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सोमवार, 18 नवंबर 2024

पुस्तक श्याम दोहावली ---४.नीति दोहावली ---

कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

पुस्तक श्याम दोहावली ---४.नीति दोहावली ---
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ईश्वर, सर्वगुरु ..
त्रिभुवन गुरु औ जगत गुरु, जो प्रत्यक्ष प्रमाण,
जन्म मरण से मुक्ति दे, ईश्वर करून प्रणाम |
गुरु ..
यद्किंचित भी ज्ञान जो, हमको देय बताय,
ज्ञानी उसको मानकर, फिर गुरु लेंय बनाय |
इस संसार असार को, किस विधि कीजै पार,
श्याम गुरु कृपा पाइए,सब विधि हो उद्धार |
अध्यापक को दीजिये, अति गौरव सम्मान,
श्याम करें आचार्य का, सदा दश गुना मान |
दावानल संसार में, दारुण दुःख अनंत,
श्याम करे गुरु वन्दना, सब दुखों का अंत |
मातु-पिता, सुत बंधु सब, त्राण करे नहिं कोय,
परम त्राण, कल्याण श्री गुरु चरणों से होय |
पूर्ण चन्द्र सदृश्य है, गुरु की कृपा महान,
मन वांछित फल पाइये, परमानंद महान |
आलोकित हो श्याम का, मन रूपी आकाश,
सूरज बन कर ज्ञान का,जब गुरु करें प्रकाश |
गु अक्षर का अर्थ है, अन्धकार अज्ञान,
रु से उसको रोकता, सो है गुरू महान |
सदाचार स्थापना, शास्त्र अर्थ समझाय,
आप करे सद आचरण, सो आचार्य कहाय |
जब तक मन स्थिर नहीं, मन नहिं शास्त्र विचार,
गुरु की कृपा न प्राप्त हो, मिले न तत्त्व विचार |
त्रिगुरु..
सभी तपस्या पूर्ण हों, यदि संतुष्ट प्रमाण,
मातु पिता गुरु का करें, श्याम सदा सम्मान |
मनसा वाचा कर्मणा, कार्य करें जो कोय,
मातु पिता गुरु की सदा, सुसहमति संग होय |
4.
शत आचार्य सामान है, श्याम, पिता का मान,
नित प्रति वंदन कीजिये, मिले धर्म संज्ञान |
माता एक महान है, सहस पिता का मान,
पद वंदन नित कीजिये, माता गुरू महान |
शत शत वर्षों में नहीं, संभव निष्कृति मान,
करते जो संतान हित, मातु, पिता वलिदान |
श्याम कौन कर पायगा, माता का गुणगान,
ब्रह्मा विष्णु महेश भी, बनते पुत्र समान |
दिखा गये सन्मार्ग जो, माता पिता महान,
उचित मार्ग पर हम चलें, सदा मिले सम्मान |
पाँच पिता..
विद्या दे और जन्म दे, और संस्कार कराय,
अन्न देय निर्भय करे, पांच पिता कहलायं |
पाँच माता..
राजा गुरु औ मित्र की, पत्नी रखिये मान,
पत्नी माता, स्वमाता, पाचों माता मान |
पुत्र...
श्याम जो सुत हो एक ही, पर हो साधु स्वभाव,
कुल आनंदित रहे ज्यों, चाँद चांदनी भाव |
पुत्र न हो जो भक्ति रत, और न जो विद्वान्,
उसका जीना जन्मना, व्यर्थ सदा ही मान |
नारी...
नारी सम्मति हो जहां, आँगन पावन होय,
कार्य सकल निष्फल वहां, जहां न आदर सोय |
नर नारी का द्वंद्व तो, आदिम है आचार,
पर नारी मन से खुले, मानव का व्यवहार |
द्विज राजा योगी फिरें, घूमें, पूजन योग,
नारी जो घूमे फिरे, तो विनाश संयोग |
श्याम, दुखी संसार में, शांति प्रदायक तीन,
स्त्री, सतसंगति तथा, पुत्र जो ज्ञान प्रवीण |
पत्नी मिलती भाग्य से, ईश्वर इच्छा जान,
श्याम करें प्रिय आचरण, सदा करें सम्मान ।
---क्रमश
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