१.पेज
श्याम दोहावली –
१.वाणी वंदना—
हे माँ ज्ञान प्रदायिनी, ते छवि उर में धार ,
दोहे रचूँ सुमिर मन, महिमा अपरम्पार |
तंत्र मन्त्र जानूं नहीं, नहिं मैं वंदन ध्यान,
माँ तेरा ही अनुसरण, मेरा सकल जहान |
माँ की करुणा अतुल है, जब जब संकट होय,
तेरा ही सुमिरन करूं, नहीं कपटता कोय |
अगणित तेरे पुत्र हैं, मैं अस्थिर चित आप,
विमुख रहूँ जो आपसे, विमुख न रहना आप |
मुक्ति नहीं मैं चाहता, नहिं धन सम्पति मान,
माँ वाणी सुमिरन करूं, जब तक घाट में प्रान |
२.राधाकृष्ण
हे राधे, हे राधिका, हे अराधिका श्याम,
श्याम करें आराधना, होय राधिका नाम |
वृन्दावन आनंदिता, परमेश्वरी ललाम,
वन्दों जग आल्हादका, श्रेष्ठ गोपिका नाम |
राधा अर्चन के बिना , करे अर्चना श्याम,
निष्फल सो आराधना, भज राधिका सुनाम |
गोपी गोप अनंदिता, परम ब्रह्म चितशक्ति,
करूं वंदना जोरि कर, जग की राधन वृत्ति |
मोहे सारी सृष्टि को, मोहे मोहन जोय,
सक्षम जग में श्याम को, वरनै राधा सोय |
राधेश्री मन में बसें, राधा मन घनश्याम,
राधा श्याम ह्रदय बसें,हर्षित मन हो श्याम |
लीला राधा श्याम की, श्याम सके नहिं जान,
जो लीला को जान ले,श्याम रहें नहिं श्याम |
राधाकृष्ण सुप्रेम ही, जग की है पहचान,
कौन भला समझे करे, ऐसा प्रेम महान |
मेरे उर में बस रहो, राधा संग घनश्याम,
प्रेम बांसुरी उर बजे, धन्य धन्य हों श्याम |
राधा सखियाँ संग हैं, और सखा संग श्याम,
रास भक्ति लीला रचें, रीति चले अविराम |
राधाजी का रंग जो पड़े श्याम के अंग,
हर्षित अँखियाँ होरहीं, देख हरित दुति रंग |
2.
ललित त्रिभंगी रूप में, राधा संग गोपाल,
निरखि निरखि सो भव्यता, होते श्याम निहाल |
अमर प्रेम के रंग का, पाना चाहें ज्ञान,
राधा नागरि का करें, नित नित उर में ध्यान |
श्याम खडा करबद्ध जो, राधाजी के द्वार,
श्याम कृपा तो मिले ही, राधा कृपा अपार |
रस स्वरुप घनश्याम हैं, राधा भाव विभाव,
श्याम भजे रस संचरण, पाय सकल अनुभाव |
रसौ वै, श्रीकृष्ण हैं, सदानंद घनश्याम,
रसना नाम भजे सदा, राधे राधाश्याम |
या कदम्ब तरु छाँह के, भाग सराहें श्याम,
सेवै चितवै युगल छवि, नित राधा घनश्याम |
श्याम शांत चित सौम्य शुचि, यमुना तट की भोर,
अजहूँ ज्यों चिंतन चकित, चित चितवै चितचोर |
फूल हिंडोला पालना, नृत्य गान श्रृंगार,
पंचामृत संग भोग सुख, नित्यानंद विचार |
तन और मन रससिक्त हों, नित उत्सव आनंद,
श्रद्धा प्रेम औ भक्ति रस, मन भीगे सानंद |
लीला भूमि जो लाल की, जो ब्रजभूमि कहाय,
पारसि श्याम जेहि रज किये, सकल कलुष कटि जायं |
तिर्यक भाव व कर्म को, मन लावै नहिं कोय,
मन लावे तो मन बसे, श्याम त्रिभंगी सोय |
नित्य नैमित्तिक रास की, अमृत धार बहाय,
नित नित मंगल दर्श हों, अमृतत्व मिल जाय |
दर्श किये श्रीकृष्ण के, मिले हर्ष आह्लाद ,
रहे न तृष्णा कामना, मन न रहे कुछ साध |
नित्य रूप रस जो पिए, दर्शन कर घनश्याम,
परमानंद प्रतीति हो, जीवन धन्य सकाम |
चित्तशक्ति, सह्शक्ति जो, राधा औ बलराम,
करूं वंदना होय सुख, हों प्रसन्न घनश्याम |
कृष्ण मुरारी मन बसे, चित में लिए रमाय,
नित नित दर्शन मैं करूं, नैनन पलक झुकाय |
इन नैनों में बस रहे, राधा नन्द किशोर,
पलकों की चिक डालकर, मन हो दर्श विभोर |
3.
३.पवन कुमार
मारुति नंदन ज्ञान घन, वन्दों पवन कुमार ,
जग के भव बंधन सकल, जासु कृपा हों पार |
श्याम शरण है आपकी, मारुति सुत बलधाम,
बल बुधि विद्या दीजिये, हे बल बुद्धि निधान |
कृपा श्याम पर कीजिये, पवनपुत्र हनुमान,
अनुज जानकी सहित नित, ह्रदय बसें श्रीराम |
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