saahityshyamसाहित्य श्याम

यह ब्लॉग खोजें

Powered By Blogger

सोमवार, 18 नवंबर 2024

पुस्तक श्याम दोहावली ---४.नीति दोहावली ---

कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

पुस्तक श्याम दोहावली ---४.नीति दोहावली ---
===========================
ईश्वर, सर्वगुरु ..
त्रिभुवन गुरु औ जगत गुरु, जो प्रत्यक्ष प्रमाण,
जन्म मरण से मुक्ति दे, ईश्वर करून प्रणाम |
गुरु ..
यद्किंचित भी ज्ञान जो, हमको देय बताय,
ज्ञानी उसको मानकर, फिर गुरु लेंय बनाय |
इस संसार असार को, किस विधि कीजै पार,
श्याम गुरु कृपा पाइए,सब विधि हो उद्धार |
अध्यापक को दीजिये, अति गौरव सम्मान,
श्याम करें आचार्य का, सदा दश गुना मान |
दावानल संसार में, दारुण दुःख अनंत,
श्याम करे गुरु वन्दना, सब दुखों का अंत |
मातु-पिता, सुत बंधु सब, त्राण करे नहिं कोय,
परम त्राण, कल्याण श्री गुरु चरणों से होय |
पूर्ण चन्द्र सदृश्य है, गुरु की कृपा महान,
मन वांछित फल पाइये, परमानंद महान |
आलोकित हो श्याम का, मन रूपी आकाश,
सूरज बन कर ज्ञान का,जब गुरु करें प्रकाश |
गु अक्षर का अर्थ है, अन्धकार अज्ञान,
रु से उसको रोकता, सो है गुरू महान |
सदाचार स्थापना, शास्त्र अर्थ समझाय,
आप करे सद आचरण, सो आचार्य कहाय |
जब तक मन स्थिर नहीं, मन नहिं शास्त्र विचार,
गुरु की कृपा न प्राप्त हो, मिले न तत्त्व विचार |
त्रिगुरु..
सभी तपस्या पूर्ण हों, यदि संतुष्ट प्रमाण,
मातु पिता गुरु का करें, श्याम सदा सम्मान |
मनसा वाचा कर्मणा, कार्य करें जो कोय,
मातु पिता गुरु की सदा, सुसहमति संग होय |
4.
शत आचार्य सामान है, श्याम, पिता का मान,
नित प्रति वंदन कीजिये, मिले धर्म संज्ञान |
माता एक महान है, सहस पिता का मान,
पद वंदन नित कीजिये, माता गुरू महान |
शत शत वर्षों में नहीं, संभव निष्कृति मान,
करते जो संतान हित, मातु, पिता वलिदान |
श्याम कौन कर पायगा, माता का गुणगान,
ब्रह्मा विष्णु महेश भी, बनते पुत्र समान |
दिखा गये सन्मार्ग जो, माता पिता महान,
उचित मार्ग पर हम चलें, सदा मिले सम्मान |
पाँच पिता..
विद्या दे और जन्म दे, और संस्कार कराय,
अन्न देय निर्भय करे, पांच पिता कहलायं |
पाँच माता..
राजा गुरु औ मित्र की, पत्नी रखिये मान,
पत्नी माता, स्वमाता, पाचों माता मान |
पुत्र...
श्याम जो सुत हो एक ही, पर हो साधु स्वभाव,
कुल आनंदित रहे ज्यों, चाँद चांदनी भाव |
पुत्र न हो जो भक्ति रत, और न जो विद्वान्,
उसका जीना जन्मना, व्यर्थ सदा ही मान |
नारी...
नारी सम्मति हो जहां, आँगन पावन होय,
कार्य सकल निष्फल वहां, जहां न आदर सोय |
नर नारी का द्वंद्व तो, आदिम है आचार,
पर नारी मन से खुले, मानव का व्यवहार |
द्विज राजा योगी फिरें, घूमें, पूजन योग,
नारी जो घूमे फिरे, तो विनाश संयोग |
श्याम, दुखी संसार में, शांति प्रदायक तीन,
स्त्री, सतसंगति तथा, पुत्र जो ज्ञान प्रवीण |
पत्नी मिलती भाग्य से, ईश्वर इच्छा जान,
श्याम करें प्रिय आचरण, सदा करें सम्मान ।
---क्रमश
May be an image of 2 people and text
Like
Comment
Share

श्याम दोहावली –१.वाणी वंदना—

                                                    कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

.पेज

                                                                          श्याम दोहावली

 

                          .वाणी वंदना

हे माँ ज्ञान प्रदायिनी, ते छवि उर में धार ,

दोहे रचूँ सुमिर मन, महिमा अपरम्पार |

 

तंत्र मन्त्र जानूं नहीं, नहिं मैं वंदन ध्यान,

माँ तेरा ही अनुसरण, मेरा सकल जहान |

 

माँ की करुणा अतुल है, जब जब संकट होय,

तेरा ही सुमिरन करूं, नहीं कपटता कोय | 

 

