नारी...
नारी सम्मति हो जहां, आँगन पावन होय,
कार्य सकल निष्फल वहां, जहां न आदर सोय |
नर नारी का द्वंद्व तो, आदिम है आचार,
पर नारी मन से खुले, मानव का व्यवहार |
द्विज राजा योगी फिरें, घूमें, पूजन योग,
नारी जो घूमे फिरे, तो विनाश संयोग |
श्याम, दुखी संसार में, शांति प्रदायक तीन,
स्त्री, सतसंगति तथा, पुत्र जो ज्ञान प्रवीण |
पत्नी मिलती भाग्य से, ईश्वर इच्छा जान,
श्याम करें प्रिय आचरण, सदा करें सम्मान |
गृह वास...
आसन पानी भूमि औ, वचन सत्य प्रिय मान,
श्याम अभाव न अतिथि को, सो सज्जन गृह जान |
पति पत्नी समनस जहां, सदा रहें संतुष्ट,
सो गृह पावन जानिये, सम्मति परम विशिष्ट |
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जहां न आदर,जीविका, भाई बंधु न साथ,
विद्या धन नहिं प्राप्त हो, तहां न करिए बास |
धनिक विप्र राजा नदी, वैद्य न करे निवास,
श्याम तहां नहिं ठहरिये, चाहे चन्दन वास |
आज्ञाकारी सुत जहां, औ अनुगामिनि नार,
नीति के धन से तुष्ट हो, सोई स्वर्ग विचारि |
सूना जग बिनु बंधु के, पुत्र बिना गृह सून,
मूर्ख ह्रदय से शून्य है, निर्धन सब विधि शून्य |
अन्न व आहार ...
अन्न जो जैसा खाइए, तैसी संतति होय,
दीप भखे अंधियार को, काज़ल उत्पति होय |
मांस खायं मदिरा पियें, रहें निरक्षर रूप,
धरती पर वे बोझ हैं, पशु मानव संरूप |
अति आहार महान दुःख, अनाहार अति कष्ट,
ऋतभुक मितभुक हितभुक, सदा रहें संतुष्ट |
अनुमोदक क्रय-विक्रयी, चीरें वधे पकायं,
खायं परोसें ये सभी, घातक पाप कामायं |
अतिगरिष्ठ अतिशुष्क औ, अतिभोजन नहिं खायं,
सुवः सवेरे भी नहीं, रात न देर लगायं |
हितकारी भोजन करें, खाएं जो ऋतू योग्य,
कम खाएं पैदल चलें, रहें स्वस्थ आरोग्य |
आयु पुण्य को क्षय करे, रोग बढावे जान,
अति भोजन निन्दित सदा, अति है नरक समान |
परम अपावन प्राप्ति विधि, प्राणी वध संताप,
वध की क्रिया देखिये, कभी न खाएं मांस |
अपने लिए कमाय औ, केवल खुद ही खाय,
श्याम पापमय अन्न है, जो न साधु को जाय |
धन...
सोना कूड़े में पडा, लेते तुरत उठाय,
साधु वचन लेलीजिये, चाहे शत्रु सुनाय |
पापकर्म से उपार्जित, धन की करें न आस,
श्याम हो संकट प्राण का, चाहे हो संत्रास ।
अनुचित धन की लालसा, कभी न मन में लायं,
चाहे संकट हो बड़ा, श्याम’ नहीं घबरायं |
प्राणों का संकट खडा, या मन का संताप,
श्याम, अधर्मी कर्म से, धन न कमायें आप |
इतना धन तो चाहिए, कटें वर्ष दो तीन,
अधिक न संचय कीजिये, कहते सकल प्रवीन |
श्याम ये लक्ष्मी चंचला, सदा रहे नहिं पास,
धन की गतियाँ तीन हैं, दान भोग और नाश |
श्याम ये अर्थ अनर्थ है, भय चिंता मद होय,
साधे राखे खर्चिये, कठिन परिश्रम सोय |
अर्जित धन का खर्च ही, रखना उचित उपाय,
ठहरे पानी छोडिये, नूतन जल भर लाय |
अधम तो धन ही चाहते, मध्यम धन-सम्मान,
उत्तम चाहें मान ही, उत्तम धन सम्मान |
विद्या जो नहिं कंठ में, निज धन पर के हाथ,
समय पड़े धन नहिं मिले, विद्या नहिं दे साथ |
श्याम गर्व मत कीजिये, कहते अकाल प्रवीण,
दान भोग और नाश हैं, धन की गतियाँ तीन |
बूँद बूँद कर संचिये, विद्या धन औ धर्म,
बूँद बूँद से घट भरे, यह संचय का मर्म ।
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