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शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

श्याम दोहावलि---नीति के दोहे--क्रमश ..डॉ. श्याम गुप्त

                                           कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



4. नीति दोहावलि---क्रमश....

नारी...

नारी सम्मति हो जहां, आँगन पावन होय,

कार्य सकल निष्फल वहां, जहां आदर सोय |

 

नर नारी का द्वंद्व तो, आदिम है आचार,

पर नारी मन से खुले, मानव का व्यवहार |

 

द्विज राजा योगी फिरें, घूमें, पूजन योग,

नारी जो घूमे फिरे, तो विनाश संयोग |

 

श्याम, दुखी संसार में, शांति प्रदायक तीन,

स्त्री, सतसंगति तथा, पुत्र जो ज्ञान प्रवीण |

 

पत्नी मिलती भाग्य से, ईश्वर इच्छा जान,

श्याम करें प्रिय आचरण, सदा करें सम्मान |

 

गृह वास...

आसन पानी भूमि , वचन सत्य प्रिय मान,

श्याम अभाव अतिथि को, सो सज्जन गृह जान |

 

पति पत्नी समनस जहां, सदा रहें संतुष्ट,

सो गृह पावन जानिये, सम्मति परम विशिष्ट |

.

जहां आदर,जीविका, भाई बंधु साथ, 

विद्या धन नहिं प्राप्त हो, तहां करिए बास |


 

धनिक विप्र राजा नदी, वैद्य करे निवास, 

श्याम तहां नहिं ठहरिये, चाहे चन्दन वास |

 

आज्ञाकारी सुत जहां, अनुगामिनि नार,

नीति के धन से तुष्ट हो, सोई स्वर्ग विचारि |

 

सूना जग बिनु बंधु के, पुत्र बिना गृह सून,

मूर्ख ह्रदय से शून्य है, निर्धन सब विधि शून्य |

 

अन्न आहार ...

अन्न जो जैसा खाइए, तैसी संतति होय,

दीप भखे अंधियार को, काज़ल उत्पति होय |

 

मांस खायं मदिरा पियें, रहें निरक्षर रूप,

धरती पर वे बोझ हैं, पशु मानव संरूप |

 

अति आहार महान दुःख, अनाहार अति कष्ट,

ऋतभुक मितभुक हितभुक, सदा रहें संतुष्ट |

 

अनुमोदक क्रय-विक्रयी, चीरें वधे पकायं,

खायं परोसें ये सभी, घातक पाप कामायं |

 

अतिगरिष्ठ अतिशुष्क , अतिभोजन नहिं खायं,

सुवः सवेरे भी नहीं, रात देर लगायं |

 

हितकारी भोजन करें, खाएं जो ऋतू योग्य,

कम खाएं पैदल चलें, रहें स्वस्थ आरोग्य |

 

आयु पुण्य को क्षय करे, रोग बढावे जान,

अति भोजन निन्दित सदा, अति है नरक समान |

 

परम अपावन प्राप्ति विधि, प्राणी वध संताप,

वध की क्रिया देखिये, कभी खाएं मांस |

 

 

अपने लिए कमाय , केवल खुद ही खाय,

श्याम पापमय अन्न है, जो साधु को जाय |

 

धन...

सोना कूड़े में पडा, लेते तुरत उठाय,

साधु वचन लेलीजिये, चाहे शत्रु सुनाय |

 

पापकर्म से उपार्जित, धन की करें आस,

श्याम हो संकट प्राण का, चाहे हो संत्रास

 

अनुचित धन की लालसा, कभी मन में लायं,

चाहे संकट हो बड़ा, श्यामनहीं घबरायं  |

 

प्राणों का संकट खडा, या मन का संताप,

श्याम, अधर्मी कर्म से, धन कमायें आप |

 

इतना धन तो चाहिए, कटें वर्ष दो तीन,

अधिक संचय कीजिये, कहते सकल प्रवीन |

 

श्याम ये लक्ष्मी चंचला, सदा रहे नहिं पास,

धन की गतियाँ तीन हैं, दान भोग और नाश |

 

श्याम ये अर्थ अनर्थ है, भय चिंता मद होय,

साधे राखे खर्चिये, कठिन परिश्रम सोय | 

 

अर्जित धन का खर्च ही, रखना उचित उपाय,

ठहरे पानी छोडिये, नूतन जल भर लाय |

 

अधम तो धन ही चाहते, मध्यम धन-सम्मान,

उत्तम चाहें मान ही, उत्तम धन सम्मान |

 

विद्या जो नहिं कंठ में, निज धन पर के हाथ,

समय पड़े धन नहिं मिले, विद्या नहिं दे साथ |

 

श्याम गर्व मत कीजिये, कहते अकाल प्रवीण,

दान भोग और नाश हैं, धन की गतियाँ तीन |

 

बूँद बूँद कर संचिये, विद्या धन धर्म,

बूँद बूँद से घट भरे, यह संचय का मर्म ।

 -----------------क्रमश --


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