अगणित तेरे पुत्र हैं, मैं अस्थिर चित आप,

विमुख रहूँ जो आपसे, विमुख रहना आप |

 

मुक्ति नहीं मैं चाहता, नहिं धन सम्पति मान,

माँ वाणी सुमिरन करूं, जब तक घाट में प्रान |  

 

                       .राधाकृष्ण

हे राधे, हे राधिका, हे अराधिका श्याम,

श्याम करें आराधना, होय राधिका नाम |

 

वृन्दावन आनंदिता, परमेश्वरी ललाम,

वन्दों जग आल्हादका, श्रेष्ठ गोपिका नाम |

 

राधा अर्चन के बिना , करे अर्चना श्याम,

निष्फल सो आराधना, भज राधिका सुनाम |

 

गोपी गोप अनंदिता, परम ब्रह्म चितशक्ति,

करूं वंदना जोरि कर, जग की राधन वृत्ति |

 

मोहे सारी सृष्टि को, मोहे मोहन जोय,

सक्षम जग में श्याम को, वरनै राधा सोय |

 

राधेश्री मन में बसें, राधा मन घनश्याम,

राधा श्याम ह्रदय बसें,हर्षित मन हो श्याम |

 

लीला राधा श्याम की, श्याम सके नहिं जान,

जो लीला को जान ले,श्याम रहें नहिं श्याम |

 

राधाकृष्ण सुप्रेम ही, जग की है पहचान,

कौन भला समझे करे, ऐसा प्रेम महान |

 

मेरे उर में बस रहो, राधा संग घनश्याम,

प्रेम बांसुरी उर बजे, धन्य धन्य हों श्याम |

 

राधा सखियाँ संग हैं, और सखा संग श्याम,

रास भक्ति लीला रचें, रीति चले अविराम |

 

राधाजी का रंग जो पड़े श्याम के अंग,

हर्षित अँखियाँ होरहीं, देख हरित दुति रंग |  

 

 

2.

ललित त्रिभंगी रूप में, राधा संग गोपाल,

निरखि निरखि सो भव्यता, होते श्याम निहाल |

 

अमर प्रेम के रंग का, पाना चाहें ज्ञान,

राधा नागरि का करें, नित नित उर में ध्यान |

 

श्याम खडा करबद्ध जो, राधाजी के द्वार,

श्याम कृपा तो मिले ही, राधा कृपा अपार |

 

रस स्वरुप घनश्याम हैं, राधा भाव विभाव,

श्याम भजे रस संचरण, पाय सकल अनुभाव |

 

रसौ वै, श्रीकृष्ण हैं, सदानंद घनश्याम,

रसना नाम भजे सदा, राधे राधाश्याम |

 

या कदम्ब तरु छाँह के, भाग सराहें श्याम,

सेवै चितवै युगल छवि, नित राधा घनश्याम |

 

श्याम शांत चित सौम्य शुचि, यमुना तट की भोर,

अजहूँ ज्यों चिंतन चकित, चित चितवै चितचोर |

 

फूल हिंडोला पालना, नृत्य गान श्रृंगार,

पंचामृत संग भोग सुख, नित्यानंद विचार |

 

तन और मन रससिक्त हों, नित उत्सव आनंद,

श्रद्धा प्रेम भक्ति रस, मन भीगे सानंद |

 

लीला भूमि जो लाल की, जो ब्रजभूमि कहाय,

पारसि श्याम जेहि रज किये, सकल कलुष कटि जायं |

 

तिर्यक भाव कर्म को, मन लावै नहिं कोय,

मन लावे तो मन बसे, श्याम त्रिभंगी सोय |

 

नित्य नैमित्तिक रास की, अमृत धार बहाय,

नित नित मंगल दर्श हों, अमृतत्व मिल जाय |

 

दर्श किये श्रीकृष्ण के, मिले हर्ष आह्लाद ,

रहे तृष्णा कामना, मन रहे कुछ साध |

 

नित्य रूप रस जो पिए, दर्शन कर घनश्याम,

परमानंद प्रतीति हो, जीवन धन्य सकाम |

 

चित्तशक्ति, सह्शक्ति जो, राधा बलराम,

करूं वंदना होय सुख, हों प्रसन्न घनश्याम |

 

कृष्ण मुरारी मन बसे, चित में लिए रमाय,

नित नित दर्शन मैं करूं, नैनन पलक झुकाय |

 

इन नैनों में बस रहे, राधा नन्द किशोर,

पलकों की चिक डालकर, मन हो दर्श विभोर |

 


 

3.

                         .पवन कुमार

मारुति नंदन ज्ञान घन, वन्दों पवन कुमार ,

जग के भव बंधन सकल, जासु कृपा हों पार |

 

श्याम शरण है आपकी, मारुति सुत बलधाम,

बल बुधि विद्या दीजिये, हे बल बुद्धि निधान |

 

कृपा श्याम पर कीजिये, पवनपुत्र हनुमान,

अनुज जानकी सहित नित, ह्रदय बसें श्रीराम |

 --------क्रमश