशीलता, नवीनता के संचरण व गति-प्रगति के वे पक्षधर हैं| कविता के मूलगुण - गेयता, लयवद्धता, प्रवाह व गति एवं सहज सम्प्रेषणीयता के समर्थन के साथ-साथ केवल छंदीय कविता, केवल सनातनी छंद, गूढ़ शास्त्रीयता,
२.
अतिवादी रूढ़िवादिता व लीक पर ही चलने के वे हामी नहीं हैं| अपने इसी गुण के कारण वे आज की नवीन व प्रगतिशील काव्य-विधा अगीत-कविता की और आकर्षित हुए एवं स्वयं
एक समर्थ गीतकार व छंदीय कविता में पारंगत होते हुए भी तत्कालीन काव्यजगत के छंदीय कविता में रूढिगतिता के ठेके
सजाये हुए स्वघोषित स्वपोषित संस्थाओं व उनके अधीक्षकों के अप्रगतिशील क्रियाकलापों एवं तमाम विरोधों के बावजूद अगीत कविता विधा को प्रश्रय देते रहे एवं उसकी प्रगति हेतु विविध आवश्यक साहित्यिक कदम भी उठाये जो उनके विशद अगीत-साहित्य के कृतित्व के रूप में सम्मुख आया |
डा श्यामगुप्त, नवीन प्रयोगों, स्थापनाओं को काव्य, साहित्य व समाज की प्रगति हेतु आवश्यक मानते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं की साहित्य व काव्य के मूल उद्देश्यों से विरत कर दिया जाय, नवीनता के नाम पर मात्राओं, पंक्तियों को जोड़-तोड़ कर, विचित्र-विचित्र शब्दाडम्बर, तथ्यविहीन कथ्य, विरोधाभासी देश, काल व तथ्यों को प्रश्रय दिया जाय, यथा वे कहते हैं कि..
‘साहित्य सत्यम शिवम् सुन्दर भाव होना चाहिए,
साहित्य शुभ शुचि ज्ञान पारावार होना चाहिए |’
महाकाव्य एवं खंडकाव्य रचकर वे महाकवि की संज्ञा प्राप्त करचुके हैं | काव्य-शास्त्रीय ग्रन्थ, एक काव्य विधा का सम्पूर्ण लक्षण-ग्रन्थ लिखने पर उन्हें साहित्याचार्य की संज्ञा से भी सम्मानित किया जा चुका है |
ऐसे गुणों से विभूषित महाकवि के विविध रूप-भावों व कृतित्वों से साहित्य जगत को विशद रूप में परिचित कराने की इच्छा से उनकी साहित्य साधना व आराधना को कृतिबद्ध रूप में प्रस्तुत करना आवश्यक समझा गया | अतः अखिल भारतीय अगीत परिषद लखनऊ एवं नव सृजन संस्था , लखनऊ ने उनके हीरक जयन्ती अवसर पर अभिनंदन ग्रन्थ ‘अमृत कलश ‘ के प्रकाशन का आयोजन किया है | इस अवसर पर शुभकामनाओं सहित |
अगीतायन,ई ३८८५ ,राजाजीपुरम
लखनऊ,-१७
डॉ. रंगनाथ मिश्र सत्य एम् ए,पीएचडी,डीलिट
मो.९३३५९९०४३५
संस्थापक /अध्यक्ष
अखिल भारतीय अगीत परिषद्,लखनऊ
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