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सोमवार, 18 नवंबर 2024

श्याम दोहावली –१.वाणी वंदना—

                                                    कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

.पेज

                                                                          श्याम दोहावली

 

                          .वाणी वंदना

हे माँ ज्ञान प्रदायिनी, ते छवि उर में धार ,

दोहे रचूँ सुमिर मन, महिमा अपरम्पार |

 

तंत्र मन्त्र जानूं नहीं, नहिं मैं वंदन ध्यान,

माँ तेरा ही अनुसरण, मेरा सकल जहान |

 

माँ की करुणा अतुल है, जब जब संकट होय,

तेरा ही सुमिरन करूं, नहीं कपटता कोय | 

 

अगणित तेरे पुत्र हैं, मैं अस्थिर चित आप,

विमुख रहूँ जो आपसे, विमुख रहना आप |

 

मुक्ति नहीं मैं चाहता, नहिं धन सम्पति मान,

माँ वाणी सुमिरन करूं, जब तक घाट में प्रान |  

 

                       .राधाकृष्ण

हे राधे, हे राधिका, हे अराधिका श्याम,

श्याम करें आराधना, होय राधिका नाम |

 

वृन्दावन आनंदिता, परमेश्वरी ललाम,

वन्दों जग आल्हादका, श्रेष्ठ गोपिका नाम |

 

राधा अर्चन के बिना , करे अर्चना श्याम,

निष्फल सो आराधना, भज राधिका सुनाम |

 

गोपी गोप अनंदिता, परम ब्रह्म चितशक्ति,

करूं वंदना जोरि कर, जग की राधन वृत्ति |

 

मोहे सारी सृष्टि को, मोहे मोहन जोय,

सक्षम जग में श्याम को, वरनै राधा सोय |

 

राधेश्री मन में बसें, राधा मन घनश्याम,

राधा श्याम ह्रदय बसें,हर्षित मन हो श्याम |

 

लीला राधा श्याम की, श्याम सके नहिं जान,

जो लीला को जान ले,श्याम रहें नहिं श्याम |

 

राधाकृष्ण सुप्रेम ही, जग की है पहचान,

कौन भला समझे करे, ऐसा प्रेम महान |

 

मेरे उर में बस रहो, राधा संग घनश्याम,

प्रेम बांसुरी उर बजे, धन्य धन्य हों श्याम |

 

राधा सखियाँ संग हैं, और सखा संग श्याम,

रास भक्ति लीला रचें, रीति चले अविराम |

 

राधाजी का रंग जो पड़े श्याम के अंग,

हर्षित अँखियाँ होरहीं, देख हरित दुति रंग |  

 

 

2.

ललित त्रिभंगी रूप में, राधा संग गोपाल,

निरखि निरखि सो भव्यता, होते श्याम निहाल |

 

अमर प्रेम के रंग का, पाना चाहें ज्ञान,

राधा नागरि का करें, नित नित उर में ध्यान |

 

श्याम खडा करबद्ध जो, राधाजी के द्वार,

श्याम कृपा तो मिले ही, राधा कृपा अपार |

 

रस स्वरुप घनश्याम हैं, राधा भाव विभाव,

श्याम भजे रस संचरण, पाय सकल अनुभाव |

 

रसौ वै, श्रीकृष्ण हैं, सदानंद घनश्याम,

रसना नाम भजे सदा, राधे राधाश्याम |

 

या कदम्ब तरु छाँह के, भाग सराहें श्याम,

सेवै चितवै युगल छवि, नित राधा घनश्याम |

 

श्याम शांत चित सौम्य शुचि, यमुना तट की भोर,

अजहूँ ज्यों चिंतन चकित, चित चितवै चितचोर |

 

फूल हिंडोला पालना, नृत्य गान श्रृंगार,

पंचामृत संग भोग सुख, नित्यानंद विचार |

 

तन और मन रससिक्त हों, नित उत्सव आनंद,

श्रद्धा प्रेम भक्ति रस, मन भीगे सानंद |

 

लीला भूमि जो लाल की, जो ब्रजभूमि कहाय,

पारसि श्याम जेहि रज किये, सकल कलुष कटि जायं |

 

तिर्यक भाव कर्म को, मन लावै नहिं कोय,

मन लावे तो मन बसे, श्याम त्रिभंगी सोय |

 

नित्य नैमित्तिक रास की, अमृत धार बहाय,

नित नित मंगल दर्श हों, अमृतत्व मिल जाय |

 

दर्श किये श्रीकृष्ण के, मिले हर्ष आह्लाद ,

रहे तृष्णा कामना, मन रहे कुछ साध |

 

नित्य रूप रस जो पिए, दर्शन कर घनश्याम,

परमानंद प्रतीति हो, जीवन धन्य सकाम |

 

चित्तशक्ति, सह्शक्ति जो, राधा बलराम,

करूं वंदना होय सुख, हों प्रसन्न घनश्याम |

 

कृष्ण मुरारी मन बसे, चित में लिए रमाय,

नित नित दर्शन मैं करूं, नैनन पलक झुकाय |

 

इन नैनों में बस रहे, राधा नन्द किशोर,

पलकों की चिक डालकर, मन हो दर्श विभोर |

 


 

3.

                         .पवन कुमार

मारुति नंदन ज्ञान घन, वन्दों पवन कुमार ,

जग के भव बंधन सकल, जासु कृपा हों पार |

 

श्याम शरण है आपकी, मारुति सुत बलधाम,

बल बुधि विद्या दीजिये, हे बल बुद्धि निधान |

 

कृपा श्याम पर कीजिये, पवनपुत्र हनुमान,

अनुज जानकी सहित नित, ह्रदय बसें श्रीराम |

 --------क्रमश 


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